भारत के बाहर भारतीयों की और उनमें भी युवाओं की एक बड़ी जमात है, जो रहती तो विदेश में है लेकिन जिनका दिल धड़कता है भारत के लिए। भले ही शिक्षा और रोजगार या बेहतर भविष्य के चलते वे विदेश में रहते हों लेकिन वतन से दूर रहकर भी वे सदैव वतन के सजग सिपाही की तरह खड़े दिखाई देते हैं। वे भारत की एक बड़ी पूंजी और बड़ी ताकत हैं, जिसे स्वयं भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी जाना, पहचाना और माना है।
इसी वर्ग में एक नाम है – ' विनय निगम' । विनय जो भारतीय नौसेना के सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारी और साहित्यकार माता शील निगम के पुत्र हैं। पिता कमांडर पी.डी. निगम (सेवानिवृत्त) भारतीय नौसेना में थे और माँ शील निगम हिंदी की कवयित्री, कहानीकार तथा स्क्रिप्ट लेखिका व हिंदी शिक्षिका हैं। उन्होंने मुंबई में दस वर्षों तक हिंदी अध्यापन किया और 15 वर्ष प्रधानाचार्या के पद पर रहीं । इसके अतिरिक्त दूरदर्शन, आकाशवाणी आदि पर उनकी कहानियों का प्रसारण होता रहा है और देश- विदेश की हिंदी की पत्र -पत्रिकाओं,पुस्तकों तथा ई पत्रिकाओं में भी उनकी कविताएं तथा कहानियाँ प्रकाशित होती रही हैं। । इस प्रकार राष्ट्र-प्रेम और राष्ट्रभाषा-प्रेम तो विनय निगम को घुट्टी में मिला है।
विनय निदम की माँ, हिंदी शिक्षिका व साहित्यकार शील निगम
विनय निगम की माँ, हिंदी शिक्षिका व साहित्यकार शील निगम
विनय निगम ऑस्ट्रेलिया के मेलबोर्न शहर में बसे विनय वित्तीय सेवाओं, उच्च शिक्षा, व्यावसायिक शिक्षा तथा प्रशिक्षण के कार्यों से जुड़े हैं । उन्होंने अपने पद के दायित्वों को निभाते हुए अपने राष्ट्र व राष्ट्र भाषा – प्रेम को कभी बिसराया नहीं । 2013 में जब ऑस्ट्रेलिया में यह विचार-विमर्श किया जा रहा था कि ऑस्ट्रेलिया में हिंदी क्यों नहीं पढ़ाई जानी चाहिए । ऑस्ट्रेलिया सरकार के विदेश एवं व्यापार विभाग ( Department of Foreign Affairs & trade, Govt. of Australia) ने "Australia in Asian Century Country strategies." विषय पर परामर्श आमंत्रित किए थे। इनमें एक विषय यह भी था कि ऑस्ट्रेलिया में हिंदी को बढ़ावा दिया जाए या नहीं ? (Whether to promote Hindi in Australia) तब उन्होंने भारत-ऑस्ट्रेलिया संबंधों में हिंदी के महत्व को आधार बना कर ‘Consultations on the Australia in the Asian Century Country Strategies’ में मेलबोर्न में निम्नलिखित लेख को ऑस्ट्रेलिया सरकार के विदेश एवं व्यापार विभाग में प्रस्तुत किया । अंतत: सरकार ने उनके व उनके साथियों के दृष्टिकोण को स्वीकारते हुए ऑस्ट्रेलिया में हिंदी शिक्षण के लिए अधिक धनराशि उपलब्ध करवाने पर गंभीरता से विचार किया। इस प्रकार भारत के सुपूतों ने अपनी तत्परता और सजगता से ऑस्ट्रेलिया में हिंदी की जंग को जीत लिया। प्रस्तुत है विनय निगम का वह लेख
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