तरूण तेजपाल ने स्टिंग ऑपरेशन (खेजी पत्रिका) के जरिये क्रिकेट के सट्टेबाजी का और उसके बाद भाजपा अध्यक्ष सहित कई नेताओं को रक्षा खरीद में दलाली लेते हुए पत्रकारिता जगत में तहलका मचाया और मीडिया जगत के नामी हस्ती के रूप में पहचान बनाई। तरूण तेजपाल ने इंटरनेट पर पोर्टवेबल (इलेक्ट्रनिक मीडिया) से शुरूआत की उसके बाद टैबलेट साइज का पेपर शुरू किया और तहलका का अंग्रेजी संस्करण में साप्ताहिक पत्रिका निकालना शुरू किया। तहलका सिढ़िया चढ़ता गया और 2008 से हिन्दी में तहलका पत्रिका भी आने लगी।
समय के साथ-साथ तेजपाल दौलत और शोहरत दोनों कमाई। तहलका के इस कामयाबी के पीछे केवल तेजपाल ही नहीं थे इसके पीछे कई लोगों की मेहनत थी। खासकर वे युवा पत्रकार जिन्होंने और जगहों से कम पैसों पर यहां दिन-रात मेहनत की तथा जोखिम उठाया। तेजपाल के पास दलील थी कि तहलका के पास कारपोरेट जैसा पैसा नही है, तहलका एक जनपक्षधर पत्रिका है। लेकिन जैसा कि हर संस्था में होता है कि जिसने पूंजी लगाई वही मलाई खायेगा (पैसा हो या नाम हो)। तहलका के साथ भी ऐसा ही हुआ उसमें कई बड़े-बड़े लोगों के शेयर लगे हर तरह के विज्ञापन छापे जाते रहे और उसका मुनाफा कुछ लोगों और खासकर तरूण तेजपाल की जेबों को गर्म करता रहा। जो युवा पत्रकार जुड़े वे थोड़े पैसे में भी इसलिए खुश थे कि वे तहलका कोे प्रगतिशील पत्रिका मानते रहे बस इतना ही सुकुन था उनके मन में।
फोटोग्राफर तरूण सहरावत छत्तीसगढ़ के माओवादी इलाके में रिर्पोटिंग करने के लिए गए थे और वे साइबरल मलेरिया के शिकार होकर असमय काल के ग्रास बन गये। तहलका पत्रिका ने निश्चित ही ऐसे विषयों को उठाया है जो कि मुख्यधारा की मीडिया नहीं उठाती है, इसलिए तहलका का पाठक भी एक खास तरह का रहा है लेकिन इन सबका लाभ अकेले तरूण तेजपाल ले रहे थे। तहलका जो कि सोनी सोडी से लेकर निर्भया कांड व महिलाओं के प्रति पुलिस की नजरिया तक की स्टोरी अपनी पत्रिका में छापती रही है। लेकिन अपनी ऑफिस में काम करने वाली महिला कर्मचारियों/पत्रकारों के लिए 1997 के सुप्रीम कोर्ट के निर्देश का पालन नहीं करती। जिसमें काम के जगह पर महिला कर्मचारियों के लिए विशाखा गाइड लाईन (दिशा निर्देश) के तहत कमिटी बनाने की बात कही गई है। पीड़िता की शिकायत के बाद कमेटी का गठन किया गया जो कि सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का उल्लंघन है।
तहलका से कमाये हुए दौलत और शोहरत ने तरूण तेजपाल को वहां लाकर खड़ा कर दिया जहां हर ताकतवर आदमी अपने को कुछ भी करने का हकदार समझने लगता है। गोवा जैसे आलीशन जगह में जाकर करोड़ों रु. खर्च कर थिंकफेस्ट का आयोजन करते हैं। गोव के इस रेस्टोरेट का एक रात का किराया 55 हजार रु. है। यह थिंकफेस्ट खनन कॉरपोरेशनों (माफिया) द्वारा स्पॉनसरशिप किया गया था। यह तहलका पत्रिका द्वारा दावा किया जाने वाले बातों का ठीक उल्टा है। एक दो अपवाद को अगर छोड़ दिया जाए तो तरूण तेजपाल का वर्ग (क्लास) दोहरे चरित्र में ही जीता हैं। एक तो वह लोग हैं जो सीधे-सीधे जनता के शोषण में लगे होते हैं और खाओ-पीओ, मौज-मस्ती करो खुल कर बोलते हैं।
