२०१४ के चुनाव में अचानक अपने एक पुराने मारवाड़ी अग्रवाल मित्र का फेसबुक पोस्ट पढ़ के मेरा माथा ठनका। मैंने उनको दुनिया भर का भला-बुरा कहने के बाद पूछा,‘ दिमाग खराब हो गया है क्या? देश के सामने इतना बड़ा खतरा मँडरा रहा है और तुम बकवास कर रहे हो।” फिर मैं बगल की बिल्डिंग में रह रहे अपने एक पड़ोसी के घर जा धमका ये समझने के लिये कि माजरा क्या है, अंदर ही अंदर क्या खेल चल रहा है। तब मेरी आँखें खुली और एक बार फिर समझ में आई कि हमारा देश क्यों और कैसे ८०० साल तक गुलाम रहा।
भाई साहब का कहना था कि मोदी ने गुजरात में कोई तीर नहीं मारा है। बात आगे बढ़ी तो उन्होंने ये खुलासा किया कि वो आप के सदस्य बन गये थे। उनका राजनिति से कोई लेना-देना नहीं रहा फिर भी वो आप के सदस्य बने थे। स्थिति स्पष्ट थी। कहीं कोई नेटवर्क काम कर रहा था। एक साथ दो मारवाड़ियों के ऐसे विचार और मैं ये मान कर चल रहा था कि ये समाज भाजपा की रीढ़ है। मैंने उन्हें समझाया बुझाया लेकिन कह नहीं सकता कि उन्होंने किसे वोट दिया २०१४ में। सबसे बड़े आश्चर्य और हंसी की बात थी कि वो मक्कार केजरी की ‘आप’ का समर्थन कर रहे थे।
नोटबंदी हुई तो मैंने सोचा कि खुदरा व्यापारियों के वोट तो मिलने से रहे मोदी को। मन आशंकाओं से भर गया। फिर जी. एस. टी. आया जो काले धन के मूल स्रोत पर ही एक बहुत जबरदस्त प्रहार था। जिसे हम समानांतर अर्थ तंत्र कहते हैं उसका आधार ही ये भांति भांति के अप्रत्यक्ष कर रहे हैं। मैं एक बिड़ला संगठन में काम कर चुका हूँ इसलिये इस खेल को अच्छी तरह समझता हूँ। किस तरह फैक्टरियों का आधे से भी अधिक माल काले बाजार में जाता था टैक्स प्रक्रिया से बचने के लिये और यह निर्माण करता था नकद लेन देन पर आधारित काली अर्थ व्यवस्था को। कर चोरी का ये धन सामाजिक, राजनितिक, और प्रशासनिक भ्रष्टाचार का मूल था। ये कर उद्योगपति और व्यापारी की मेहनत की कमाई का पैसा नहीं थे।
ये शुद्ध अनैतिक काली पाप की कमाई थी, आम जन, आबाल वृद्ध, और गरीबों से उगाही हुई और सरकार से लूटी हुई। ये एक नृशंस कृत्य था, धोखाधड़ी थी। ये वो कर था जो व्यापारी बच्चों को चाकलेट और गरीब को साबुन बेच कर सरकार के नाम पर उगाहता तो था लेकिन पैसा सरकारी खजाने में नहीं जाता था। आयकर बचाने का कुछ तो नैतिक और वैचारिक आधार है।गाढ़ी मेहनत की कमाई का ३३% सरकार को ऐसे ही दे देना अटपटा लगता है (पहले तो आयकर की दर ९०% तक हुआ करती थी) लेकिन अप्रत्यक्ष कर की चोरी अत्यंत ही घृणित और अनैतिक कृत्य है और उस पाप का निराकरण करने के लिये जो पूण्य के काम किये जाते थे उसका फल कभी नहीं मिलता। व्यापारी परिवारों की आपसी कलह और अपने घर में ही होने वाली लूटपाट परिणाम है इस पापाचार का।
कम लोगों को पता होगा कि देश के कई देशी उद्योग समूह एक माफिया तंत्र की तरह काम करते रहे हैं। उत्पादन से ले कर थोक और खुदरा व्यापार तक की प्रक्रिया में उनके समाज का भाई भतीजावाद बहुत काम आता है। यहीं काले धन का निर्माण, संवहन, और आबंटन होता है। यानि आम जनता द्वारा दो नंबर के माल पर दिया गया अप्रत्यक्ष कर, जो सरकारी खजाने में कभी नहीं पहुँचता, इसी माफिया चेन द्वारा सरकारी अफसरों, और अन्य बिचौलियों में बंटने के बाद उद्योगपति के पास पहुँचता है और वो इसे नेताओं को देता है सरकारी नितियों में फेर बदल करने के लिये जिस से वो अपने उद्योग क्षेत्र में एकाधिकार बनाये रखे, देश में चीजों की कमी बनी रहे और वो दो नंबर के माल को ऊँची दरों पर काले बाजार में पर बेच कर धुँआधार कमाई कर सके। यही काला धन बाकी के उद्योगों, भवन निर्माण ईत्यादि, में भी घूमता है, और नकद और चेक की परंपरा चलती रहती है। प्रत्यक्ष कर की चोरी से पैदा हुआ काला धन बहुत अधिक नहीं होता क्यों कि प्रत्यक्ष करदाता बहुत कम हैं।अप्रत्यक्ष कर दाताओं, या कर चोरों, की संख्या बहुत बड़ी है।
