· नामवर सिंह व मैनेजर पांडेय की उपस्थिति में हुआ लोकार्पण
· माता जी के रहते यह रचनावली आती तो ज्यादा खुशी होतीःनीलमाधव चौधरी
· विद्रोही व रूढिभंजक थे राजकमल चौधरीःमैनेजर पांडेय
· साहित्य अकादमी सभागार में राजकमल चौधरी के चाहने वालों की उमड़ी भीड़
नई दिल्ली/19.6.15
दिल्ली के साहित्य अकादमी समभागार में ‘राजकमल चौधरी रचनावली’ का लोकार्पण प्रसिद्ध आलोचक-द्वय नामवर सिंह ,मैनेजर पांडेय और विख्यात इतिहासकार तथा राजकमल चौधरी के अंतरंग मित्र डी.एन.झा ने किया। राजकमल प्रकाशन समूह द्वारा आयोजित इस लोकार्पण कार्यक्रम में बोलते हुए नामवर सिंह ने कहा- राजकमल चौधरी की रचनाओं ने पीढियों को प्रेरित किया और उनकी रचनावली का प्रकाशन हिन्दी जगत और हिन्दी साहित्य को आगे बढाने में बहुमूल्य योगदान देगा. 50-60 के संक्रमण काल में राजकमल चौधरी ने अपनी रचनाओं के माध्यम से गद्य व पद्य दोनों क्षेत्रों में समानंतर लेखन क्षमता का परिचय दिया। ‘राजकमल चौधरी रचनावली’ के संपादक देवशंकर नवीन की पीठ थपथपाते हुए नामवर सिंह ने कहा कि जो नवीन ने किया है उसे हिन्दी जगत याद रखेगा। बहुत लोगों ने सोचा इस काम को करने के लिए, बहुत लोग करना चाहते थे लेकिन नवीन ने कर दिखाया। हिन्दी साहित्य नवीन के इस कार्य को याद रखेगा।
वहीं मैनेजर पांडेय राजकमल चौधरी के रचना संसार को रेखांकित करते हुए कहा कि राजकमल चौधरी विद्रोही व रूढिभंजक व्यक्ति थे। उनका यह विद्रोह उनके साहित्य में भी प्रकट होता है। उन्होंने जो रचनाएं रची वो रचनाएं वो ही रच सकते थे। कविता में उन्होंने दुर्लभ प्रयोग किया। वरिष्ठ लेखिका मृदुला गर्ग ने अपनी बात रखते हुए कहा – “राजकमल चौधरी ने मात्र 38 वर्ष की आयु में उपन्यास, कहानी, और कविता में विपुल कृतियां रचीं और हर कृति अपने समय से आगे विशिष्ट और मौलिक थीं। वह पहले आदमी थे जिन्होंने हमारे अर्थतंत्र और परमिट राज में व्याप्त भ्रष्टाचार और उससे उत्पन्न नवधनाढ्य वर्ग के अनाचार के महत्व को पहचाना। स्वयं उन्होंने इन्हीं विषयों पर केन्द्रित अनेक रचनाएं रचीं। दुर्भाग्य से उनका सबसे चर्चित उपन्यास ‘मछली मरी हुई’ मसहूर हुआ स्त्री समलैंगिकता पर होने के कारण। लेखक ने स्वयं भूमिका में यह दावा किया और यहीं पर मेरी उनके नज़रिए पर घोर आपत्ति है। स्त्री समलैंगिकता को उन्होंने एक रोग माना है और स्त्री को ‘स्वस्थ’ बनाने का जो तरीका इस्तेमाल किया गया है वह है ‘राक्षसी बलात्कार’। समलैंगिक न रहना उनके हिसाब से ‘स्वस्थ’ होना है। इस आपत्ति को छोड़ दें तो उपन्यास इतना पठनीय है कि जब मेरे पास आया तो खड़े-खड़े ही डेढ़ घंटे में मैंने उसे पढ़ डाला।”
