Tuesday, December 24, 2024
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1 जनवरी से नहीं गुड़ी पड़वा से शुरु होता है हमारा नव वर्ष

18 मार्च 2018 से चैत्र नवरात्रि के साथ ही हिंदू नववर्ष विक्रम संवत् 2075 प्रारंभ होगा। ऐसी मान्यता है कि इस दिन नक्षत्र शुभ स्थिति में आ जाते हैं और किसी भी नए काम को शुरू करने के लिए यह मुहूर्त शुभ होता है| यही नहीं शक्ति और भक्ति के नौ दिन यानी कि नवरात्रि स्थापना का पहला दिन भी यही है|

विक्रम संवत हिन्दू पंचांग में समय गणना की प्रणाली का नाम है। यह संवत 57 ई.पू. आरम्भ होती है।

चैत्र शुक्लपक्ष प्रतिपदा से एक अरब 97 करोड़ 39 लाख 49 हजार 117 साल पहले इसी दिन को ब्रह्मा जी ने सृष्टि का सृजन किया था।

सम्राट विक्रमादित्य ने 2075 साल पहले इसी दिन राज्य स्थापित कर विक्रम संवत की शुरुआत की।

बारह महीने का एक वर्ष और सात दिन का एक सप्ताह रखने का प्रचलन विक्रम संवत से ही शुरू हुआ। महीने का हिसाब सूर्य व चंद्रमा की गति पर रखा जाता है। यह बारह राशियाँ बारह सौर मास हैं। जिस दिन सूर्य जिस राशि में प्रवेश करता है उसी दिन की संक्रांति होती है। पूर्णिमा के दिन, चंद्रमा जिस नक्षत्र में होता है। उसी आधार पर महीनों का नामकरण किया गया है। चंद्र वर्ष सौर वर्ष से 11 दिन 3 घाटी 48 पल छोटा है। इसीलिए हर 3 वर्ष में इसमें 1 महीना जोड़ दिया जाता है।

ये संवत नेपाल का आधिकारिक संवत् है। आज भी नेपाल में यही संवत् राष्ट्रीय संवत् के रूप में मान्य है, वहाँ सरकार का सारा कामकाज विक्रम संवत् के अनुसार ही होता है और हमारे देश में अंग्रेजी तारीखों से।

‘चैत्रे मासि जगद ब्रह्मा ससर्ज प्रथमे अहनि,
शुक्ल पक्षे समग्रेतु तदा सूर्योदये सति’

ब्रह्म पुराण में वर्णित इस श्लोक के मुताबिक चैत्र मास के प्रथम दिन प्रथम सूर्योदय पर ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना की थी। इसी दिन से संवत्सर की शुरूआत होती है।

हिन्दू पंचांग के अनुसार नया साल चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से आरम्भ होता है। जोकि इस बार 18 मार्च से शुरु हो रहा है। हिन्दू पंचांग के आधार पर इस बार नववर्ष का नाम है विरोधीकृत संवत्सर होगा। नवरात्रि की शुरुआत रविवार से हो रही है इस कारण इसके राजा सूर्य देव होंगे और शनिदेव मंत्री रहेंगे।

कहा जाता है कि ब्रह्मा ने सूर्योदय होने पर सबसे पहले चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को सृष्टि की संरचना शुरू की। उन्होंने इसे प्रतिपदा तिथि को प्रवरा अथवा सर्वोत्तम तिथि कहा था। इसलिए इसको सृष्टि का प्रथम दिवस भी कहते हैं। इस दिन से संवत्सर का पूजन, नवरात्र घटस्थापन, ध्वजारोपण, वर्षेश का फल पाठ आदि विधि-विधान किए जाते हैं।चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा वसन्त ऋतु में आती है। इस ऋतु में सम्पूर्ण सृष्टि में सुन्दर छटा बिखर जाती है। विक्रम संवत के महीनों के नाम आकाशीय नक्षत्रों के उदय और अस्त होने के आधार पर रखे गए हैं। सूर्य, चन्द्रमा की गति के अनुसार ही तिथियाँ भी उदय होती हैं। मान्यता है कि इस दिन दुर्गा जी के आदेश पर श्री ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की थी। इस दिन दुर्गा जी के मंगलसूचक घट की स्थापना की जाती है।

