Monday, November 25, 2024
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दिद्दा: कश्मीर की दिलेर रानी जो शत्रुओं पर हमेशा पड़ी भारी

इतिहास और इतिहासकारों ने दिद्दा को और दिद्दा के ज़िक्र को इतना संकुचित या इतना टुकड़ों में रखा कि उसकी पूरी शख्सियत से रूबरू हो पाना खासा मुश्किल था।

महिला सशक्तिकरण की अनगिनत कहानियों के बीच पिछले दिनों रूपा पब्लिकेशन ने एक ऐसी अनकही और दबंग कहानी अंग्रेजी में अपने पाठकों के लिए उतारी है,जो आज की लड़कियों और महिलाओं के लिए न सिर्फ उदाहरण है, बल्कि जूझने और अपने व्यक्तिव को स्थापित करने का जज़्बा भी देती है। इस किताब का नाम है ‘दिद्दा-द वारीयर क्वीन ऑफ कश्मीर।’

हिस्टोरिकल फिक्शन कैटेगरी में गिनी जाने वाली लेखक आशीष कौल द्वारा इंग्लिश में लिखी ये किताब, अखंड कश्मीर पर करीब 50 साल तक राज्य करने वाली रानी दिद्दा की कहानी के साथ साथ उस वक़्त से भी परिचित कराती है जब करीब 1200 साल पहले कश्मीर पर दिद्दा का राज था।

दिद्दा-द वारीयर क्वीन ऑफ कश्मीर अपनी तरह की एक अनूठी कहानी है। 1200 साल पुरानी इस कहानी की नायिका ‘दिद्दा’ उसके जीवन की व्यक्तिगत ,सांस्कृतिक ,सामाजिक और ऐतिहासिक के साथ साथ शारीरिक चुनौतियाँ तो इस का भाग हैं ही । इस कहानी को दिलचस्प बनाती है दिद्दा की वो यात्रा जो एक अनचाही शारीरिक रूप से विक्षिप्त ,माँ बाप द्वारा त्याग दी गयी नन्हीं बच्ची से कश्मीर के साम्राज्य को सम्हालने तक की यात्रा है। कैसे उसने पुरुष सत्तात्मक समाज के बने बनाए नियम तोड़े और अपने नियम बनाए । दिलचस्प है दिद्दा के उस रणनीतिज्ञ दिमाग को समझना कि जिसके चलते गजनी को एक नहीं दो-दो बार मूंह की खानी पड़ी।

मर्दों को पीछे छोड़ने वाली रानी

इस किताब के पन्नों में छिपी कहानी में आप जैसे जसे आगे बढ़ते हैं ,स्पष्ट होता जाता है कि इतिहास उन महिलाओं के साथ, उनकी क्षमताओं के साथ , उनकी कहानियों के साथ कितना क्रूर रहा है कि जिनहोने मर्दों को पीछे छोडकर या मर्दों के सामने खड़े होकर नाम भी कमाया , इज्ज़त भी और शक्ति भी जिनके हाथ रही। राज्य सत्ता और साम्राज्य को न सिर्फ चला पाने वाली बल्कि बढ़ाने और सशक्त करने वाली इस महिला का सामर्थ इसी बात से समझ आ जाता है कि ऐसा करने के लिए उसने ज़रूरत पड़ने पर परम्पराओं और रीतियों की भी परवाह नहीं की।

पतिव्रत और परंपरा के नाम पर चिता पर पति के साथ जलने की बजाए उसने सती होने से मना करके अपने पुत्र और साम्राज्य की बागडोर संभालने को महत्व दिया। लेखक आशीष कौल की पिछली किताब ‘रिफ़्यूजी कैंप’ हिन्दी में लिखित कहानी थी जिसे पिछले वर्ष की लोकप्रिय किताबों की लिस्ट में भी स्थान मिला था। रिफ़्यूजी कैंप जहां सत्ता और स्वार्थ के चेस बोर्ड पर पिच रहे कश्मीरी पंडितों और आम कश्मीरियों की कहानी थी तो वही इस बार इंग्लिश में लिखी ये कहानी रानी दिद्दा को वक़्त के शतरंज पर रख कर देख और समझ रही है।

