वैश्विक हिंदी सम्मेलन तथा श्रीमती एम.एम.पी शाह विमेंस कॉलेज ऑफ कॉमर्स एण्ड आर्ट्स के संयुक्त तत्वावधान में मातृभाषा दिवस पर आयोजित वैश्विक संगोष्ठी में बैंक ऑफ बड़ौदा के महाप्रबंधक डॉ. जवाहर कर्णावट को वैश्विक हिंदी सम्मेलन द्वारा ‘डॉ कामिनी स्मृति वैश्विक हिंदी सेवा सम्मान’ से विभूषित किया गया।
मातृभाषा: जन-अधिकार एवं जन-विकास विषय पर आयोजित इस संगोष्ठी के मुख्य अतिथि भारत के पूर्व सूचना आयुक्त श्री शैलेश गांधी थे उऩ्होंने इस अवसर पर भाषा को संवाद का माध्यम बताते हूए भारत जैसे बहुभाषी देश में त्रिभाषा सूत्र को प्रभावी रूप से लागू किए जाने की बात कही। संगोष्ठी की अध्यक्षा इंदौर की पूर्व उप जिलाधीश, भाषा-सेवी साध्वी सुश्री विजयलक्ष्मी जैन का कहना था कि भाषा मात्र संवाद का माध्यम नहीं, बल्कि हजारों वर्षों से अर्जित ज्ञान-विज्ञान, आध्यात्म का विपुल भंडार है। उन्होंने कहा, ‘किसी भाषा का जाना मात्र भाषा का जाना नहीं बल्कि उस भाषा में निहित विपुल ज्ञान-विज्ञान के भंडार का समाप्त होना है।‘ उन्होंने विश्व के सभी विकसित देशों की तरह मातृभाषा को शिक्षा का माध्यम बनाने पर जोर दिया।
विषय प्रवर्तन करते हुए वैश्विक हिंदी सम्मेलन के निदेशक डॉ. एम एल गुप्ता ‘आदित्य’ ने मातृभाषा के संबंध में भारत के सर्वाधिक अंग्रेजी जानने वाले दो विद्वानों अर्थात महात्मा गांधी और गुरुवर रवींद्रनाथ टैगोर के मातृभाषा संबंधी विचारों को प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि विभिन्न कानूनों के अंतर्गत सूचनाएँ केवल अंग्रेजी में दिए जाने के चलते देश की करीब 95%आबादी, जो अंग्रेजी नहीं जानती, या ठीक से नहीं जानती उनके ज्यादातर कानूनी अधिकारों का हनन हो रहा है। इसलिए विभिन्न कानूनों के अंतर्गत दी जाने वाली सूचनाएँ संघ और राज्य की भाषाओं में दी जानी चाहिए ।
सम्मान-मूर्ति डॉ. जवाहर कर्णावट ने कहा कि जनता की भाषा में जानकारी न देना, उन्हें जानकारी न दिए जाने के समान है। उन्होंने इसके लिए जनता को जागरूक किए जाने पर जोर दिया और त्रिभाषा सूत्र को प्रभावी रूप से लागू करने की बात का भी समर्थन किया। उन्होंने कहा कि हिंदी भाषियों को भी अन्य भारतीय भाषाएं सीखनी चाहिए।
मराठी भाषा के लिए सक्रिय रूप से कार्यरत सोमैया कॉलेज की प्राध्यापक डॉ वीना सानेकर ने अपनी मातृभाषा मराठी में उद्बोधन करते हुए व्यक्ति के विकास में मातृभाषा के महत्व को प्रतिपादित किया और जन अधिकार के लिए भी इसे अत्यंत आवश्यक बताया। श्रीमती एम.एम.पी शाह विमेंस कॉलेज के प्रांगण में आयोजित संगोष्ठी में कॉलेज की प्राचार्या डॉ. लीना राजे ने अपनी मातृभाषा मराठी में सभा को संबोधित करते हुए मातृभाषा से अपने लगाव और उसके महत्व के बारे में बताया। उन्होंनेयह भी कहा कि मराठी भाषी होते हुए भी एक समय गुजराती में भी पढ़ाया था।
मातृभाषा दिवस पर तेलुगू भाषी बैंक अधिकारी सुश्री विनीता तथा उड़िया भाषी अधिकारी श्री प्रशांत बल ने भी अपनी-अपनी मातृभाषाओं के संदर्भ में उनमें निहित ज्ञान-विज्ञान एवं प्रसार की जानकारी देते हुए उनके महत्व को प्रतिपादित किया।
सुश्री विजयलक्ष्मी जैन के आह्वान पर सभी ने ‘भारत’ को ‘भारत’ ही कहने के अभियान को पूर्ण समर्थन देने और इसके लिए प्रधानमंत्री जी को ज्ञापन देने का निर्णय किया कि भारत का अन्य भाषाओं में कोई अलग नाम नहीं होना चाहिए। संगोष्ठी में यह निश्चय भी किया गया कि सभी भारतीय भाषाएँ मिलकर भारतीय भाषाओं के प्रतिष्ठापन तथा अंग्रेजी के साम्राज्यवाद का मिल कर मुकाबला करें।
नासिक से पधारे बैंककर्मी श्री राहुल खटे ने विज्ञान के क्षेत्र में हिंदी में एवं अन्य भारतीय भाषाओं में उपलब्ध विपुल साहित्य तथा वेबसाइट व चैनल आदि की जानकारी दी ताकि विज्ञान के विद्यार्थी हिंदी अथवा मातृभाषा के माध्यम से पढ़ सकें। हिंदी मीडिया डॉट इन के संयोजक चंद्रकांत जोशी ने चैनलों की प्रस्तुति में भारतीय भाषाओं का प्रयोग बढ़ाते हुए रोजगार के अवसर बढ़ाने की बात बताई। भारतीय स्वाभिमान मंच, मुंबई के संयोजक राजू ठक्कर, पूर्व प्राचार्या मंजू गुप्ता, पत्रकारिता कोश के संपादक आफताब आलम, उदय कुमार सिंह ने भी विचार प्रस्तुत किए। संगोष्ठी का संचालन कॉलेज की प्राध्यापक डॉ. उषा मिश्रा ने किया और धन्यवाद ज्ञापन डॉ. किरण ने प्रस्तुत किया।
मातृभाषा दिवस पर आयोजित इस वैश्विक संगोष्ठी में यह निश्चय किया गया कि सभी भारतीय भाषाएँ मिलकर भारतीय भाषाओं के प्रतिष्ठापन तथा अंग्रेजी के साम्राज्यवाद का मिल कर मुकाबला करें। संगोष्ठी में सोमैया कॉलेज के आचार्य डॉ सतीश पांडेय, एक्जिम बैंक के उप महाप्रबंधक नवेन्दु वाजपेई, राजेंद्र सिंह रावत, रेशमा जलगांवकर सहित अनेक विद्वान व कॉलेज के अध्यापक एवं विद्यार्थी उपस्थित थे।
वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुंबई
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