नई दिल्ली। प्रेस की आजादी और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए हमेशा संघर्षरत रहने वाले वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर का कल आधी रात के बाद यहां एक निजी अस्पताल में निधन हो गया। वह 95 वर्ष के थे। वरिष्ठ पत्रकार के बड़े बेटे सुधीर नैयर ने बताया कि उनके पिता की मौत कल आधी रात के बाद 12 बजकर 30 मिनट पर एस्कॉर्ट्स अस्पताल में हुई ।
सुधीर नैयर ने बताया कि वह निमोनिया से पीड़ित थे और पांच दिन पहले उन्हें अस्पताल में भर्ती किया गया था। उनके परिवार में पत्नी के अलावा दो बेटे हैं। नैयर को प्रेस की आजादी और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करने वाले पत्रकार के रूप में जाना जाता है। उन्होंने स्टेट्समैन सहित विभिन्न अखबारों में काम किया। नैयर ने ‘बियॉन्ड द लाइन्स: एन ऑटोबायोग्राफी’ और ‘बिट्वीन द लाइन्स जैसी प्रसिद्ध पुस्तकें लिखी । इसके अलावा उन्होंने भारतीय राजनीति से संबंधित कई किताबें लिखी। वरिष्ठ पत्रकार प्रतिष्ठित स्तंभकार थे और उन्होंने 50 से ज्यादा अखबारों में संपादकीय लिखा है। उनका जन्म पाकिस्तान के सियालकोट में 1923 में हुआ था और उन्होंने अपने करियर की शुरुआत उर्दू अखबार से की थी।
वह 1990 में ब्रिटेन में भारत के उच्चायुक्त भी रहे और 1997 में उन्हें राज्य सभा के लिए मनोनीत किया गया। देश में लगे आपातकाल के दौरान उनकी गिरफ्तारी भी हुई थी। नैयर ने भारत और पाकिस्तान के बीच के तनावपूर्ण संबंधों को भी सामान्य करने की लगातार कोशिश की। उन्होंने अमृतसर के निकट अटारी-बाघा सीमा पर कार्यकर्ताओं के उस दल का नेतृत्व किया था, जिन्होंने भारत और पाकिस्तान के स्वतंत्रता दिवस पर वहां मोमबत्तियां जलाई थी।
कुलदीप नैयर वे हमेशा से वकील बनना चाहते थे, लेकिन वे अपनी वकालत जमा पाते, उससे पहले ही देश का बंटवारा हो गया. उनका परिवार सियालकोट छोड़कर भारत आ गया और कुलदीप वकालत का सपना छोड़ पत्रकारिता की पढ़ाई करने यूएस चले गए. पढ़ाई पूरी करने के बाद वो कई वर्षों तक भारत सरकार के प्रेस सूचना अधिकारी के तौर पर कार्यरत रहे. फिर यूएनआई, पीआईबी, स्टेट्समैन, इंडियन एक्सप्रेस के साथ लंबे समय तक जुड़े रहे और करीब 25 वर्षों तक ‘द टाइम्स’ लंदन के संवाददाता भी रहे.
कुलदीप नैयर ने इमरजेंसी से लेकर देश में हुई अन्य प्रमुख घटनाओं पर कई किताबें लिखीं।
इमरजेंसी के दौरान कुलदीप नैय्यर इंडियन एक्सप्रेस में काम कर रहे थे. 24 जून 1975, जिस रात इमरजेंसी लागू की गई थी, उस बात वो अख़बार के दफ्तर में थे.
उन्होंने उस वक़्त की यादों को साझा करते हुए कहा था, “हर वक्त ख़ौफ़ का साया मंडराता रहता था. कोई अपनी ज़ुबान नहीं खोलना चाहता था नहीं तो उसके गिरफ़्तार होने का डर लगा रहता था. व्यवसायी और उद्योगपतियों को उनके उद्योग-धंधों पर छापा मारकर निशाना बनाया जा रहा था. मीडिया खोखली हो चुकी थी. यहां तक कि प्रेस काउंसिल ने भी चुप्पी साध रखी थी. प्रेस की आज़ादी की रक्षा करने के लिए यह सर्वोच्च संस्था थी.”
उन्होंने इमरजेंसी से लेकर देश में हुई अन्य प्रमुख घटनाओं पर कई किताबें लिखी हैं. इमरजेंसी के दौरान जब वह एक्सप्रेस के एडिटर थे तो बावजूद इसके कि इंदिरा गांधी उनकी करीबी थीं, उन्होंने सरकार के खिलाफ अपनी कलम बुलंद रखी. इसका नतीजा यह हुआ कि मीसा एक्ट के अंतर्गत इंदिरा ने उन्हें भी तिहाड़ जेल भिजवा दिया. कुलदीप ने जेल में बिताए अपने इस समय को किताब की शक्ल दी थी जिसका नाम ‘इन जेल’ था.
पत्रकारिता के क्षेत्र में कुलदीप के योगदान को कोई नहीं भुला सकता. यह बात दिलचस्प है कि उनके जीवित रहते हुए उनके नाम से पत्रकारों को ‘कुलदीप नैयर पत्रकारिता अवार्ड’ दिया जाता रहा है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुलदीप नैयर को आज ”बुद्धिजीवी बताया और कहा कि वरिष्ठ पत्रकार को उनके निर्भीक विचारों के लिए हमेशा याद किया जाएगा। उन्होंने कहा कि वह उनके निधन से दुखी हैं। मोदी ने टि्वटर पर कहा, ”कुलदीप नैयर हमारे समय के बुद्धिजीवी थे। अपने विचारों में स्पष्ट और निर्भीक। बेहतर भारत बनाने के लिए आपातकाल, जन सेवा और प्रतिबद्धता के खिलाफ उनका कड़ा रुख हमेशा याद किया जाएगा।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर के निधन पर शोक जताया है। उन्होंने पत्रकार के परिवार, उनके प्रशंसक और सहकर्मियों के प्रति संवेदनाएं प्रकट की है। ममता ने ट्वीट किया, ” निडर पत्रकार और लेखक कुलदीप नैयर की मौत से दुखी हूं, मेरी संवेदनाएं उनके परिवार, प्रशंसक और सहकर्मियों के साथ है।”
द वीक मैगजीन के संपादक सच्चिदानंद मूर्ति ने नैयर को प्रेस की आजादी और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए हमेशा संघर्षरत रहने वाले पत्रकार के रूप में याद किया है। मूर्ति ने कहा, ”उन्होंने राजीव गांधी सरकार द्वारा लाए गए विवादित मानहानि विधेयक का विरोध किया था। भारत में नागरिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए वह सैदव काम करते रहे।”