इस अवसर पर विशेष रूप से राजकमल चौधरी के घनिष्ठ मित्र व विख्यात इतिहासकार डी.एन.झा उनके साथ की अपनी पुरानी यादों को साझा करते हुए कहा कि राजकमल चौधरी अंतर्विरोधों के पोटली थे। इस अवसर उनके सुपुत्र नीलमाधव चौधरी ने कहा कि जब भी मैं पिताजी के बारे में बोलना चाहता हूं बोल नहीं पाता हूं। पिताजी की रचनावली के लोकार्पण में मैं शामिल हो सकूंगा यह मैंने सोचा नहीं था। इस रचनावली को आने में बहुत देर हो गयी। इसे बहुत पहले आ जाना चाहिए था। माता जी के रहते यह रचनावली आती तो ज्यादा खुशी होती।
राजकमल चौधरी रचनावली के संपादक देवशंकर नवीन ने इस मौके पर कहा कि मेरे लिए यह क्षण बहुत ही खुशी का है। पिछले 37 वर्षों से जुटाई गई सामग्रियों को प्रकाशित हुआ देखकर अपार हर्ष हो रहा है। राजकमल चौधरी अपने समय के सर्वाधिक बहुपठित लेखकों में से थे। उनके लेखन ने मेरे जीवन की दिशाएं बदली हैं। पूरी जिंदगी अपने किसी भी लाभा, लोभ और कामना की पूर्ति हेतु राजकमल चौधरी ने किसी भी सत्ता से समझौता नहीं किया। इस अर्थ में उनके लेखन में मुझे जीवन जीने की कला भी सिखाई। यद्यपि आज भी मैं यह दावा करने की स्थिति में नहीं हूं कि उनकी सारी रचनाएं मैंने उपलब्ध कर ली है। अभी भी हजार पृष्ठ के करीब सामग्री निश्चय ही बिखरी हुई है, जिन्हें जुटाना शेष है। यह रचनावली शशिकांता जी के जीवन-काल में आ गयी होती तो कदाचित मेरी प्रशन्नता और अधिक होती।
इस कार्यक्रम में गंगेश गुंजन, ललितेश मिश्र, अभिमन्यु खां, अन्विता अब्बी, सौमित्र मोहन, मंगलेश डबराल, मदन कश्यप, आलोक श्रीवास्तव, गीता श्री, प्रभात रंजन, संदीप चटर्जी, अल्पना मिश्र, देवेन्द्र राज अंकुर, सुरेश सलिल, रवीन्द्र त्रिपाठी, अनिल पांडेय, संजीव सिन्हा व राजकमल चौधरी के कई ग्रामीण सहित सैकड़ों लोग उपस्थित हुए।
राजकमल प्रकाशन से आठ खंडों में प्रकाशित इस रचनावली के प्रथम दो खंडों में कविता, तीसरे-चौथे खंड में कथा, पांचवे-छठे खंड में उपन्यास, सातवे खंड में निबंध नाटक व अंतिम खंड में पत्र-डायरी को शामिल किया गया है। धन्यवाद ज्ञापन राजकमल समूह के मुख्य कार्यकारी अधिकारी आमोद महेश्वरी ने किया।
गौरतलब है कि मूल रूप से बिहार के सहरसा जिला के रहने वाले राजकमल चौधरी 60 के दशक में अपनी कथा-कहानियों से चर्चा में रहे थे। 38 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया। इस बीच 15 वर्षों तक उन्होंने सक्रिय रूप से हिन्दी-मैथिली साहित्य की सेवा की।
‘राजकमल चौधरी रचनावली’ पर प्रकाशक ने की विशेष छूट की घोषणा
राजकमल प्रकाशन समूह ने राजकमल चौधरी के प्रशंसकों के लिए ‘राजकमल चौधरी रचनावली’ पर 30 जून तक के लिए विशेष छूट की घोषणा की है। पेपरबैक संस्करण का सेट 3000 की जगह 1999 रूपये में व हार्डबैक संस्करण का सेट 8000 रूपये की जगह 4999 रूपये में उपलब्ध कराया गया है। इसके लिए आप राजकमल प्रकाशन को फोन (011-23288769 ) पर अपना ऑर्डर बुक करा सकते हैं।
रचनाकार परिचयः राजकमल चौधरी
