तेज आवाज से अब रेलकर्मियों के कान नहीं खराब होंगे क्योंकि इससे उन्हें बचाने के लिए रेल प्रशासन ने काम शुरू कर दिया है। इसके लिए विशेष उपकरण तैयार किया जा रहा है, जिसे लगाने के बाद इन्हें शोर से मुक्ति मिल जाएगी।
फिलहाल, यह उपकरण ट्रेन के पॉवर कार और यार्ड में मशीन पर तैनात कर्मचारियों को ध्वनि प्रदूषण से बचने के लिए दिया जाएगा। हालांकि, रेल इंजन में तैनात पायलट इससे वंचित रहेंगे।
यह उपकरण आसपास की तेज आवाज को फिल्टर कर 82 डेसिबल तक लाने में सक्षम है। इसलिए इस उपकरण को कान में लगाने वाला कर्मचारी तेज आवाज से बच सकेगा। वह बगैर किसी बाधा के स्पष्ट आवाज सुन सकेगा। सामान्य मनुष्य के कान द्वारा सुनी जा सकने वाली सर्वाधिक धीमी आवाज शून्य डेसिबल होती है।
सामान्य बातचीत में ध्वनि की तीव्रता 60 डेसिबल के आसपास होती है। 80 डेसिबल से ज्यादा ध्वनि की तीव्रता से स्वास्थ्य को नुकसान है, जबकि ट्रेन के पॉवर कार तथा इंजन में ध्वनि की तीव्रता 100 डेसिबल से भी ज्यादा होती है। इसी तरह व्हील लैथ पर 100 डेसिबल से ज्यादा तीव्रता वाली ध्वनि के बीच काम करना पड़ता है।
ध्वनि प्रदूषण का मानव जीवन पर बुरा प्रभाव पड़ता है। लगातार तेज आवाज के बीच रहने से मानसिक तनाव, कुंठा, चिड़चिड़ापन, बोलने में व्यवधान, बेचैनी, अनिद्रा व न्यूरोटिकल मेंटल डिसॉर्डर की समस्या हो सकती है। हृदय रोग, शारीरिक शिथिलता, रक्तचाप जैसी बीमारी होने का भी खतरा रहता है।
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