Tuesday, November 26, 2024
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क्या थक चुकी है कांग्रेस पार्टी …?

*त्रासदी यह है कि कांग्रेस की सामाजिकी विलोपित हो गई है चुनावी तंत्र में *
*महात्मा गांधी भी सत्ता साकेत में सरदार पटेल की तरह हो चुके थे काँग्रेस के लिये इसे प्रधानमंत्री ने समझ लिया है इसलिये अब गांधी मुक्त कांग्रेस का अस्त्र चला है।

जिस कांग्रेस को मोहनदास करमचंद्र गांधी ने पल्लवित औऱ पुष्पित किया वह 134 साल में लगता है हारने के बाद थक भी गई है हताश पार्टी उस गांधी की साधना में लगी है जो पिछले कई दशकों से सैंकड़ो लोगो के लिये सत्ता की पारस पथरिया है जो स्पर्श होते ही किसी भी आम आदमी को सत्ता के गलियारों में गुलामनबी ,सलमान खुर्शीद,प्रतिभा पाटिल औऱ मनमोहन सिंह बना सकता है। लेकिन बदले हुए वक्त में पारस खुद केवल पत्थर सा बनकर रह गया नई पीढ़ी के गांधी ने अपनी कृपा को कछुए की तरह समेट रखा है फिलहाल। दशकों तक कृपापात्र रहे सत्ता से हरियाये एलीट (अभिजन)दुबलाये जा रहे है क्योंकि नेहरू गांधी मतलब लुटियन्स का इंद्रलोक सरीखा वैभव।और बिन गांधी मोदी की निर्मम दुनिया।पर सवाल यह है कि क्या कांग्रेस में गांधी युग फिर से स्थापित होना चाहिये?

क्या वास्तव में गांधी से कोई वैचारिक सरोकार इस पार्टी के बचे है ?बहुत गहरे में मत जाइए गांधी का कांग्रेस से रिश्ता आजादी के बाद कभी रहा ही नही है, इंदिरा गांधी के आते आते यह रिश्ता हिन्द महासागर में समाधि ले गया।आज जिस अस्तित्व के संकट का सामना 134 साल पुरानी पार्टी को करना पड़ रहा है उसकी बुनियाद भी गांधी ही है, लेकिन यह नेहरू गांधी नही महात्मा गांधी है मोहनदास करमचंद गांधी।मुद्दा यह है कि काँग्रेस की वीथिकाओं में लोग आजादी के बाद किस गांधी को अपने नजदीक महसूस करते है ?स्वाभविक ही है नेहरू- गांधी को।दोनो में बड़ा बुनियादी फ़र्ख है एक सत्ता के जरिये सुशासन औऱ लोककल्याण की बात करता है दूसरा धर्मसत्ता की,भारतीय सनातन मूल्यों की वकालत करता है।एक आत्मा की बात करता है दूसरा शरीर की ।जाहिर ही है आत्मा की अनुभूति दुरूह ही होगी इसलिये पोरबंदर के गाँधी का बोरिया बिस्तर तो 24 अकबर रोड से बंधना ही था।लेकिन हमें यह भी पता है शरीर की सीमा है, आज 134 साल बाद यह दम तोड़ रहा है, वैचारिकी के बिना कोई संस्थान आखिरी कब तक टिक पाता है।

विचार भी खोखले औऱ सिर्फ हवाई आदर्श होंगे तो वही हाल होता है जो वाम विचार का पूरी दुनिया मे हुआ।कभी भी कहीं भी लाल क्रांति स्थाई नही हुई कहीं भी सत्ता सिर्फ बंदूक की नाल से निकली।कहीं निकली भी तो स्थाई नही हो सकी।क्योंकि कम्युनिज्म जमीन पर टिकाऊ नही है न ही मानवीय इतिहास से उसका कोई सरोकार।लेकिन यह हकीकत है कि गांधी यानी मोहनदास करमचंद गांधी की वैचारिकी न तो खोखली थी न हवाई आदर्श का मुजायरा। क्योंकि गाँधी तो भारत के विचारों को ही आगे बढ़ा रहे थे जो इसी धरती से निकले है हजारो साल पहले।कांग्रेस ने सत्ता में आने के बाद इसे कभी पकड़ा ही नही क्योंकि गाँधी सत्ता की नही सत्य के अधिष्ठाता थे और वे रोम रोम से भारतीयता के हामी थे।आजादी के बाद कांग्रेस ने सत्ता के माध्यम से जिस भारत की परिकल्पना को जमीनी आकार देना आरम्भ किया वह गांधी से ठीक उलट था।इस गांधी विरोधी सत्ता प्रतिष्ठान में 60 साल तक चार चांद लगे लेकिन इस भवन की आयु पूरी हुई तो अब इसका कोई पैबंद समझ नही आ रहा किसी को।