जो लोग ये तर्क देते हैं कि जी. एस. टी. की प्रक्रिया जटिल है, उनको पता नहीं कि अप्रत्यक्ष कर चोरी की प्रक्रिया महा-जटिल है। दो नंबर के माल का हिसाब किताब भी तो रखना पड़ता है और सारे व्यापारी एक नंबर के माल का खाता तो रखते ही हैं, दो नंबर का खाता अलग से रखते हैं। जो दो दो खाते और उसके कारण दुनिया भर के कर वसूली अफसरों को संभाल सकते हैं, उनके लिये कम्प्यूटर चालित जी. एस. टी. प्रक्रिया का पालन करना बहुत ही आसान काम है। तो समस्या प्रक्रिया की जटिलता नहीं बल्कि वो हार्दिक कष्ट है जो उनकी लूट पर अंकुश लगाने से हुआ है। मुफ्त मे मिला माल छिन जाये तो सीने में बहुत जलन होती है।
किसी भी ईमानदार उद्योगपति और व्यापारी के लिये जी. एस. टी. एक संजीवनी की तरह है क्यों कि वो अपने बल-बूते और योग्यता के आधार पर आगे बढ़ना चाहता है और कोई भी पारदर्शी कर व्यवस्था उसके बहूमूल्य समय को बचाती है। वहीं बेईमानों और लुटेरों के लिये ये कड़वी जहरीली स्वाद वाली दवा का घूँट है जो उन्हें पीना पड़ रहा है। चोरी और मुफ्तखोरी जब खून में एक नशे की तरह रच बस गई हो तो उसका withdrawal symptom बहुत कष्टदाई होता है।यही हो रहा है।
मोदी सरकार को क्या करना चाहिये?
१। वो व्यापारी वर्ग से खुल के बात करे और समझाये कि जी. एस. टी. एक यथार्थ है इससे मुंह नहीं मोड़ा जा सकता। और उनकी हर समस्या को सुना जायेगा और रास्ते खोजे जायेगें।
२।उन्हें समझाये कि ये फायदे का सौदा है, और इस से वो नये दौर की व्यापार व्यवस्थाओं से आसानी से जुड़ सकेगें और चैन से रह सकेगें, और घर में नकदी को सड़ाना या उसे बड़े ब्याज के लालच में चलाने का काम अन्ततोगत्वा नुकसानदेह है। इसमें ना माया बचती है ना राम मिलते हैं। जी. एस. टी. की चोरी अनैतिक है।
३। मंत्रालय में एक ऐसा विभाग बनाये जो अफसरों के हफ्ता वसूली वाले भ्रष्टाचार को खत्म करे और बेईमान व्यापारियों को कड़ा सबक सिखाए।
४। जी. एस. टी. दर को बेधड़क कम करे जिस से कि इसकी स्वीकृति बढ़े और लोग इस कर प्रणाली से स्वत: जुड़ें।
व्यापारी वर्ग से मेरी करबद्ध प्रार्थना
१। कई बड़े खतरे देश पर मँडरा रहे हैं। इस बात का ध्यान रखें। देश नहीं बचा तो आप भी नहीं बचेगें।
२। जी. एस. टी. से परेशान हैं तो जजिया देने के लिये और फिर से दड़बेनुमा घरों में नारकीय जीवन बिताने के लिये तैय्यार रहियेगा।
३।अपनी बेटी-बहुओं को बचा के रखियेगा। लव जिहादी उन को पहले टारगेट करते हैं। वो जानते हैं कि आप उनसे लड़ नहीं पायेगें।
४।आप का व्यापार खतरे में है। जिहादी इलाकों में जीना दुश्वार हो जायेगा। सब छोड़-छाड़ के कहाँ कहाँ भागेगें?
५।तय कर लीजिए, सम्मान से अपने जाति-धर्म को बचा कर जीना है, या दोयम दर्जे की नागरिकता ग्रहण करनी है मन मार के।
६। इस्लामी और नक्सल आतंकवाद और गुँडागर्दी के निशाने पर भी पहले आप ही रहे हैं और रहेगें।
७। ये भी याद रखियेगा, केजरीवाल, मायावती, पप्पू, अखिलेश, कुमारस्वामी, स्टालिन, आदि को अगर आप में और जिहादियों/नक्सलियो में चुनना होगा, तो वो जिहादियों के साथ ही जायेगें।
८।इसमें कोई संदेह नहीं, और आप ये अच्छी तरह जानते हैं, कि मोदी ने भ्रष्टाचार के खिलाफ एक ईमानदार मुहिम छेड़ी है। आप स्वयं उसके भुक्तभोगी हैं।
९। भ्रष्टाचार का खात्मा अन्ततोगत्वा आप के हित में है, देशहित में है।
१०। ये भाव तो बिल्कुल ना रखें कि जी.एस.टी. आप की मेहनत की कमाई का पैसा है। जी नहीं, वो जनता का पैसा है जिसने उसे सरकार को दिया है।आप को कोई अधिकार नहीं उसे रखने का।
साभार- सोशल मीडिया से