राजकमल चौधरी का जन्म अपने ननिहाल रामपुर हवेली में 13-12-1929 को तथा निधन राजेन्द्र सर्जिकल वार्ड,पटना में 19-06-1967 को हुआ। उनका पितृग्राम महिषी, जिला-सहरसा
( बिहार ) है। बी.कॉम. तक की शिक्षा प्राप्त करने के बाद कुछ दिनों तक पटना सचिवालय में क्लर्की की, पर वहाँ मन रमा नहीं। नौकरी छोड़ दी और स्वतंत्र लेखन में लग गए।
प्रकाशित कृतियाँ हैं : मछली मरी हुई, नदी बहती थी, ताश के पत्तों का शहर, शहर था शहर नहीं था, अग्निस्नान,बीस रानियों के बाइस्कोप, देहगाथा (सुनो ब्रजनारी), एक अनार एक बीमार, आदिकथा, आन्दोलन, पाथर फूल (उपन्यास), कंकावती, मुक्ति-प्रसंग, स्वरगन्धा, ऑडिट रिपोर्ट, विचित्र ( कविता-संग्रह ), मछली जाल, सामुद्रिक एवं अन्य कहानियाँ, प्रतिनिधि कहानियाँ : राजकमल चौधरी, पत्थर के नीचे दबे हुए हाथ, रा.क.चौ. की चुनी हुई कहानियाँ, बन्द कमरे में कब्रगाह, राजकमल चौधरी : संकलित कहानियाँ, खरीद बिक्री, साँझक गाछ ( कहानी-संग्रह ),शवयात्रा के बाद देहशुद्धि, बर्फ और सफेद कब्र पर एक फूल
( निबन्ध-नाटक-संग्रह ) के अलावा शताधिक कहानियाँ, निबन्ध आदि मैथिली तथा हिन्दी में प्रकाशित। कई रेडियो रूपक और नाटक भी प्रकाशित, प्रसारित। फुटकर रचनाओं की कई पुस्तकें प्रकाशित।
संपादक परिचयः देवशंकर नवीन
देवशंकर नवीन का जन्म 2 अगस्त, 1962 को मोहनपुर, जिला सहरसा ( बिहार ) में हुआ। एम.ए., पी-एच.डी.
( हिन्दी, मैथिली ), एम.एस-सी. ( भौतिकी ), पी.जी. डिप्लोमा
( पुस्तक प्रकाशन, अनुवाद ) की उपाधियाँ देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों से प्राप्त कीं। जी.एल.ए. कॉलेज,डालटनगंज, में छह वर्षों तक अध्यापन किया। मार्च 1993 से फरवरी 2009 तक नेशनल बुक ट्रस्ट के सम्पादकीय विभाग में कार्यरत रहे। फरवरी 2009 से मई 2014 तक अनुवाद अध्ययन एवं प्रशिक्षण विद्यापीठ, इग्नू में अध्यापन किया। फिलहाल जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के भारतीय भाषा केन्द्र में प्रोफेसर पद पर कार्यरत हैं।
प्रकाशित कृतियाँ हैं : जमाना बदल गया, पहचान, सोना बाबू का यार (कहानी), अभिधा, चानन-काजर, ओ ना मा सी (कविता), हाथी चलए बजार, राजकमल चौधरी का रचनाकर्म, आधुनिक मैथिली साहित्यिक परिदृश्य, मैथिली साहित्य : दशा दिशा सन्दर्भ, राजकमल चौधरी : जीवन एवं सृजन आदि (आलोचना)। सम्पादित—प्रतिनिधि कहानियाँ : राजकमल चौधरी, रा.क.चौ. की चुनी हुई कहानियाँ, अग्निस्नान एवं अन्य उपन्यास, बन्द कमरे में कब्रगाह, पत्थर के नीचे दबे हुए हाथ, बर्फ और सफेद कब्र पर एक फूल, विचित्र, ऑडिट रिपोर्ट, सांझक गाछ, उत्तर आधुनिकता : कुछ विचार (आलोचना)। मैथिली-हिन्दी की समस्त पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित एवं अंग्रेजी सहित कई अन्य भारतीय भाषाओं में रचनाएँ अनूदित।
संपर्क
आशुतोष कुमार सिंह
साहित्य प्रचार अधिकारी
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