आज सुबह पढ़ा कि शाहरुख़ खान को उनकी समाज सेवा के लिए दाओस (स्विट्ज़रलैंड) में क्रिस्टल अवॉर्ड दिया गया। पढ़कर हैरानी हुई। और पढ़ा तो पता चला कि शाहरुख़ एक नॉन प्रॉफिटेबल संस्था चलाते हैं, http://meerfoundation.org/ – ये फाउंडेशन गरीब बच्चों और एसिड के हमलों में झुलस गई महिलाओं की बेहतरी के लिए काम करती है। मीर फाउंडेशन का नाम दिमाग पर ज़ोर डालने पर भी याद नहीं आया कि कहीं पढ़ा हो या शाहरुख़ के साथ इसका जिक्र आया हो। यहाँ से मन में शंका के बीज ने जन्म ले लिया था।
पिछले एक साल की ख़बरों पर निगाह डाली तो पाया कि पिछले साल नवंबर के बाद से इसकी ख़बरें मीडिया में आना शुरू हुई और शाहरुख़ को अवॉर्ड मिलने तक कायम रही। फिर मैंने इस संस्था के रजिस्ट्रशन की तारीख खोजी तो पाया 29 अक्टूबर 2013 को ये संस्था मीर फाउंडेशन पंजीकृत हुई थी। जो लोग अपनी पिकनिक तक मीडिया को दिखाते हैं, वे इतना बड़ा काम प्रचारित क्यों नहीं करेंगे। 2013 से आप ये नेक काम करते हैं लेकिन छुपाकर रखते हैं, अच्छी बात है। फिर अचानक पिछले माह दिसंबर में मीर फाउंडेशन की खबरें हवा में तैरने लगती है।
फिर मैंने सोचा कि एक रियलिटी टेस्ट किया जाए। मुंबई स्थित इस संस्था के कार्यालय में फोन लगाकर बात की जाए और पूछा जाए कि एक गरीब बच्चे की मदद करोगे या नहीं। लिहाज़ा सुबह दस बजे मेरा ये टेस्ट शुरू हुआ। जानकारी के मुताबिक मीर फाउंडेशन का ऑफिस सांताक्रूज़ वेस्ट के विठ्ठल दास नगर में है। इसका लैंडलाइन नंबर (022 6669 9400) है। सुबह दस बजे कॉल करने पर रिकॉर्डेड आवाज़ में कहा गया कि ऑफिस साढ़े दस बजे खुलेगा, तब आप कॉल कर सकते हैं। इसके बाद कोई 11 बजे कॉल रिसीव हुआ लेकिन अबकी बार कॉल किसी और नंबर पर फॉरवर्ड किया जा रहा था।
फॉरवर्ड करने के दौरान मुझे एक फटीचर गीत ‘रंग दे तू मोहे गेरुआ’ झेलना पड़ा। इसके बावजूद कॉल किसी मनुष्य द्वारा रिसीव नहीं किया गया। अंततः दोपहर तक मैं अनगिनत बार ‘गेरुआ गीत’ का शिकार हुआ लेकिन बात फिर भी न हुई। एक हेल्पलाइन नंबर पर आप गेरुआ गीत क्यों सुना रहे हैं भैया।
मैं कॉल कर जानना चाहता था कि मीर फाउंडेशन तेज़ाब हमलों से पीड़ित महिलाओं की मदद कैसे करता है। उनको चिकित्सीय सहायता और क़ानूनी मदद किस तरह मुहैया करवाता है। कैंसर के मरीज बच्चों की बोर्डिंग की व्यवस्था कैसे करता है। मगर अफ़सोस मेरी इस नंबर पर किसी से बात ही नहीं करवाई गई।
इसके बाद मीर फाउंडेशन का फेसबुक पेज देखा तो वहां भी सितंबर 2017 के बाद कोई गतिविधि नहीं मिली। इसके बाद मीर फाउंडेशन की वेबसाइट देखी तो वह भी अपूर्ण मिली। जैसे उनकी टीम के बारे में जानने की कोशिश करे तो आज भी ‘कमिंग सून’ लिखा आ रहा है। खैर फेसबुक पर तो सब झूठ ही लिखा जाता है सो ये भी झूठ ही होगा। दाओस में पुरस्कार लेता शाहरुख़ सत्य है और मैन स्ट्रीम मीडिया की स्तुति वाली ख़बरें सत्य है। बाकी गेरुआ गीत सुनना चाहे तो नंबर ऊपर लिखा ही हुआ है।
https://www.facebook.com/अपना-पागलखाना से साभार