बेटिकट ‘लफ़ंगे’-बाटिकट ‘शरीफ़ ?

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भारतीय नागरिकों को अपनी दिनचर्या में आए दिन ऐसी परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है जिससे यह एहसास होता है कि देश के सभी क़ायदे-क़नून और पाबंदियां संभवत: क़ानून का पालन करने वाले शरीफ़,सज्जन,मेहनतकश व ईमानदार लोगों के लिए ही हैं। और यदि कोई शरीफ व्यक्ति किन्हीं अपरिहार्य परिस्थितियों में नियम व कानून से हटकर अपना कोई कदम उठाता भी है तो प्रशासन व कानून उसे उसके किए कि सज़ा देता है। परंतु ठीक इसके विपरीत ऐसा भी देखा जाता है कि हमारे ही समाज में पलने वाले अनेक लुच्चे-लफंगे भिखारी वेशधारी तथा मवाली क़िस्म के लोग दिन रात नियमों व कानूनों का उल्लंघन भी करते हैं। ऐसे लोग शरीफ, सज्जन तथा कानून का पालन करने वालों के लिए सिरर्दद बनते हैं। उनकी सुरक्षा को भी चुनौती देते हैं। परंतु इन सबके बावजूद प्रशासन तथा कानून ऐसे लोगों की तरफ़ से अपना मुंह फेरे रहता है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि नियम-कानून का पालन करना क्या केवल सज्जन व शरीफ लोगों का ही फजऱ् है? क्या वजह है कि कानून का पालन न करने वालों को तो कानून उल्लंघन करने की छूट दी जाती है जबकि एक शरीफ व्यक्ति उसी जुर्म में जुर्माने या जेल जाने तक की नौबत पर पहुंच जाता है।

उत्तर भारत में आप रेलगाडिय़ों के माध्यम से कहीं भी चले जाएं आपको चलती ट्रेन में हिजड़ा वेशधारी, भिखारी या गााने बजााने वाले लोग चलती रेलगाडिय़ों में ज़रूर मिलेंगे। यह लोग अपने निर्धारित रूट पर सुबह से शाम तक रेलगाडिय़ों में यात्रा करते हैं तथा अनैच्छिक रूप से किसी भी यात्री के सिर पर खड़े होकर ढोल व डफली पीटने लगते हैं तथा गलाा फाडक़र चिल्लाना शुरु कर देते हैं। इन्हें इस बात की भी फिक्र नहीं होती कि यात्रा करने वाला कोई व्यक्ति सो रहा है या उनका गाना नहीं सुनना चाहता। स्वयं को हिजड़ा बता कर रेल यात्रियों से ठगी करने वाले लोग तो कई बार किसी यात्री द्वारा पैसे न देने पर रेलयात्री के मुंह पर तमाचा तक जड़ देते हैं।

हमारी व्यवस्था के लिए यह कितनी बड़ी चुनौती व अभिशाप है कि एक टिकटधारी शरीफ यात्री के गााल पर वह व्यक्ति तमाचा मारता है जिसने न तो कोई टिकट ले रखा है न ही उसके पास ट्रेन में भीख मांगने का कोई अधिकार पत्र है। ऐसे ही तमाम गेरुआ वस्त्रधारी लोग अपने भगवे लिबास को ही रेलवे का यात्रा पास मानकर पूरे देश में आते जाते रहते हैं और न केवल सीटों पर क़ब्ज़ा जमाए रहते हैं बल्कि प्रवेश व निकासी द्वार पर भी अड़े बैठे रहते हैं जिससे ट्रेन में चढऩे व उतरने वालों को काफी परेशानी उठानी पड़ती है। कई बार इन्हीं भगवा वस्त्रधारी भिखारियों को चलती ट्रेन में बिना किसी भय व लिहाज़ के खुल्लम खुला शराब पीते व सिगरेट का धुंआ उड़ाते भी देखा जा सकता है। ठीक इसके विपरीत कोई भी जि़म्मेदार, शरीफ नागरिक न ता ऐसी हरकत कर सकता है और यदि करे भी तो पुलिस अथवा रेलवे अधिकारी उसके विरुद्ध कानूनी कार्रवाई भी करते हैं।

रेलगाडिय़ों में बिना टिकट यात्रा करना तथा नाचना गाना, भीख मांगने जैसी बातें तो सुनने व देखने में आती रहती हैं। परंतु बसों में इस प्रकार का चलन लगभग न के बराबर था। मगर पिछले कुछ वर्षों से अब बसों में भी यह सिलसिला शुरु हो गया है। पहले बसों में किसी स्टैंड पर खड़ी बस में कुछ मेहनतकश आकर प्रवेश करते थे और यात्रियों को अपनी ओर आकर्षित कर कोई न कोई सामान बेचने की कोशिश करते थे और बस के प्रस्थान करते समय ही वे लोग बस से नीचे उतर जाते थे। परंतु अब तो ट्रेन की ही तजऱ् पर बस में भी डफली, ढोलक तथा कान फाड़ बेसुरा संगीत आदि सब कुछ सुनाई देने लगा है। यदि आप अंबाला-चंडीगढ़ मुख्य मार्ग पर बस से यात्रा करते हैं तो अंबाला से लेकर लालड़ू-डेराबस्सी-ज़ीरकपुर व चंडीगढ़ आदि स्थानों पर कहीं न कहीं कोई न कोई नवयुवक आप की बस पर सवार होता या उतरता दिखाई दे जाएगा।