सिंधी नववर्ष चेटीचंड उत्सव से शुरू होता है जो चैत्र शुक्ल द्वितीया को मनाया जाता है। सिंधी मान्यताओं के अनुसार इस शुभ दिन भगवान् झूलेलाल का जन्म हुआ था जो वरूण देव के अवतार हैं।

इसी दिन मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान् श्रीरामचन्द्रजी के राज्याभिषेक अथवा रोहण के रूप में मनाया गया। इसी दिन महाराज युधिष्ठिर का राज्याभिषेक हुआ था।अगर ज्योतिष की माने तो प्रत्येक संवत् का एक विशेष नाम होता है| विभिन्न ग्रह इस संवत् के राजा, मंत्री और स्वामी होते हैं| इन ग्रहों का असर वर्ष भर दिखाई देता है| सिर्फ यही नहीं समाज को श्रेष्ठ (आर्य) मार्ग पर ले जाने के लिए स्वामी दयानंद सरस्वती ने इसी दिन को ‘आर्य समाज’ स्थापना दिवस के रूप में चुना था| इसी शुभ दिन महर्षि दयानन्द ने आर्यसमाज की स्थापना की थी। यह दिवस राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक श्री केशव बलिराम हेडगेवार के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है।

नव संवत्सर के दिन नीम के कोमल पत्तों और ऋतु काल के पुष्पों का चूर्ण बनाकर उसमें काली मिर्च, नमक, हींग, जीरा, मिश्री, इमली और अजवाइन मिलाकर खाने से रक्त विकार आदि शारीरिक रोग होने की संभावना नहीं रहती है तथा वर्षभर हम स्वस्थ रह सकते हैं। इतना न कर सके तो कम-से-कम चार-पाँच नीम की कोमल पत्त्यिाँ ही सेवन कर ले तो पर्याप्त रहता है। इससे चर्मरोग नहीं होते हैं। महाराष्ट्र में तथा मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र के इऩ्दौर और उज्जैन संभाग में पूरनपोली या मीठी रोटी बनाने की प्रथा है। मराठी समाज में गुड़ी सजाकर भी बाहर लगाते हैं। यह गुड़ी नव वर्ष की पताका का ही स्वरूप है।

भारत भर के सभी प्रान्तों में यह नव-वर्ष विभिन्न नामों से मनाया जाता है जो दिशा व स्थानानुसार सदैव मार्च-अप्रेल के माह में ही पड़ता है | गुड़ी पड़वा, होला मोहल्ला, युगादि, विशु, वैशाखी, कश्मीरी नवरेह, उगाडी, चेटीचंड, चित्रैय तिरुविजा आदि सभी की तिथि इस नव संवत्सर के आसपास ही आती है।

बारह महीने का एक वर्ष और सात दिन का एक सप्ताह रखने का प्रचलन विक्रम संवत से ही शुरू हुआ। महीने का हिसाब सूर्य व चंद्रमा की गति पर रखा जाता है | यह बारह राशियाँ बारह सौर मास है। जिस दिन सूर्य जिस राशि में प्रवेश करता है उसी दिन की संक्रांति होती है | पूर्णिमा के दिन, चंद्रमा जिस नक्षत्र में होता है। उसी आधार पर महीनों का नामकरण हुआ है | चंद्र वर्ष सौर वर्ष से 11 दिन 3 घाटी 48 पल छोटा है। इसीलिए हर 3 वर्ष में इसमें 1 महीना जोड़ दिया जाता है।

गुड़ी पड़वा ‘हिन्दू नववर्ष’ के रूप में पूरे भारत में मनाई जाती है। चैत्र मास में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को “गुड़ी पड़वा” या “वर्ष प्रतिपदा” या “उगादि” (युगादि) कहा जाता है। इस दिन सूर्य, नीम की पत्तियाँ, अर्ध्य, पूरनपोली, श्रीखंड और ध्वजा पूजन का विशेष महत्त्व होता है।

