चींटियों में देखने की अद्भुत क्षमता होती है। भारतीय वैज्ञानिकों ने एक ताजा अध्ययन में चींटियों के दृश्य संवेदी गुणों को समझने के लिए उनके संयुक्त नेत्रों की संरचनात्मक विशेषताओं का पता लगाया है।
कोट्टयम, केरल के सेंट बर्चमेंस कॉलेज के प्राणीशास्त्र विभाग के वैज्ञानिकों ने चींटियों की दो प्रजातियों डाईएकेमा रुगोसम और ओडोंटोमेकस हिमेटोडस के संयुक्त नेत्रों का विस्तृत अध्ययन किया है। इस अध्ययन में चींटियों की दोनों प्रजातियों द्वारा अपनायी जाने वाली प्रकाश संवेदी रणनीतियों में काफी अंतर पाया गया है।
वैज्ञानिकों ने दोनों प्रकार की चीटियों के संयुक्त नेत्रों के तुलनात्मक अध्ययन के लिए उनके सिर की चौड़ाई, नेत्रों के व्यास, संयुक्त नेत्र की सतह पर पाए जाने वाले नेत्रांशकों की लम्बाई, नेत्रिकाओं की कुल संख्या और कुल सतही क्षेत्र, तंत्रिका तंतुओं से जुड़े क्षेत्र रेबडाम की लम्बाई और मस्तिष्क के आधारीय लेमिना की चौड़ाई का आकलन किया है। इसके अलावा चींटियों के रेटिना में पाए जाने वाले वर्णकों और नेत्रिकाओं के नेत्रांशकों के आकारों का भी अध्ययन किया गया है। डाईएकेमा रुगोसम और ओडोंटोमेकस हिमेटोड्स के संयुक्त नेत्रों में क्रमशः 1300 और 600 नेत्रिकाएं दर्ज की गई हैं। ओडोंटोमेकस हिमेटोड्स के संयुक्त नेत्रों में आयताकार और अण्डाकार नेत्रांशक पाए गए हैं। दोनों चींटी प्रजातियों में उल्लेखनीय भिन्नताएं पायी गई हैं। दोनों प्रजातियों के मस्तिष्क के दृष्टि संबंधी भागों में भी अंतर देखा गया है। डाईएकेमा रुगोसम में दृश्य तंत्रिकाओं का विस्तार अधिक होने से उसकी देखने की संवेदनशीलता अधिक आंकी गई है।
” संयुक्त नेत्र की सतह पर हजारों की संख्या में षटकोणीय खण्डनुमा रचनाएं पायी जाती हैं, जिन्हें नेत्रांशक कहते हैं। संयुक्त नेत्र की प्रत्येक नेत्रिका में अलग-अलग प्रतिबिम्ब बनाने की क्षमता होती है। ”
प्रमुख शोधकर्ता डॉ. मार्टिन जे. बाबू ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि “प्रत्येक संयुक्त नेत्र की सतह पर हजारों की संख्या में षटकोणीय खण्डनुमा रचनाएं पायी जाती हैं, जिन्हें नेत्रांशक कहते हैं। संयुक्त नेत्र की प्रत्येक नेत्रिका में अलग-अलग प्रतिबिम्ब बनाने की क्षमता होती है। सभी नेत्रिकाएं मिलकर एक संयुक्त प्रतिबिम्ब बनाती हैं। इस प्रकार की दृष्टि को मोजेक दृष्टि कहते हैं, जिसमें बनने वाला प्रतिबिम्ब अधिक स्पष्ट और विस्तृत होता है। अध्ययन में शामिल चींटियों की शिकार करने की शैली पर उनके संयुक्त नेत्रों की प्रकाश अनुकूलित विशेषताओं और मस्तिष्क के दृष्टि संबंधी भागों की महत्वपूर्ण भूमिका देखी गई है।”
इन दोनों प्रजाति की चींटियों की देखने की क्षमता बहुत अधिक होती है। प्राकृतिक प्रकाश की गुणवत्ता दिनभर में बदलती रहती है और रात में बहुत कम हो जाती है। इसका प्रभाव चीटियों की दृश्य संवेदी गतिविधियों पर पड़ता है। लेकिन, वे पर्यावरणीय और प्रकाश परिवर्तनों के अनुसार अपनी दृश्य क्षमता को समन्वित करती रहती हैं। इस तरह अपने संयुक्त नेत्रों के कारण वे छोटे-छोटे कीड़ों का शिकार आसानी से कर पाती हैं। ओडोंटोमेकस हिमेटोड्स प्रजाति की चींटियां दिन और रात दोनों समय शिकार कर सकती हैं, जबकि डाईएकेमा रुगोसम चींटियां केवल दिन में ही शिकार कर सकती हैं।
चींटी एक सामाजिक कीट है और इसकी 12,000 से अधिक प्रजातियों का पता लगाया जा चुका है। आमतौर पर चींटियों सहित सभी तरह के कीटों में छोटी-छोटी सैकड़ों नेत्रिकाएं मिलकर संयुक्त नेत्र का निर्माण करती हैं। इससे वे दूर की तुलना में अपने आसपास की चीजों को बहुत अधिक स्पष्ट रूप से देख पाती हैं।
शोधकर्ताओं का मानना है कि अध्ययन से प्राप्त परिणाम कीटों के संयुक्त नेत्रों की अनुकूलता के महत्व को समझने में मददगार हो सकते हैं। इनका उपयोग यह समझने के लिए भी किया जा सकता है कि मनुष्य सहित अन्य जीवों में भी कैसे विभिन्न अनुकूलित दबावों से निपटने के लिए दृश्य संवेदी तंत्र प्रणालियों का विकास हुआ है। यह अध्ययन विभिन्न परिस्थितियों में काम कर रहे मस्तिष्क के दृश्य क्षेत्रों के बारे में अध्ययन करने के लिए भी सहायक साबित हो सकता है।
इस अध्ययन में डॉ. मार्टिन जे. बाबू के साथ रेशमा नायर भी शामिल थीं। यह अध्ययन शोध पत्रिका करंट साइंस में प्रकाशित किया गया है।
शुभ्रता मिश्र इंडिया साइंस वायर पर विज्ञान से जुड़े विषयों पर लिखती हैं।