कम आयु के यह बच्चे सरकारी बसों के कडंक्टर व ड्राईवर की ओर से मिलने वाली ढील का फायदा उठाकर एक स्टेशन से दूसरे व दूसरे से तीसरे स्टेशन तक पहुंच जाते हैं। इस दौरान वे अपने गला फाडक़र गायन से यात्रियों को विचलित करते हैं। परंतु चूंकि दान देकर स्वर्ग प्राप्ति की इच्छा रखने वाले चंद लोग ऐसे लफंगों को कुछ पैसे दे देते हैं जिससे उनका हौसला बढ़ जाता है। बसों में चढक़र इस प्रकार पैसे मांगने वाले नवयुवकों में अधिकांश बच्चे नशे की लत का शिकार होते हैं। कई बार ऐसा भी देखा गया है कि जब किसी यात्री ने अवांछित रूप से चढऩे वाले ऐसे लफंगों के चलती बस में चढऩे पर आपत्ति की तो ड्राईवर ने उसी समय बस रोक कर उस लफंगे भिखारी को बस से नीचे उतार दिया।

इन्हीं बसों में कई बार किसी अनाथलाय आश्रम अथवा किसी भंडारा या धार्मिक स्थान के नाम पर पैसा वसूली करने वाले लोग अपने हाथों में गुल्लक व रसीद बुक लेकर भी सवार हो जाते हैं। बसों में प्रवेश करने वाले इन सभी अनाधिकृत लोगों को यदि हम श्रेणी में भी बांटेगे तो यही देखेंगे कि कोई सामग्री बेचने वाला या खाने-पीने की वस्तु बेचने वाला मेहनतकश मज़दूर तो खड़ी बस में चढ़ता है और बस चलते ही उतर जाता है। जबकि चंदा वसूली करने वाले,भिखारी व अवांछित कान फाड़ गायक बेधडक़ होकर एक स्टेशन से दूसरे स्टेशन की यात्रा बिना टिकट खरीदे करते हैं और यह हमारे देश का चमत्कार ही है कि ऐसे लेाग सामान बेचने वाले मेहनतकश लोगों से भी ज़्यादा पैसे मुफ्त में ठग कर अगले स्टेशन पर उतर जाते हैं। मोटे तौर पर यदि कहा जाए तो नारियल गरी,कंघी या पानी बेचने वाला एक व्यक्ति अपनी मेहनत से दिनभर में तीन सौ रूपये से चार सौ रुपये तक कमाता है तो यह मवाली,भिखारी व मुफ्तखोर, लोगों की भावनाओं का लाभ उठाकर एक हज़ार रुपये से दो हज़ार रुपये तक बिना किसी पूंजी के कमा लेते हैं। उत्तर भारत में कई स्थानों पर रेलगाडिय़ों में कुछ ऐसे लोग भी आपको मिल जाएंगे जो अपने साथ किसी युवती को रखते हैं। उसे अपनी बेटी या बहन बताकर उसके विवाह व कन्यादान के नाम पर लोगों से पैसे मांगते हैं। यह शातिर दिमाग लोग यात्रियों को इन शब्दों में ब्लैक मेल करते हैं। वे कहते हैं कि -‘जैसे आपकी बेटी वैसे ही यह मेरी बेटी है लिहाज़ा इसके कन्यादान में अपनी बेटी समझकर सहयोग दीजिए’। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि इस प्रकार के कई पेशेवर लोग गत् 15-20 वर्षों से एक ही लडक़ी का हाथ पकडक़र उसके कन्यादान हेतु भीख मांग रहे हैं परंतु अब तक उस कथित बेटी की शादी ही नहीं की गई। । इन लोगों के पास भी टिकट होने का तो कोई सवाल ही पैदा नहीं होता।

बिहार में दिसंबर की ज़बरदस्त ठंड में रात 1 बजे के करीब बस में एक बुज़ुर्ग व्यक्ति ने रोते हुए प्रवेश किया और यह कहकर अपनी छाती पीटने लगा कि मेरे बेटे की लाश गेट पर पड़ी है और उसके पास संस्कार हेतु पैसे नहीं हैं। कई भावुक दानियों ने सौ-पचास रुपये की नोट उसे देनी शुरु कर दी। एक जागरूक युवा व्यक्ति ने उस बुज़ुर्ग का हाथ पकड़ा और कहा चलकर अपने बेटे की लाश दिखाओ। मैं उसका पूरा संस्कार स्वयं कराऊंगा। काफी आनाकानी के बाद वह बुज़ुर्ग हाथ जोडऩे लगा और अपने झूठ के लिए माफी मांगने लगा। गोया देश में रेलगाडिय़ों व बसों में इस प्रकार के यात्रियों को देखकर तो यही कहा जा सकता है कि हमारे देश में लफंगों को तो बेटिकट चलने की छूट है परंतु एक शरीफ,ईमानदार व मेहनतकश व्यक्ति को तो बाटिकट अर्थात टिकट खरीदकर ही चलना पड़ेगा। देश के शासनतंत्र को इस ओर गंभीरता से ध्यान दिए जाने की ज़रूरत है।

Nirmal Rani (Writer)
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