दूसरे वे लोग है जो सीधा-सीधा तो नहीं बोलते हैं लेकिन वही काम वह दूसरे तरह से करते हैं। तरूण तेजपाल भी उसी बीमारी के शिकार थे खाओ-पीओ, मौज-मस्ती करो इसी मस्ती में उनको यह लगने लगा था कि उनके अधीनस्थ काम करने वाली महिला के मर्जी के मालिक वो हैं। जब पीड़िता बलात्कार की स्टोरी पर बात करने के लिए उनके पास जाती है तो वे सोफे पर लेटे रहे और लाइट ऑन नहीं करने दी और लेटे हुए ही लड़की से बात करते हैं और वह यह समझ बैठते हैं कि लड़की उनके इस आचरण को पसन्द करती है। बात करते समय वे पीड़िता के शरीर को छूने की कोशिश करते हैं जिसे पीड़िता मना करती है फिर भी वे ऐसा करना अपना अधिकार समझते हैं। 7 नवम्बर के रात पीड़िता के साथ लिफ्ट में वे यौनिक हिंसा करते हैं और पीड़िता उनको सब कुछ याद दिलाती है जिससे कि वे उनके इस यौनिक हिंसा से बच जाये।
तेजपाल अपने रूतबे के बल पर बचते रहे हैं। गोवा पुलिस दिल्ली आकर न तो उनको गिरफ्तार कर पाई और न ही उनसे पूछ-ताछ कर सकी। 29 नवम्बर को गोवा जाते हुए चलने और बैठने के अंदाज से उनका गरूड़ साफ दिख रहा था उनके चेहरे पर किसी तरह का शिकन नहीं था। जब कि खुद पहले ईमेल में वे अपने घिनौने कृत को स्वीकार कर चुके हैं। मीडिया में मामला आने से पहले उनकी बेटी जो पीड़िता (दोस्त) के साथ थी वो अब अपने पिता के साथ दिख रही थी और पूरा मीडिया से तेजपाल को बचाती रही। अब जब वे गिरफ्तार हो चुके हैं यानी तरूण तेजपाल का तेज खत्म हो चुका है। क्या तेजपाल का हश्र भी बंगारू लक्षमण जैसा ही हाने वाला है?
तरूण तेजपाल पहले अपने मैनेजिंग डायरेक्टर शोमा चौधरी को ईमेल भेजकर कहते हैं कि ‘‘बीते कुछ दिन बेहद मुश्किल रहे हैं। मैं इसका पूरा दोष खुद पर लेता हूं। गलत निर्णय और स्थिति को गलत तरीके से समझने की वजह से यह दुर्भाग्यपूर्ण घटना हुई। यह उसके खिलाफ है जिसके लिए हम लड़ते रहे हैं। मैं संबंधित पत्रकार से दुर्व्यवहार के लिए बिना शर्त माफी मांगता हूं। मैं इसका प्रायश्चित भी करना चाहता हूं। मैं छः माह तक तहलका ऑफिस नहीं आंऊगा मैं सभी पदों से मुक्त होता हूं।’’ यहां भी उनका वही मालिकाना गरूड़ दिखता है मुजरिम भी और वही और जज भी वही बन गये। जब इस माफी से वे अपने कुकृत्य को नहीं छिपा सके तो उसे एक दिल्लगी की घटना बताने लगे और यौनिक हिंसा को राजनीतिक रंग देने की कोशिश कर रहे हैं। दक्षिण पंथी पर्टियां खासकर भाजपा इस प्रकरण का लाभ लेना चाहती है। गोवा भाजपा शासित राज्य होने के कारण वहां की पुलिस ने तुंरत कदम उठा लिया और तरूण तेजपाल से पूछ-ताछ करने दिल्ली आ गई। भाजपा अपने को लिंग (जेण्डर) के मुद्दे पर संवेदनशील दिखाने की कोशिश कर रही है।
भाजपा भूल जाती है कि अभी दो माह पहले ही किस तरह से उनके पार्टी के कार्यकताओं, नेताओं ने आशा राम को बचाने की कोशिश की। यहां तक म.प्र. के भाजपा नेता ने तो पीड़िता और उसके परिवार पर ही केस करने तक की बात कह डाली। भाजपा के नेता विजय जौली ने कार्यकर्ताओं के साथ शोमा के घर पर जाकर जिस तरह से हुड़दंग मचाया क्या वह किसी भी संवेदनशील इन्सान का काम हो सकता है?