त्रासदी यही नही है कांग्रेस की मूल समस्या तो गांधी विहीन हो जाने की हैं क्योंकि सामने नरेंद्र मोदी खड़े है दलबल के साथ काँग्रेस को गांधी मुक्त करने के लिये।अपने सांसदों के साथ बैठक कर प्रधानमंत्री मोदी ने सभी को निर्देशित किया है कि महात्मा गांधी की 150 वी जन्म जयंती पर 150 किलोमीटर पैदल यात्रा अपने अपने निर्वाचन क्षेत्रों में करें।यह पैदल यात्रा 2 ओक्टुबर गांधी जयंती से 31 अक्टूबर पटेल जयंती तक चलेगी। इस पैदल यात्रा के मायने कोई छोटे मोटे नही है मोदी प्रतीकों की सियासत के अदभुत मास्टर है वे पटेल को पहले ही गुजराती अस्मिता के साथ सयुंक्त कर खुद को पटेल का वारिस औऱ कांग्रेस को विरोधी के रूप में स्थापित कर चुके है।इतिहास के सन्दर्भो के सहारे मोदी ने सरदार पटेल को लेकर यह धारणा तो बना ही दी कि नेहरू ने कभी पटेल को वास्तविक सम्मान नही मिलने दिया।नेहरू गांधी खानदान से उपजी व्यक्ति पूजा के चलते किसी कांग्रेसी में यह साहस कहां था कि वह सरदार साहब की वकालत कर पाता?

आज सरदार पटेल कांग्रेस से अलग है।अब बारी मोहनदास करमचंद गांधी की है क्या अजब संयोग है सरदार पटेल की तरह गांधी भी उसी गुजरात की धरती से आते है जहां से मोदी और अमित शाह ।इसमें किसी को शक नही मोदी न केवल भारत बल्कि दुनिया के सर्वश्रेष्ठ समकालीन कम्युनिकेटर है।जाहिर है आज काँग्रेस का संकट वाकई बहुत बड़ा है बीजेपी के सभी सांसद,विधायक 2 अक्टूबर से 31 अक्टूबर तक गाँधीवाद का झंडा लेकर गांव गांव घूम रहे होंगे तब 134 साल पुरानी कांग्रेस पार्टी अपने अंतर्विरोधों में घिरी उस नए गांधी की दण्ड प्रार्थना में बदहवास सी होगी जो खुद ही गांधी को नही जानता है।नए जमाने का भारत सिर्फ इसलिये गांधी के नाम पर कांग्रेस और 10 जनपथ के पीछे नही खड़ा हो सकता कि साल में दो बार इस परिवार के लोग राजघाट पर जाकर गुलाब की पंखुड़िया चढाते है या कांग्रेस अधिवेशनो में गाँधी की तस्वीर टँगी हुई रहती है।150 साल बाद भी गांधी भारत की अवचेतना में सबसे गहरे समाए हुए विचार की तरह है।

