प्रीम कोर्ट ने रेवाड़ी सामूहिक बलात्कार मामले की रिपोर्टिंग को लेकर मंगलवार को मीडिया के एक वर्ग खासकर न्यूज चैनलों को कड़ी फटकार लगाई है। मीडिया द्वारा खबरों में पीड़िता की शैक्षणिक उपलब्धि का उल्लेख करने पर कोर्ट ने नाराजगी जताते हुए मीडिया को सतर्कता बरतने की हिदायत दी। कोर्ट ने कहा कि रेवाड़ी जैसे शहर में विशेष शैक्षणिक उपलब्धि के आधार पर पीड़िता को पहचाना जा सकता है। ऐसा नहीं होना चाहिए।
मुजफ्फरपुर में 34 लड़कियों के यौन शोषण केस में सुनवाई के दौरान कोर्ट ने यह टिप्पणी की। न्यायमूर्ति मदन बी.लोकुर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ ने पीड़िता के पिता की गांव वालों की उपस्थिति में इंटरव्यू किए जाने पर कहा, पीड़िता की पहचान कहां छुपी रही? उन्होंने कहा, ‘कहां हम लक्ष्मण रेखा खींचें, हम पीड़िता की पहचान को लेकर चिंतित हैं।’
पीठ ने कहा, इसमें कुछ तो गलत है। मैंने एक न्यूज चैनल पर देखा कि एक लड़की के साथ रेवाड़ी में दुष्कर्म किया गया। वे कहते है कि वह बोर्ड परीक्षा की टॉपर है। केवल एक टॉपर होता है। अब उसे पहचानने में कोई कठिनाई नहीं है। संभवत:अगर आप गूगल करेंगे तो आप उसे खोज निकालेंगे। रेवाड़ी- दिल्ली, कोलकाता जैसा बड़ा शहर नहीं है।
पीठ ने कहा, उन्होंने पीड़िता के पिता का कैमरे के पीछे से इंटरव्यू किया, लेकिन वहां गांव के लगभग 50 लोग उनके सामने थे। वे उन्हें जानते हैं। वे लोग 50 अन्य लोगों को बताएंगे और सभी उनको जानेंगे। क्या किया जाना चाहिए?
पीठ ने चिंता जताई और पूछा कि उसकी पहचान को उजागर करने की जिम्मेदारी कौन लेगा। पीठ ने यह भी पूछा कि बताइए इस पर क्या किया जा सकता है, इससे बचने के लिए क्या किया जा सकता है? इसके लिए कौन जिम्मेदार है?
न्यायमूर्ति लोकुर ने याचिकाकर्ता के वकील शेखर नफाडे से पूछा, ‘ऐसी स्थिति में पहचान सार्वजनिक नहीं होने का कहां सवाल है।’ नफाडे ने कहा कि पीड़िता की पहचान का खुलासा करने वाली किसी भी चीज को रोका जाना चाहिए और व्यक्ति की गरिमा की रक्षा की जानी चाहिए।’
इस पर पीठ ने कहा, ‘लेकिन आईपीसी की धारा-228 ए (इस तरह की पीड़िताओं की पहचान का खुलासा करने से संबंधित) का उल्लंघन करने के ये जीते-जागते उदाहरण हैं।’ जब एक वकील ने कहा कि न्यूज ब्रॉडकास्टिंग अथॉरिटी पहले से है तो इसपर पीठ ने कहा, ‘क्या इन टीवी चैनलों को पकड़ा गया। हम आपको कल का उदाहरण दे रहे हैं। आप हमें बताएं कि इसे कैसे रोकें।’
जब पीठ ने अटॉर्नी जनरल के.के. वेणुगोपाल से रेवाड़ी मामले में मीडिया रिपोर्टिंग के बारे में पूछा तो शीर्ष विधि अधिकारी ने कहा कि ऐसे चैनलों के खिलाफ राज्य को मुकदमा चलाना चाहिए।
अटॉर्नी जनरल ने कहा ‘कानून व्यवस्था के लिए राज्य जिम्मेदार है। एक बार इसे आपके संज्ञान में लाए जाने के बाद अदालत नोटिस जारी कर सकती है और राज्य से पूछ सकती है कि उन्होंने इस संबंध में क्या कार्रवाई की है। टीवी चैनलों से यह भी कहा जा सकता है कि वे इसका जवाब दें। यह सुधार के लिए कदम होगा।’
फिलहाल न्यायालय ने इस मामले पर अगली सुनवाई की तारीख 20 सितंबर को निर्धारित की है।
गौरतलब है कि रेप पीड़िता की पहचान उजागर करना आईपीसी की धारा-228 ए और आईपीसी-1860 के तहत अपराध है। परिजन का नाम लिखने पर भी 2 साल तक जेल व जुर्माना संभव है।
साभार- http://www.samachar4media.com से