गुड़ी का अर्थ विजय पताका होती है। ‘युग‘ और ‘आदि‘ शब्दों की संधि से बना है ‘युगादि‘ । आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में ‘उगादि‘ और महाराष्ट्र में यह पर्व ‘ग़ुड़ी पड़वा‘ के रूप में मनाया जाता है। विक्रमादित्य द्वारा शकों पर प्राप्त विजय तथा शालिवाहन द्वारा उन्हें भारत से बाहर निकालने पर इसी दिन आनंदोत्सव मनाया गया । इसी विजय के कारण प्रतिपदा को घर-घर पर ‘ध्वज पताकाएं’ तथा ‘गुढि़यां’ लगाई जाती है गुड़ी का मूल …संस्कृत के गूर्दः से माना गया है जिसका अर्थ है चिन्ह, प्रतीक या पताका,पतंग आदि- कन्नड़ में कोडु जिसका मतलब है चोटी, ऊंचाई, शिखर, पताका आदि। मराठी में भी कोडि का अर्थ है शिखर, पताका। हिन्दी-पंजाबी में गुड़ी का एक अर्थ पतंग भी होता है। आसमान में ऊंचाई पर फहराने की वजह से इससे भी पताका का आशय स्थापित होता है।

वैसे तो पौराणिक रूप से गुड़ी पड़वा का अलग महत्त्व है, लेकिन प्राकृतिक रूप से इसे समझा जाए तो सूर्य ही सृष्टि के पालनहार हैं। अत: उनके प्रचंड तेज को सहने की क्षमता पृ‍‍थ्वीवासियों में उत्पन्न हो, ऐसी कामना के साथ सूर्य की अर्चना की जाती है। हमारी भारतीय संस्कृति और ऋषियों-मुनियों ने ‘गुड़ी पड़वा’ अर्थात चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से ‘नववर्ष’ का आरंभ माना है। दुर्गा देवी अर्थ तथा महत्त्व ‘गुड़ी’ का अर्थ होता है- ‘विजय पताका’। कहा जाता है कि इसी दिन ब्रह्मा ने सृष्टि का निर्माण किया था। इसी दिन से नया संवत्सर भी प्रारम्भ होता है। अत: इस तिथि को ‘नवसंवत्सर’ भी कहते हैं।

इस ऋतु में सम्पूर्ण सृष्टि में सुन्दर छटा बिखर जाती है। मान्यताएँ हिन्दू धर्म में गुड़ी पड़वा को लेकर कई प्रकार की मान्यताएँ व्याप्त हैं- जैसे- कहा जाता है कि चैत्र मास में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा के दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप में अवतार लिया था। सूर्य में अग्नि और तेज हैं, चन्द्रमा में शीतलता। शान्ति और समृध्दि का प्रतीक सूर्य और चन्द्रमा के आधार पर ही सायन गणना की उत्पत्ति हुई है। इससे ऐसा सामंजस्य बैठ जाता है कि तिथि वृद्धि, तिथि क्षय, अधिक मास, क्षय मास आदि व्यवधान उत्पन्न नहीं कर पाते। तिथि घटे या बढ़े, लेकिन ‘सूर्य ग्रहण’ सदैव अमावस्या को होगा और ‘चन्द्र ग्रहण’ सदैव पूर्णिमा को ही होगा। विष्णु भगवान ने वर्ष प्रतिपदा के दिन ही प्रथम जीव अवतार (मत्स्यावतार) लिया था।

मराठी भाषियों की एक मान्यता यह भी है कि मराठा साम्राज्य के अधिपति छत्रपति शिवाजी महाराज ने वर्ष प्रतिपदा के दिन ही ‘हिन्दू पद पादशाही’ का भगवा विजय ध्वज लगाकर हिन्दू साम्राज्य की नींव रखी थी।

चैत्र ही एक ऐसा महीना है, जिसमें वृक्ष तथा लताएँ फलते-फूलते हैं। शुक्ल प्रतिपदा का दिन चंद्रमा की कला का प्रथम दिवस माना जाता है। जीवन का मुख्य आधार वनस्पतियों को सोमरस चंद्रमा ही प्रदान करता है। इसे औषधियों और वनस्पतियों का राजा कहा गया है। इसीलिए इस दिन को वर्षारंभ माना जाता है। कई लोगों की मान्यता है कि इसी दिन भगवान राम ने बाली के अत्याचारी शासन से दक्षिण की प्रजा को मुक्ति दिलाई थी। बाली के त्रास से मुक्त हुई प्रजा ने घर-घर में उत्सव मनाकर ध्वज (गुडियाँ) फहराए। आज भी घर के आँगन में गुड़ी खड़ी करने की प्रथा महाराष्ट्र में प्रचलित है। इसीलिए इस दिन को ‘गुड़ी पडवा’ नाम दिया गया।

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