नई दिल्ली : अग्रणी साहित्यकार, रंगकर्मी व चिंतक गिरीश कर्नाड की याद में राजकमल प्रकाशन द्वारा, त्रिवेणी सभागार में आज शुक्रवार की शाम स्मृति सभा का आयोजन किया गया। गिरीश कर्नाड की यादों को साझा करने वालों में विभिन्न नाट्यदलों के रंगकर्मियों के अलावा नृत्य, संगीत, सिनेमा और साहित्य से जुड़े लोग शामिल थे. मंच से भावपूर्ण श्रद्धांजलि व्यक्त करने वालों में एम.के. रैना, त्रिपुरारी शर्मा, भारत कारनाड ,अरविन्द गौड़ ,अनवर जमाल , अशोक माहेश्वरी , देवेंद्र राज अंकुर, डीपी त्रिपाठी शामिल थे. कार्यक्रम का संचालन संजीव कुमार ने किया ।
स्मृति सभा का आगाज गिरीश कारनाड पर आधे घंटे की डॉक्युमेंटरी से हुई .इस डॉक्युमेंटरी में कारनाड द्वारा अपने शुरूआती दिनों के संघर्ष के साथ-साथ उनकी शिक्षा एवं नाट्य लेखन , रंगमंच , सिनेमा में अभिरुचि तथा रोड्स विश्वविद्यालय के अपने अनुभवों के बारे में बहुत विस्तार से दिखाया गया है .
अग्रणी साहित्यकार गिरीश कारनाड की हिंदी में सभी पुस्तकें राधाकृष्ण प्रकाशन से प्रकाशित हैं. राधाकृष्ण प्रकाशन, राजकमल प्रकशन समूह के सहयोगी संसथान हैं . उनके चर्चित नाटक हैं तुग़लक , अग्नि और बरखा ,ययाति, हयवदन ,बलि ,शादी का एल्बम ,बिखरे बिम्ब और पुष्प ,टीपू सुल्तान के ख्याब ,रक्त कल्याण आदि। कारनाड के दो नाटक प्रकाशनाधीन हैं.
गिरीश कारनाड के नाटकों के दौर को याद करते हुए एम के रैना ने कहा “चाहे बाबरी मज्जिद विध्वंस , आपातकाल, धारवाड़ का ईदगाह और पत्रकार गौरी लंकेश हत्या मामला हो गिरीश कर्नाड हमेशा इनके विरोध खड़े रहे.”
एनएसडी की पूर्व निदेशक त्रिपुरारी शर्मा ने कहा की मैं उनके नाटकों को पढ़ते और देखते हुए बड़ी हुई और इसने मुझे बचपन से ही काफी प्रभावित किया. उन्होंने आगे कहा, “वे एक निर्भीक और हठी व्यक्ति थे जो उनके लेखन और नाटकों में भी झलकता है .”
नाट्य आलोचक देवेंद्र राज अंकुर ने कहा “गिरीश कारनाड ने आगे आने वाले नाटककारों के लिये रास्ते बना दिए हैं और साथ ही उन्होंने यह बताया कि सांस्कृतिक जगत के होने के बावजूद हमें सामजिक जिम्मेदारियों से नही बचना चहिए और आगे आकर लड़ना चहिए “.
फिल्ममेकर अनवर जमाल ने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा ” जब हम कोई पात्र य़ा सीन बनाते थे तो गिरीश कर्नाड के बिना संभव नही हो पाता था और ये श्याम बेनेगल और सत्यजीत दुबे भी अच्छी तरह जानते थे .”
अशोक माहेश्वरी , प्रबंध निदेशक राजकमल प्रकाशन ने कहा “गिरीश कारनाड लोगों पर सहज विश्वास करने वाले एवं पक्के उसूलों वाले व्यक्ति थे .यह सत्य है की भारतीय साहित्य मे दूसरा गिरीश कारनाड नही है.
Warm regards,
Santosh Kumar
Zimisha Communications
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