इकनॉमिक टाइम्स की वेल्थ टीम ने कई बैंक एग्जिक्युटिव्स से अपनी पहचान छिपाकर बात की। इसमें पता चला कि बड़े-बड़े झूठे ख्वाब दिखाकर निवेशकों को गलत इंश्योरेंस एवं अन्य फाइनैंशल प्रॉडक्ट्स बेचने का गोरखधंधा अब भी जारी है। इस आर्टिकल के लेखक ने खुद कुछ सरकारी, विदेशी एवं निजी बैंकों का दौरा किया। इस दौरान उनसे कई बैंक एग्जिक्युटिव्स ने बढ़-चढ़कर बातें कीं और गलत तरीके से निवेश करवाने का प्रयास किया। हालांकि, इस प्रवृत्ति में पहले के मुकाबले कमी जरूर आई है। लेकिन, निवेशकों को फांसने का तरीका नहीं बदला है। बैंक ऑफिसर अब भी लोगों को उन प्रॉडक्ट्स में निवेश करने को बाध्य करने की कोशिश करते हैं, जिनकी जरूरत किसी खास निवेशक को नहीं होती है।
इस आर्टिकल के लेखक ने जोखिम और फंड द्वारा लाभांश रोके जाने की आशंका की बात कही, फिर भी बैंक मैनेजर बैलेंस्ड फंड्स में निवेश पर जोर देता रहा। कमिशन पर नजर गड़ाए बैंक मैनेजर ने यह नहीं बताया कि लाभांश म्यूचुअल फंड के एनएवी (नेट ऐसेट वैल्यू) से दिया जाता है। ऐसे में अगर फंड हाउस एनएवी घटने के बाद भी डिविडेंट देता रहा तो निवेशक को नुकसान होने का खतरा पैदा होगा। दरअसल, बैंक अपने रिलेशनशिप मैनेजरों के लिए कठिन सेल्स टारगेट सेट कर देते हैं, इसलिए इन मैनेजरों का ध्यान ज्यादा-से-ज्यादा कमिशन वाले प्रॉडक्ट्स बेचने की होती है, न कि निवेशकों की जरूरत पूरी करने की।
विदेशी और निजी बैंक सबसे बड़े धोखेबाज
छानबीन में पता चला कि ज्यादातर धोखेबाजी को अंजाम विदेशी बैंकों एवं नई पीढ़ी के निजी बैंकों द्वारा दिया जाता है। इन बैंकों के रिलेशनशिप मैनेजरों को ग्राहकों के हर सवाल का सामना करने की ट्रेनिंग दी जाती है। हालांकि, यह भी बताना जरूरी है कि सारे बैंक एंप्लॉयीज एक जैसे नहीं हैं। नई पीढ़ी के एक निजी बैंक की शाखा में जाने पर रिलेशनशिप मैनेजर ने तुरंत एफडी में निवेश की प्रक्रिया शुरू कर दी। लेकिन, यह कहने पर कि अभी निवेशन नहीं कर सकता, थोड़ा वक्त चाहिए तो उन्होंने ऑनलाइन से खुद से निवेश करने का तरीका बता दिया। ध्यान रहे कि यह वही बैंक ब्रांच था, जहां एक अन्य मैनेजर ने बैलेंस्ड फंड्स में निवेश पर जोर दिया था। इसी तरह, एक को-ऑपरेटिव बैंक की कर्मचारी ने भी अच्छी जानकारी दी। आइए, बैंकों ने अलग-अलग इन्वेस्टमेंट प्रॉडक्ट्स पर क्या-क्या बातें कीं…
सीनियर सिटिजंस सेविंग्स स्कीम (SCSS)
एक पीएसयू बैंक ने यह कहते हुए फॉर्म देने से इनकार कर दिया कि 60 वर्ष से ज्यादा उम्र के व्यक्ति ही इस स्कीम में निवेश कर सकता है। यह तथ्यात्मक रूप से गलत है। नियम यह है कि 55 से 60 वर्ष की उम्र वाले रिटायर्ड पर्सन भी सीनियर सिटिजंस सेविंग्स स्कीम में इन्वेस्ट कर सकता है। एक प्राइवेट बैंक ने तो यहां तक कह दिया कि इस स्कीम में निवेश सिर्फ सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों द्वारा ही हो सकता है। यह भी बिल्कुल गलत है। प्राइवेट सेक्टर के बैंकों को यह स्कीम चलाने की अनुमति है।
टर्म इंश्योरेंस
जब आर्टिकल के लेखक ने एक प्राइवेट बैंक में टर्म इंश्योरेंस लेने की इच्छा जताई तो उन्हें बताया गया कि टर्म प्लान में पैसे लौटते नहीं, जबकि यूलिप में अच्छा रिटर्न मिल जाता है। जब बैंकर से पूछा गया कि इसमें कितना जोखिम है तो उन्होंने कहा कि जैसे ही मार्केट में गिरावट आएगी, शेयरों से पैसे निकाल लिए जाएंगे और बाजार चढ़ने पर दोबारा शेयर खरीदे जाएंगे। उनका कहना था कि निवेशक के लिए यह काम उनका रिलेशनशिप मैनेजर (आरएम) करेगा। यह भी बिल्कुल झूठा बयान है। कोई बैंक आरएम यूलिप इन्वेस्टमेंट को नुकसान से बचाने के लिए रकम को इक्विटी और डेट में इधर-उधर नहीं कर सकता है। एक विदेशी बैंक में जब टर्म प्लान लेने की इच्छा जताई गई तो उसने भी यही दलील दी।
