नोबेल शांति पुरस्कार विजेता और बचपन बचाओ आंदोलन के संस्थापक कैलाश सत्यार्थी ने बाल यौन हिंसा की लगातार बढ़ रही घटनाओं को ‘राष्ट्रीय आपातकाल’ बताया है। कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फाउंडेशन द्वारा आयोजित संगोष्ठी में उन्होंने कहा, हर पल दो बेटियां दुष्कर्म का शिकार हो रही हैं। यही नहीं, दुष्कर्म के बाद कई बच्चियों की हत्या तक कर दी जाती है। बाल सुरक्षा को सुनिश्चित करने और उसे प्रभावी बनाने के मकसद से यह संगोष्ठी आयोजित की गई थी।
‘एवरी चाइल्ड मैटर्स : ब्रिजिंग नॉलेज गैप्स फॉर चाइल्ड प्रोटेक्शन इन इंडिया’ पर आयोजित संगोष्ठी में सत्यार्थी का कहना था, ‘इसका मतलब यह हुआ कि भारत की आत्मा बलत्कृत हो रही है और मार दी जा रही है। देश में रोजाना 55 बच्चे दुष्कर्म के शिकार हो रहे हैं और हजारों मामलों की रिपोर्टिंग नहीं हो पाती है।’
सत्यार्थी का कहना था कि आधुनिक और स्वतंत्र भारत बनाने का मकसद तब तक पूरा नहीं हो सकता, जब तक कि बच्चे असुरक्षित हैं। इसके साथ ही उन्होंने सभी राजनीतिक दलों से इस मुद्दे की गंभीरता को समझेने की अपील की, ताकि दुष्कर्म पीडि़त बच्चों को जल्द न्याय मिल सके। इसके लिए संसद का कम से कम एक दिन बच्चों को समर्पित किया जाए।
कैलाश सत्यार्थी ने ‘द चिल्ड्रेन कैननोट वेट’ नामक रिपोर्ट जारी करते हुए इस बात पर दुख भी व्यक्त किया कि भारत में बाल यौन दुर्व्यवहार के मुकदमे दर्ज किए जाते हैं, लेकिन लचर न्यायिक व्यवस्था के चलते उसको निपटाने में दशकों लग जाते हैं। बच्चों को स्वाभाविक रूप से न्याय मिल सके, इसके लिए उन्होंने ‘नेशनल चिल्ड्रेन्स ट्रिब्यूनल’ की मांग की। पॉक्सो के तहत लंबित पड़े मुकदमों के त्वरित निपटान के ख्याल से उन्होंने फास्ट ट्रैक कोर्ट की भी मांग की।सत्यार्थी का यह भी कहना था,’बच्चों के साथ दुष्कर्म और दुर्व्यवहार के आंकड़े जिस तरह सामने आ रहे हैं और इसके बावजूद न्याय मिलने में देरी हो रही है, उस स्थिति में तो न्याय दूर का सपना लग रहा है। दायित्वपूर्ण और त्वरित न्याय मिलने के अभाव में ही कठुवा, उन्नाव, सूरत और सासाराम में दुष्कर्म व दुर्व्यवहार के लगातार मामले सामने आ रहे हैं और बढ़ रहे हैं।
दुष्कर्म के शिकार बच्चों को तुरंत और प्रभावी न्याय दिलाने के परिप्रेक्ष्य में कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फाउंडेशन ने एक रिपोर्ट को तैयार किया है। यह रिपोर्ट बाल यौन शोषण के लंबित पड़े मुकदमों की एक राज्यवार रूपरेखा प्रस्तुत करती है।
फाउंडेशन द्वारा तैयार यह रिपोर्ट वास्तविकता पर गंभीरता से रोशनी डालती है। अरुणाचल प्रदेश का ही एक उदाहरण यदि हम सामने रखें तो वहां के एक बच्चे को जिसके यौन शोषण का मामला दर्ज है, उसे न्याय के लिए 99 साल इंतजार करना होगा। वह भी तब, जब आज से कोई नया मामला दर्ज नहीं किया जाता है। इसका मतलब यह हुआ कि उसको जिंदगी भर न्याय नहीं मिल पाएगा। गुजरात की स्थिति भी कोई बेहतर नहीं है। गुजरात में दुष्कर्म के शिकार बच्चे को न्याय के लिए 53 साल तक लंबा इंतजार करना पड़ेगा।
बाल यौन शोषण के तहत दर्ज मुकदमों को निपटाने में जिस तरह से लंबा और दुखद इंतजार करना पड़ता है उस स्थिति-परिस्थिति में नोबेल शांति पुरस्कार विजेता ने सवाल किया कि कि क्या आप चाहते हैं कि 15 वर्ष के बच्चे के साथ आज जो दुर्व्यवहार हुआ है उसके लिए 70 वर्ष की उम्र तक उसे न्याय के लिए इंतजार करना पड़े?
गोष्ठी में उनका कहना था कि ये आंकड़े और शोध बच्चों के खिलाफ अपराधों को समझने में एक और जहां हमारी मदद करेंगे, वहीं दूसरी ओर इसके माध्यम से हम उनके खिलाफ तेजी से बढ़ रहे अपराध के उन्मूलन की दिशा में भी सक्रिय होंगे।
इस रिपोर्ट के अलावा दो अन्य रिपोर्ट भी इस कार्यक्रम में जारी की गईं। एक रिपोर्ट भारत के युवाओं के बीच एक ओर जहां जागरूकता को बढाने और बाल यौन दुर्व्यवहार को कम करने से संबंधित है, वहीं दूसरी रिपोर्ट बाल यौन दुर्व्यवहार के परिणामस्वरूप बच्चों पर पड़ने वाले मनोवैज्ञानिक प्रभाव को समझने और उससे निपटने और उसका स्थाई समाधान खोजने से संबंधित है।
कार्यक्रम में शिक्षाशास्त्रियों, विश्वविद्यालय और कॉलेज के शोधार्थियों, सिविल सोसाइटी संगठन के प्रतिनिधियों, संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों के प्रतिनिधियों, सरकारी अधिकारियों, कानूनी शोधकर्ताओं, न्यायपालिका के प्रतिनिधियों और भारी संख्या में युवाओं ने भाग लिया।
साभार- http://samachar4media.com/ से