चुनाव व अपनी छीछालेदर को देखते हुए भाजपा के शीर्ष नेतृृत्व ने अपने को किनारा कर लिया। लेकिन इससे यह सही नहीं हो जाता कि भाजपा महिलाओं के मुद्दे पर संवेदनशील है। तरूण तेजपाल प्रकरण आने के बाद गुजरात सरकार की लड़की का जासूसी का मामला ठंडे बस्ते में चला गया और मीडिया में उस पर चर्चा ही बंद हो गई। मुज्फरनगर में जिस तरह दंगे किये गए, महिलाओं के साथ बलात्कार हुआ और उस दंगे को भड़काने वालों को आगरा में सम्मानित किया गया इससे यह साफ है कि भाजपा जैसी पार्टियों महिला मुद्दों पर कैसे सोचती है और उनकी नीयती क्या है।
पीड़िता का वह बात बिल्कुल सही है कि रेप सिर्फ सेक्स के लिए नहीं होता बल्कि इसका रिश्ता ताकत, सहूलियत और अधिकार से भी है। उसने यह भी अंशका जताई है कि कुछ लोग उसके ऊपर व्यक्तिगत और भद्दे हमले भी कर सकते हैं। जैसा कि समाज में यह होता है जब कोई ताकतवर (शोहरत और पैसे वाले) पर उससे कमजोर लड़की ऊंगली उठाती है तो उसके चरित्र पर ही सवाल उठाये जाते हैं।
महिला जब यह सवाल उठाती है तो अपने स्वाभिमान और सम्मान के लिए लड़ाई लड़ती है जैसा कि यह महिला ने भी जिक्र किया है कि ‘‘तरूण तेजपाल धन, संपत्ति, रूतबे को बचाने के लिए लड़ रहे हैं और वह अपने सम्मान की खातिर लड़ रही है। मेरा जिस्म केवल मेरा है, यह किसी नौकरी देने वाले के लिए खेलने की कोई चीज नहीं है।’’ पीड़िता इस बात से परेशान है जिसमें कि तरूण तेजपाल ने कहा कि राजनीतिक साजिश है। उसने कहा है कि ‘‘अपनी जिन्दगी और अपने शरीर पर नियंत्रण के लिए महिलाओं का संघर्ष राजनीतिक है, लेकिन नारीवादी राजनीति और उसकी चिंताएं राजनीतिक पार्टियों की संकीर्ण दुनिया से बहुत ज्यादा बड़े हैं।’’
दलगत राजनीति से ऊपर उठकर ही नारीवादी राजनीति को लड़ा जा सकता है। आज महिलाएं घर, कॉलेज, ऑफिस, सड़कों, बसों, ट्रेनों में कहीं सुरक्षित नहीं है। जहां भारत जैसे पिछड़े देश में सेक्स पर बात करना गलत माना जाता है वहीं सेक्स सभी पुरुषों के अन्दर घर कर बैठा है। चाहे वाह बाप, भाई हो या रिश्तेदार, चाहे रजनीतिक, डॉक्टर, धर्मगुरू, अफसरशाह, न्यायपालिका सभी जगह महिलाओं को उपभोग के रूप में देखने की आदत सी पड़ गई है। यहां तक कि इन सब पर उपदेश देने वाली महिलाएं भी पुरुषों को बचाने में जाने-अनजाने रूप में लग जाती है।
जैसा कि तेजपाल के केस में उनकी बेटी हो या शोमा सेन जाने-अनजाने वे पुरुष को संरक्षण ही दे रही थी। आज जरूरी है कि इस तरह के विचारों पर खुल कर बातें हों इससे कैसे छुटाकारा पाये जा सके उस पर बाते हों। एक तरफ भारत का पिछड़ा संस्कृति तो दूसरी तरफ पूंजीवाद-साम्राज्यवाद पोषित संस्कृति लोगों के भवनाओ में कुंठा का संचार करती है। जरूरत है इस तरह की संस्कृति को समूल नाश करने की जिससे महिलाएं सड़क, घर, ऑफिस, बस, ट्रेन सभी जगह बेखौफ सुरक्षित रह सकें।
स्रोत: http://hindi.newsyaps.com/