गोल्ड बॉन्ड्स
जब एक पीएसयू बैंक में अभी जारी गोल्ड बॉन्ड में निवेश करने को लेकर पूछताछ की गई तो बैंककर्मी गोल्ड बॉन्ड की जगह सोने के सिक्के में निवेश की वकालत करने लगा। उसने कहा, ‘गोल्ड बॉन्ड्स में लॉक-इन पीरियड होता है जबकि गोल्ड कॉइन्स को जब चाहें बेच सकते हैं या उसका आभूषण बनवा सकते हैं।’ यह भी पूरी तरह गलत है। गोल्ड बॉन्ड्स में कोई लॉक-इन पीरियड नहीं होता। हालांकि, ये गोल्ड बॉन्ड्स कुछ खास अवधि के लिए आते हैं। निवेशक को मेच्योरिटी पर सोने की कीमत मिल जाती है। गोल्ड बॉन्ड्स स्टॉक मार्केट में लिस्टेड होते हैं और वहां उनकी ट्रेडिंग होती है। इसलिए, आपकी जब मर्जी हो, वहां आप इसे कभी भी बेच सकते हैं। चूंकि, गोल्ड बॉन्ड्स की ऐक्टिव ट्रेडिंग नहीं होती है, इसलिए बेहतर है कि यह सेकंड्री मार्केट से खरीदा जाए, जहां ये डिस्काउंट के साथ उपलब्ध होते हैं।
इसी तरह, दो अन्य प्राइवेट बैंकों ने गोल्ड बॉन्ड्स की जगह गोल्ड कॉइन्स में निवेश पर जोर दिया। लेकिन, आपको इनकी बातों में नहीं आना चाहिए क्योंकि बैंक गोल्ड बार और कॉइन बेचते तो हैं, लेकिन वापस खरीदते नहीं। ऐसे में आपको इन्हें जूलर्स के पास कम दाम पर बेचने पड़ जाएंगे। गोल्ड बॉन्ड्स का प्रमुख फायदा यह है कि अगर आप इसे मच्योरिटी पीरियड तक रखते हैं तो आपको निवेश की रकम वापस मिलने के साथ-साथ 2.5 प्रतिशत का ब्याज अलग से मिल जाता है।
बैंक लॉकर
बैंक लॉकर देने के लिए किसी-न-किसी प्रॉडक्ट में निवेश की शर्त रख देते हैं जबकि आरबीआई ने स्पष्ट मना कर रखा है। एक सहकारी (को-ऑपरेटिव) बैंक ने लॉकर की मांग पर कहा कि उसके पास एक भी खाली लॉकर नहीं है। हालांकि, एक दूसरे अधिकारी ने कहा, ‘हम लॉकर बढ़ाने पर विचार कर रहे हैं। आप हमारे यहां बचत खाता खुलवा लीजिए। जैसे ही लॉकर उपलब्ध होंगे, पहले आओ, पहले पाओ की तर्ज पर आपको दे दिया जाएगा।’ इसी तरह, एक पीएसयू बैंक ने कहा कि कम-से-कम 2 लाख रुपये एफडी करने के बाद ही लॉकर दिए जाने पर विचार किया जा सकता है। एक प्राइवेट बैंक ने तो और कड़ी शर्त रखी दी। उसने 1 लाख रुपये के सालाना प्रीमियम वाला यूलिप खरीदने के बाद ही लॉकर दिए जाने की बात कही।
इन धोखेबाजों से कैसे बचें?
आपके पास इन रिलेशनशिप मैनेजरों का सामना करने के सिवा कोई चारा नहीं है। दिक्कत तब होती है जब आरएम उसी बैंक से हो, जिसमें आपका खाता हैछ तब आरएम के पास आपके डीटेल्स पहले से ही होते हैं। इसलिए, पहली सावधानी यह बरतें कि आप जब तक बच सकते हैं, किसी भी तरह वित्तीय जानकारी देने से बचें। दूसरा, बैंकरों के बहकावे में नहीं आएं, आपको जो जरूरत है, उसी पर जोर दें। अगर बैंकर कोई नई बात बता रहा हो तो उस पर आंख मूंदकर भरोसा करने की जगह उसे क्रॉस चेक जरूर करें। उसके हरेक दावे को नोट करें और उससे ब्रोशर भी जरूर लें ताकि उसके दावों को बाद में क्रॉस चेक कर सकें। जिसमें निवेश करना चाहते हैं, उस प्रॉडक्ट के बारे को खुद से ज्यादा-से-ज्यादा जानने का प्रयास करें। आखिर में, इतने के बावजूद आप किसी इन्वेस्टमेंट में फंसा महसूस करते हैं, तो नियमों के मुताबिक इससे बाहर निकलने का आवदेन दें या फिर इसकी शिकायत संबंधित अथॉरिटी से करें।
साभार- इकॉनामिक्स टाईम्स से