हाल में जारी नए शोध के अनुसार लगातार टेलिविजन पर समाचारों को देखने और अखबारों में अपराध संबंधी लेख पढ़ने से व्यक्ति किसी सोशल ग्रुप के खिलाफ नस्लीय पूर्वाग्रह से ग्रस्त हो सकता है। शोधकर्ताओं ने इस बात पर अध्ययन किया था कि किसी सोशल ग्रुप के लिए किसी भी व्यक्ति के अचेतन मन पर न्यूज कवरेज का क्या प्रभाव पड़ता है।
यूएस (US) और ऑस्ट्रिया में इसके लिए तीन परीक्षण किए गए। जर्मनी में म्यूनिख विश्वविद्यालय के फ्लोरियन ने ऑस्ट्रिया में एक शोध किया था जबकि ह्यूस्टन विश्वविद्यालय के टेंपल नॉर्थअप ने इस विषय पर यूएस (US) में शोध किया है।
यूएस में हुए पहले शोध में कुल 316 लोगों ने भाग लिया। शोध में शामिल लोगों ने ये परीक्षण पूरा किया। यह एक टूल है जो मनोविज्ञान में उन लोगों के छिपे हुए पूर्वाग्रह को जांचने में इस्तेमाल किया जाता है, जो अपने विचारों को प्रस्तुत करने में फेल होते हैं। इस टेस्ट को पूरा करने के बाद लोगों से अफ्रीकन और अमेरिकन लोगों के बारे में अपने विचार बताने को कहा गया। इसके साथ ही यह भी बताने को कहा गया कि वे रोजाना कितने घंटे तक लोकल टेलिविजन न्यूज देखते हैं।
नॉर्थअप ने कहा, ‘अमेरिका में किए गए अध्ययन में पाया गया कि लंबे समय तक लोकल टेलिविजन देखने वाले जिनमें अफ्रीकन और अमेरिकन लोगों का लगातार चित्रण होता रहता है और जिनमें वे घिसे-पिटे अपराधी होते हैं। ऐसे अफ्रीकन अमेरिकियों के बारे में नकारात्मक रवैया बढ़ जाता है। ’ नॉर्थअप ने कहा, ‘ज्यादा लोकल टेलिविजन न्यूज देखने वाले दर्शकों ने अफ्रीकन अमेरिकियों के बारे में ज्यादा नकारात्मक प्रतिक्रिया जाहिर की।’
ऑस्ट्रिया में किया गया शोध भी यूएस में किए गए शोध जैसा ही था। इस शोध में 489 लोगों को शामिल किया गया था। इस शोध में पाया गया कि टैबलॉयड आकार के अखबार को रोजाना पढ़ने नकारात्मक नजरिये में बढ़ोतरी नहीं होती है। नॉर्थअप ने कहा, ‘टेलिविजन न्यूज के विपरीत, लोगों का अखबारों पर ज्यादा कंट्रोल होता है, क्योंकि यहां पर वे अपनी पसंद की स्टोरी पढ़ सकते हैं। लेकिन टेलिविजन न्यूज के मामले में ऐसा नहीं होता है।’
तीसरे शोध में यह जांचा गया कि न्यूजपेपर का कितना कंटेंट लोगों के विचारों को प्रभावित करता है और वे किस प्रकार के आर्टिकल पढ़ते हैं। इस शोध में 470 लोगों को शामिल किया गया है। इस शोध में पाया गया कि पढ़ाई का कंटेंट खासकर अपराध से संबंधित कंटेंट पढ़ने से विदेशियों को लेकर व्यक्ति के नजरिये में महत्वपूर्ण परिवर्तन होता है। दोनों देशों में हुए शोध के परिणामों से यह निष्कर्ष निकला कि ऐसी स्टोरियों के लगातार अध्ययन से व्यक्ति के नजरिये में नकारात्मकता बढ़ती है।
नॉर्थअप ने कहा, ‘शोध के नतीजों में यह निकलकर सामने आया है कि वे व्यक्ति जो दूसरों के मुकाबले ज्यादा लोकल टेलिविजन न्यूज देखते हैं, उनमें अफ्रीकन-अमेरिकयों के खिलाफ नस्लवाद से ग्रस्त पूर्वाग्रह काफी बढ़ जाता है।’ उन्होंने कहा, ‘ऑस्ट्रिया में जो लोग टैबलॉयड स्टाइल में प्रकाशित समाचार पत्रों में अपराध संबंधी स्टोरी ज्यादा पढ़ते हैं, वे विदेशियों के खिलाफ पूर्वाग्रह से ज्यादा ग्रस्त होते हैं।’ इन शोध को इंटरनेशनल जर्नल ऑफ कम्युनिकेशन में प्रकाशित किया गया था।
साभार- समाचार4मीडिया से