प्रधानमंत्री मोदी इसे बहुत अच्छी तरह समझते है वे यह भी जानते है कि मौजूदा कांग्रेस से मोहनदास करमचंद गांधी को अलग करना कितना आसान है क्योंकि गुजराती गांधी तो सत्ता दिला नही सकता है इसलिये कांग्रेस के लिये तो आनन्द भवन के गांधी ही गांधी है।आज किसी कांग्रेसी में इतना आत्मबल नही है कि वह खड़ा होकर बगैर 10 जनपथ के कांग्रेस की वकालत कर सके सच्चाई तो यह है कि भले कांग्रेस कार्यसमिति नया अध्यक्ष चुन भी ले पर यह भी तथ्य है कि गैर गांधी कभी 10 जनपथ से आगे नही जा पायेगा औऱ यही कांग्रेस की असली समस्या है।जब कभी कांग्रेस के मौजूदा थिंक टैंक पर विचार किया जाता है तो ऐसा लगता है कि इससे दरिद्र धनी कोई नही है ।एक से बढ़कर एक विद्वान,मनीषी सरीखे व्यक्तित्व जिस पार्टी की पूंजी रहे हो आज वह भारत के न केवल राजनीतिक परिदृश्य बल्कि सामाजिक जीवन से भी गायब हो गई।उसका सामाजिक रिश्ता कहां है ?सिर्फ चुनाव मे कांग्रेस के टिकट औऱ चॉपर से प्रचार यानी एक चुनावी प्लेटफार्म से अलग क्या रिश्ता भारत के लोकजीवन से मौजूदा कांग्रेस पार्टी का बचा है?

आप सवाल उठा सकते है राजनीतिक दल के लिये सामाजिकी से पहले राजनीति जरूरी है।यह भी सच है लेकिन इस दौरान हम उस बुनियादी औऱ पीढ़ीगत अंतर को अनदेखा कर देते है जो मोहनदास करमचंद गांधी की वैचारिकी से जुड़ी है इसे एक उदाहरण से समझिये विदिशा मप्र के नामी वकील रहे तखतमल जैन ने मध्यभारत राज्य के मुख्यमंत्री बनने का प्रस्ताव पहली बार मे इसलिये खारिज कर दिया था क्योंकि उनकी प्रेक्टिस सीएम बनने से प्रभावित होती।हालाकि जैन बाद में सीएम बने क्योंकि वे कांग्रेस के निष्ठावान गांधीवादी थे।मप्र में डीपी मिश्र जैसे अध्यवसायी औऱ विजनरी सीएम भी रहे है जो कृषणायनी जैसी कृति के रचनाकार भी है।समझा जा सकता है कि गांधीवाद की जमीन पर खड़े उस दौर के कांग्रेसी सामाजिक,सांस्कृतिक, साहित्यिक औऱ भारतीय चेतना के प्रतिनिधि थे यही कांग्रेस की ताकत थी। लेक़िन आज की कांग्रेस गांधी विमुख कांग्रेस है जो जड़ता,व्यक्तिपूजा,खुशामदी, औऱ सुविधा के व्याकरण से सत्ता का खोखला ग्रन्थ ही बनाना जानती है।कांग्रेस की किसी लायब्रेरी में आज गांधी नही है इसीलिये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस मुक्त भारत के दो कदम आगे गांधी मुक्त कांग्रेस का भी अस्त्र चल दिया है,इस अचूक अस्त्र की मार क्या झेल पाएगी?10 जनपथ औऱ उनकी मंडली।
पुनश्च:जब अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा अपना कार्यकाल पूरा कर व्हाइट हाउस से जा रहे थे तब एक पत्रकार ने उनसे सवाल किया “मिस्टर प्रेसिडेंट आपकी ऐसी कौन सी हसरत थी जो आठ साल पद पर रहते हुए पूरी नही हुई और जिसका आपको मलाल है?”

बराक ओबामा ने जबाब में कहा”मेरी हसरत थी काश महात्मा गांधी के साथ व्हाईट हाउस में मैं डिनर कर पाता।”

कांग्रेस और उसके मौजूदा गांधी काश महात्मा को पकड़ पाते।

तैयार है भारत के युवा मोदी के बताए बापू को जानने समझने!उलझे रहिये आप अपने नाम के गांधी में क्योंकि भारत का युवा अब परम्परागत जकड़नों से आजाद है वह अपनी पहचान और हिन्दू अस्मिता पर गर्व करता है वह निर्द्वन्द होकर निर्णय करता है जैसा 2104 औऱ फिर 2019 में आप देख चुके है।उसे संघ से निकले अपने प्रधानमंत्री में अपनी मां, माटी,मानुष का अक्स दिखता है।उसे चौकीदार चोर नही प्योर दिखता है।संसदीय राजनीति इसी परसेप्शन पर चलती है।

(लेखक राजनीति विज्ञान के फैलो है संसदीय राजनीति के जानकार)

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