पिछले साल दिसंबर में अमरावती की डॉक्टर दंपती को नियति के क्रूर चक्र का शिकार होना पड़ा, जब एक सड़क हादसे में अपनी चार महीने की बच्ची मीरा को उन्होंने खो दिया। यही नहीं अपनी तमाम कोशिशों के बावजूद वे बच्ची के अंग डोनेट नहीं करा पा रहे थे।
आठ महीने बाद एक मिसाल कायम करते हुए डॉक्टर दंपती उमेश सावरकर और अश्विनी ने 21 अगस्त को अपनी बच्ची मीरा के पहले जन्मदिन पर दो जरूरतमंद बच्चों की हार्ट सर्जरी का खर्च उठाया। मीरा के परिजनों की बदौलत अमरावती के देवगांव और वाघोली गांव के दो बच्चे अब सामान्य जिंदगी गुजार सकते हैं। साढ़े 4 साल की पायल पराटे और पांच वर्षीय आस्वाशिल धावले के दिल में एक छेद पाया गया था।
जन्मजात खराबी की वजह से बच्चों को बहुत दिक्कत उठानी पड़ रही थी। यही नहीं फंड का इंतजाम न होने की वजह से बच्चों की सर्जरी संभव नहीं थी। मीरा के पिता का कहना है, ‘मीरा के अंगों ने बच्चों को नई जिंदगी दी है लेकिन यह न तो हमारे भाग्य में था न हमारे हाथ में है। बच्ची की मौत के झटके से उबरते हुए हमने उम्मीद नहीं छोड़ी थी। इसी बीच हमने सर्जरी का लंबे अरसे से इंतजार कर रहे बच्चों की मदद करने का फैसला लिया।’
स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. उमेश और उनकी पथॉलजिस्ट पत्नी अश्विनी, आर्थिक मदद की आस लगाए बच्चों की तलाश में पिछले तीन महीने से अस्पतालों के चक्कर काट रहे थे। इसी दौरान वे अमरावती के श्री संत अच्युत महाराज हार्ट हॉस्पिटल (एसएसएएमएचएच) पहुंचे। यहां सामाजिक कार्यकर्ताओं ने उन्हें दो हार्ट की बीमारी से जूझ रहे दो बच्चों की केस फाइल दिखाई। आस्वाशिल की बीमारी का हाल ही में पता चला था, जबकि सरकारी मंजूरी नहीं मिलने की वजह से पायल के परिजन तकरीबन एक साल से सर्जरी का इंतजार कर रहे थे।
एसएसएएमएचएच के एक सामाजिक कार्यकर्ता ने कहा, ‘पायल जैसे मामलों में केवल फंड ही नहीं सामाजिक फैक्टर भी बच्ची के समय से इलाज में बाधा बनते हैं।’ बच्ची (पायल) अपने परिवार में पैदा हुई तीसरी लड़की है। दैनिक मजदूरी करने वाले उसके पिता ने भी कथित रूप से जल्द इलाज के लिए कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। उसकी दिक्कत के बारे में उस वक्त पता चला जब एक आंगनबाड़ी कार्यकर्ता ने शरीर का विकास न होने और लगातार इंफेक्शन होने के पीछे एक बड़ी बीमारी की आशंका जताई। एक निजी मेडिकल सेंटर पर हुई 2डी इको जांच में पायल के दिल में खराबी की बात सामने आई।
सर्जरी वाले दिन डॉक्टर दंपती को पायल के परिवार को अस्पताल तक पहुंचाने का इंतजाम करना था। डॉ. उमेश का कहना है, ‘सर्जरी के बाद बच्ची के पिता ने समय पर इलाज होने पर खुशी का इजहार किया। वह किसी सरकारी योजना की पात्र नहीं थी।’ अस्वाशिल की गड़बड़ी भी इसी तरह से पता चली। उसे यूरिनरी इंफेक्शन की शिकायत थी। स्कूल में वह बुझा-बुझा सा दिखता था और पढ़ाई में भी अच्छे नंबर नहीं आते थे। हालांकि उसके मामले में राज्य सरकार की तरफ से आखिरी समय में मंजूरी मिली। डॉक्टर का कहना है कि उसके लिए आवंटित हुए पैसे को किसी ऐसे बच्चे की मदद में लगाया जाएगा, जिसे सर्जरी की जरूरत हो।
साभार- टाईम्स ऑफ इंडिया से