<p><span style="line-height:1.6em">एनआरआई इस बार जाड़े की छुट्टियां भारत में मनाने का मूड बना रहे हैं। इस बार का जाड़ा उनके लिए कुछ अलग होगा और बड़ी संख्या में देश आने वाले एनआरआई एक गंभीर बिजनस यानी नरेंद्र मोदी के चुनाव प्रचार में वॉलनटिअरी शिरकत करेंगे। एनआरआई ऑर्गेनाइजेशंस से ईटी को मिली जानकारी के अनुसार, अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोप और साउथ ईस्ट एशियाई देशों के करीब 10,000 एनआरआई मोदी के चुनाव प्रचार में अलग-अलग तरीके से योगदान करेंगे। इसीलिए वे दिवाली और दूसरी छुट्टियों को फिलहाल टाल रहे हैं। </span></p>
<p>इनमें से कुछ लोग अपने पैतृक गांव और शहर में जाकर बीजेपी के प्रधानमंत्री उम्मीदवार के लिए कैंपेन करेंगे, तो कुछ लोग मोदी की टीम में शामिल होकर काम करेंगे। सिंगापुर में काम करने वाली एडिक्शन काउंसलर स्मिता बरूआ भी जनवरी से तीन महीने की छुट्टी भारत आने का प्लान कर रही हैं। वह भारत में आकर बीजेपी के लिए कैंपेन करेंगी। भारतीय अमेरिकी बिजनसमैन चंद्रकांत पटेल भी छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और दिल्ली में अगले महीने होने वाले विधानसभा चुनावों के दौरान होंगे। यह अमेरिका में बीजेपी के ओवरसीज फ्रेंड्स के हेड हैं। वह कहते हैं कि अगले साल होने वाले चुनाव में 5,000 भारतीय अमेरिकी भारत आएंगे।</p>
<p>वे कहते हैं, 'हमारी युवा टीम अमेरिका में लाखों भारतीयों को अपने को बतौर वोटर रजिस्टर करने के लिए सेंसेटाइज कर रही है, ताकि वे चुनाव के समय भारत में रहकर वोट डाल सकें।' ब्रिटेन से करीब 3,500 एनआरआई आम चुनाव के दौरान भारत आने की प्लान बना रहे हैं। बीजेपी के ओवरसीज फ्रेंड्स के जनरल सेक्रटरी (ब्रिटेन और यूरोप) अमित तिवारी ने बताया, 'हममें से अधिकतर लोग दिसंबर के सालाना विजिट को टाल रहे हैं, ताकि चुनाव के समय मोदी के कैंपेन के लिए मौजूद रह सकें।' तिवारी एनआरआई को स्थानीय और क्षेत्रीय बीजेपी वर्कर्स के साथ काम करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। </p>
<p>मोदी के कैंपेन में शामिल होने वाले इन एनआरआई की अप्रत्याशित भागीदारी को किस तरह देखा जा सकता है? एनआरआई और कमेंटेटर मेघनाद देसाई कहते हैं, 'यह चेतन भगत की पीढ़ी के हैं। यह बदलाव चाहते हैं। मोदी को एनआरआई बदलाव करने की क्षमता को बढ़ाने वाले के रूप में देखते हैं।' समाजशास्त्री दीपांकर गुप्ता कहते हैं, 'विदेशों में रह रहे बीजेपी के कट्टर समर्थक कथित तौर पर कॉर्पोरेट फ्रेंडली हैं और अधिकतर माइग्रेंट भारतीय कॉर्पोरेट अमेरिका से उनके असोसिएशन का फायदा उठाते हैं। इस वजह से वे ज्यादा अपीलिंग लगते हैं।'</p>
<p>साभार-इकॉनामिक्स टाईम्स से </p>
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