बाजार का दबाब या पाठकों विशेषकर युवाओं की पसंद के नाम पर हिन्दी समाचार पत्रों में अंग्रेजी का थोपा जाना ठीक नहीं। वास्तविकता तो यह है कि औपनिवेशिक काल में भी अंग्रेजी का चलन इतना नहीं बढ़ा था बल्कि इस दौर में भी हिन्दी के अच्छे साहित्यकार,पत्रकार या अध्यापक हुए हैं। समाचार पत्र सामाजिक चेतना का माध्यम है, लेकिन यही माध्यम भाषा पर आक्रमण करे या अतिक्रमण करे तो स्थिति चिंताजनक है इस तरफ गंभीरता से सोचा जाना चाहिए।
यह कहना है प्रसिद्ध साहित्यकार एवं शिक्षाविद् डा. रमेश दवे का। वे आज माधवराव सप्रे संग्रहालय में ‘आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी फैलोशिप अवार्ड’ समारोह में बतौर मुख्य वक्ता बोल रहे थे।
समारोह के मुख्यअतिथि माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलपति श्री जगदीश उपासने थे। वरिष्ठ पत्रकार चंद्रकांत नायडू कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे थे। माधवराव सप्रे स्मृति समाचारपत्र संग्रहालय एवं शोध संस्थान की इस प्रतिष्ठित फैलोशिप का पहला अवार्ड पत्रकार ममता यादव को दिया गया है। ममता यादव के फैलोशिप अध्ययन का विषय ‘हिन्दी समाचारपत्रों में भाषा का प्रयोग था। ममता को वर्ष 2018 के लिए यह फैलोशिप प्रदान की गई।
अपने उदबोधन में श्री दवे ने आगे कहा कि हमारी हिन्दी भाषा समृद्ध भाषा है इसे बढ़ावा देने में पत्रकार महती भूमिका निभा सकते हैं और निभाना भी चाहिए। उन्होंने एक पाठक के जीवन में समाचार पत्र का महत्व दर्शाते हुए कहा कि यह एक निकटस्थ पड़ोसी की तरह होता है जिससे हम बतिया सकते हैं। इसलिए इसकी भाषा हमारी अपनी भाषा होनी चाहिए। श्री दवे ने आगे कहा कि हिन्दी एक समृद्ध भाषा है और यह समृद्धता दिनों-दिन बढ़ती ही जा रही है। आजादी के तत्काल बाद जहां इसमें सिर्फ 90 हजार शब्द ही थे आज यह बढ़कर करीब 7.50 लाख के करीब हो गए हैं।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्री जगदीश उपासने भी कहा कि हिन्दी समाचार पत्रों में अंग्रेजी के उपयोग का बंधन कभी नहीं रहा। न ही कभी इसे पाठकों के पसंद किया। बल्कि हकीकत तो यह है कि पाठक इस मिश्रित भाषा को पढऩे के लिए विवश है। उनका मानना था कि हिन्दी के प्रति हमारे मन में घर कर बैठी हीन ग्रंथी के चलते ऐसा हो रहा है। इसे दूर करने की जिम्मेदार संपादकों की है। संपादक हिन्दी के अच्छे और नए शब्द गढ़ें। इसके साथ ही वे हिन्दी को बढ़ावा देने के प्रयास तो करें ही आवश्यकता पड़े तो इस प्रवृत्ति पर प्रहार भी करें। मुख्य अतिथि ने फैलोशिप पूरी करने वाली ममता यादव के प्रयास की भरपूर सराहना भी की। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ पत्रकार चंद्रकांत नायडू का मानना था कि हिन्दी समाचार पत्रों में भाषा के प्रवाह के नाम पर भी अंग्रेजी का चलन बढ़ता जा रहा है। लेकिन अंग्रेजी को उड़ेलना किस हद तक जरूरी है यह भी सोचना जरूरी है। जरूरत से ज्यादा अंग्रेजी का मोह हिन्दी भाषी समाचार पत्रों में है जबकि दीगर भाषाओं के समाचार पत्र इससे मुक्त हैं। वे तो शब्द की शुचिता के प्रति भी गंभीर हैं। श्री नायडू ने भी ममता द्वारा किए काम की सराहना की।
इस महत्वपूर्ण कार्य को पूरा करने के दौरान हुए अपने अनुभवों को साझा करते हुए ममता यादव ने बताया कि हिन्दी बहुत ही उदार भाषा है लेकिन उसकी यह उदारता उसके सामने अस्तित्व का संकट भी खड़ा कर सकती है। कई समाचार पत्रों में खानापूर्ति के लिए हिन्दी उपयोग की जा रही है। यह भाषा और पाठक दोनों के साथ अन्याय है। इसे रोका जाना होगा यह पहल संपादकों की ओर से होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि इस कार्य के जरिए हिन्दी का वर्तमान स्वरूप देने वाले आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के करीब जाने का अवसर भी मिला।
आरंभ में स्वागत् वक्तव्य देते हुए माधवराव सप्रे स्मृति समाचारपत्र संग्रहालय एवं शोध संस्थान के संस्थापक निदेशक श्री विजयदत्त श्रीधर ने कहा कि आज संग्रहालय ने पूरे देश में अपनी पहचान और विश्वास कायम किया है। इसके साथ ही विशेष अध्ययन की गतिविधियां भी की जा रही हैं। यह फैलोशिप इसी की एक कड़ी है। कार्यक्रम के बाद उन्होंने बताया कि इस फैलोशिप को पुस्तकाकार में माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारित विश्वविद्यालय द्वारा प्रकाशित किए जाने तथा उसकी प्रतियां सभी बड़े संपादकों तक पहुंचाई जाएगीं। इसके अलावा सभी माध्यमों के संपादकों के साथ विमर्श का आयोजन भी किया जाना निश्चित हुआ है। अंत में आभार प्रदर्शन संग्रहालय समिति के अध्यक्ष राजेन्द्र हरदेनिया ने किया। अतिथियों का स्वागत विवेक श्रीधर ने किया।
इसके पूर्व ममता को लेखनी, प्रमाण पत्र और फैलोशिप राशि प्रदान की गई। अपने तुलनात्मक अध्ययन और विश्लेषण के लिए ममता यादव ने 25 से अधिक प्रमुख समाचारपत्रों का चयन किया। फैलोशिप समिति के अध्यक्ष चंद्रकान्त नायडू और सदस्य राकेश दीक्षित ने शोध अध्ययन का परीक्षण किया। इसी आधार पर फैलोशिप अवार्ड करने का निर्णय लिया गया।