रानी जो पड़ी शत्रुओं पर भारी

रानी दिद्दा , एक ऐसी रानी जो कई बार अपनों से हारी, पर शत्रुओं पर हमेशा भारी पड़ी। शारीरिक रूप से अक्षम एक ऐसी नन्ही बच्ची जिसे उसकी अक्षमता के चलते अभिभावकों ने ठुकराया , पर उसने हार नहीं मानी । उनका प्यार और ध्यान अपनी ओर खींचने के लिए युद्ध काला के साथ साथ सत्ता और शासन का विज्ञान भी सीखा और समझा। रानी दिद्दा के लगातार कई मोर्चों पर खुद को खड़े रखने और विजयी बनाने के संघर्ष की इस यात्रा में वो एक आम शारीरिक रूप से विक्षिप्त लड़की से एक असाधारण जूझारू क्षमता वाली एक ऐसी महिला में तब्दील हुई जिसने राजगद्दी करीब करीब आधी शताब्दी संभाली।

इतिहास और इतिहासकारों ने दिद्दा को और दिद्दा के ज़िक्र को इतना संकुचित या इतना टुकड़ों में रखा कि उसकी पूरी शख्सियत से रूबरू हो पाना खासा मुश्किल था। अपनी किताब के बारे में बात करते हुए लेखक आशीष कौल सिर्फ एक ही वाक्य में सब कुछ कह जाते हैं, ’ये दिद्दा के जरिये हर जुझारू महिला की कहानी है , विश्व भर की महिलाओं के लिए ।‘

दिद्दा लोगों के (खास तौर पर कश्मीर के लोगों के ) दिलों में ज़िंदा तो रही , पर सबने उसके व्यक्तित्व के किसी अंग विशेष को ही जाना। किसी के लिए दीदा क्रूर और ज़ुल्मी प्रशासक रही तो किसी के लिए वो लड़की या महिला जिसने जब जो सही समझा वो किया और ज़िंदगी अपनी शर्तों पर जी। कुछ ऐसे भी शक्ति के केंद्र रहे पुरुष भी रहे जो दिद्दा को पराजित तो नहीं कर पाये, पर जिनके लिए वो ‘चुड़ैल’ रानी हो गयी।

राजा विक्रमादित्य से होती है दिद्दा रानी की तुलना

लेखक आशीष कौल ने बताया, “राजा विक्रमादित्य के बाद ज़मीन और शासकों को जोड़कर एक अखंड साम्राज्य पर राज्य करने वाली उस अभूतपूर्व रानी की पूरी कहानी जानने का दावा कोई नहीं कर सकता पर मैंने जानकारियों के उलब्ध टुकड़ों को जोड़कर उसकी कहानी लोगों तक पहुंचाने की एक कोशिश की है।”

अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए आशीष कहते हैं कि ‘ये कहानी आज के जमाने में और समसामयिक हो जाती है जब बहुत सी महिलाएं अपने संघर्षों भरी यात्रा के बाद सत्ता और ऊंचे पदों पर न सिर्फ बैठ रही हैं, बल्कि अपनी काबलियत से दुनियाँ को चौंका रही हैं। बिलकुल वैसे ही, जैसे 1200 साल पहले रानी दिद्दा ने किया था।’

इस किताब की प्रस्तावना पैराओलिम्पिक चैम्पियन और पद्मश्री दीपा मालिक ने लिखा है । दीपा कहती हैं कि ‘ये भारतीय इतिहास द्वारा भुला दी गई एक ऐसी अनूठी भारतीय महिला की कहानी है कि जिसको लोगों तक पहुंचाने के लिए लेखक ने बड़ी खूबसूरती से पिरोया है। ये कहानी सिर्फ कहानी न होकर महिलाओं से जुड़ी कई वैश्विक मान्यताओं को तोड़ेगी और विश्व को महिलाओं की काबलियत की न सिर्फ इज्ज़त करना सिखाएगी बल्कि उसकी स्वीकार्यता भी बनाएगी।
(लेखक आशीष कौल की पिछली पुस्तक ‘रिफ़्यूजी कैंप’ हिन्दी में लिखित कहानी थी, जो पिछले वर्ष की लोकप्रिय पुस्तकों में शामिल थी)

साभार- https://www.lokmatnews.in से

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