मोदी सरकार के शासनकाल के एक साल में बांग्लादेश की सीमा पर पहरा दे रहे करीब 30,000 सैनिकों को एक और जिम्मेदारी मिल गई है। यह जिम्मेदारी मुस्लिम बहुल पड़ोसी देश में अवैध रूप से गाय की तस्करी को रोकना है।
करीब-करीब हर दूसरी रात बांस की छड़ी और रस्सी हाथ में लिए सैनिक जूट और धान के खेतों में दौड़ते हैं और तालाबों में तैरकर बांग्लादेश के मार्केट की ओर गाय, बछड़े या बैल आदि लेकर जा रहे तस्करों का पीछा करते हैं। इस साल बीएसएफ ने अब तक 90,000 मवेशी को जब्त किया है और 400 भारतीय एवं बांग्लादेशी तस्करों को पकड़ा है।
वधशालाओं को मवेशी की बिक्री, गोमांस प्रोसेसिंग यूनिट्स, चमड़ा उद्योग एवं बोन क्रशिंग इंडस्ट्रीज के लिए नीलामी को ऑपरेट करने वाले बांग्लादेशी व्यापारी का अनुमान है कि देश की करीब 190 अरब डॉलर की इकॉनमी में यह क्षेत्र करीब 3 फीसदी योगदान देता है।
भारत की पॉलिसी का बांग्लादेश की जीडीपी पर क्या असर पड़ा है, यह तो पता नहीं चल सका है। लेकिन, बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना के राजनीतिक सलाहकार एच.टी.इमाम ने कहा कि इसमें कोई शक नहीं है कि गोमांस व्यापार एवं चमड़ा उद्योग बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है।
बांग्लादेश के टॉप बीफ एक्सपोर्टर बंगाल मीटि के सैयद हसन हबीब ने बताया कि इसे अपने अंतरराष्ट्रीय ऑर्डरों में 75 फीसदी कटौती करनी पड़ी। कंपनी करीब 125 टन गोमांस खाड़ी के देशों में निर्यात करती है। उन्होंने कहा कि भारत के इस कदम के कारण पिछले छह महीनों में गायों की कीमत 40 फीसदी से ज्यादा बढ़ गई है और उनलोगों को दो प्रोसेसिंग यूनिट को बंद भी करना पड़ा।
हबीब ने घरेलू मांग की पूर्ति के लिए नेपाल, भूटान और म्यांमार से गाय आयात करने की योजना बनाई है लेकिन उनका कहना है कि भारतीय गाय का मांस और चमड़ा बहुत ही अच्छी क्वॉलिटी का होता है। बांग्लादेश चमड़ा उद्योग संघ के अध्यक्ष शाहीन अहमद ने कहा कि 190 चमड़ा कारखानों में 30 बंद चमड़े की कमी के कारण बंद हो गए और 4,000 वर्कर्स बेरोजगार हो गए।