मुंबई। मन और शरीर की साधना पद्धति फालुन दाफा का अभ्यास विश्व में 114 से अधिक देशों में 10 करोड़ से अधिक लोगों द्वारा किया जा रहा है। लेकिन दुःख की बात यह है कि चीन, जो फालुन दाफा की जन्म भूमि है, वहां 20 जुलाई 1999 से इसका दमन किया जा रहा है जो आज तक जारी है। 20 जुलाई के दिन को फालुन दाफा अभ्यासी दुनियाभर में विरोध दिवस के रूप में मनाते हैं और शांतिपूर्वक प्रदर्शन और कैंडल लाइट विजिल द्वारा लोगों को चीन में हो रहे बर्बर दमन के बारे में अवगत कराते हैं।
इस अवसर पर भारत में भी फालुन दाफा अभ्यासियों द्वारा 20 जुलाई के दिन को विभिन्न शहरों में “विरोध दिवस” के रूप में मनाया गया।
मुंबई और पुणे के अभ्यासियों ने मुंबई के बांद्रा बैंडस्टैंड में ध्यान और कैंडललाइट विजिल का आयोजन किया। बारिश की परवाह न करते हुए, एक सुंदर संरचना में फालुन दाफा ध्यान करते हुए अभ्यासियों को देखकर लोग सुखद रूप आश्चर्यचकित थे। गीले फर्श पर व्यवस्थित पेपर कमल के फूल ऐसे लग रहे थे मानो हवा में तैर रहे हों। लोगों ने चीन में फालुन दाफा अभ्यासियों के दमन के बारे में सूचना पत्रक स्वीकार किये। बहुत से लोगों ने खेद व्यक्त किया कि किसी भी देश द्वारा इस तरह के अच्छे अभ्यास का दमन कैसे किया जा सकता है?
बैंगलोर में, चीन में क्रूर दमन में अपनी जान गंवाने वाले फालुन दाफा अभ्यासियों की स्मृति में एक शांतिपूर्ण कैंडललाइट विजिल कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम का आयोजन फ्रीडम पार्क में किया गया, जो बेंगलुरु के सेंट्रल बिजनेस डिस्ट्रिक्ट में स्थित है। कई लोगों ने अपने वाहनों को रोक कर कार्यक्रम देखा और दमन के बारे में जानने के बाद अपनी संवेदना प्रकट की।
नागपुर में, स्थानीय अभ्यासियों ने दोपहर में फालुन दाफा अध्ययन सत्र का आयोजन किया और शाम को इंदौरा स्क्वायर के पास लघुवेतन कॉलोनी में ध्यान और कैंडललाइट विजिल कार्यक्रम में भाग लिया। अभ्यासियों ने चीन में जारी दमन के बारे में बहुत से लोगों को जानकारी दी।
कोयंबटूर में, स्थानीय अभ्यासियों ने फालुन दाफा अभ्यास की जानकारी देने के लिए वार्षिक पुस्तक मेले में भाग लिया। उन्होंने इस अवसर पर चीन में हो रहे दमन के बारे में भी लोगों को सूचित किया।
पृष्ठभूमि:
फालुन दाफा (जिसे फालुन गोंग भी कहा जाता है) बुद्ध और ताओ विचारधारा पर आधारित एक प्राचीन साधना पद्धति है जिसे वर्तमान समय में श्री ली होंगज़ी द्वारा 1992 में चीन में सार्वजनिक किया गया। फालुन दाफा और इसके संस्थापक, श्री ली होंगज़ी को, दुनियाभर में 3000 से अधिक पुरस्कारों और प्रशस्तिपत्रों से नवाज़ा गया है। श्री ली होंगज़ी को नोबेल शांति पुरस्कार व स्वतंत्र विचारों के लिए सखारोव पुरस्कार के लिए भी मनोनीत किया जा चुका है।
चीन में फालुन गोंग का दमन: इसके स्वास्थ्य लाभ और आध्यात्मिक शिक्षाओं के कारण फालुन गोंग चीन में इतना लोकप्रिय हुआ कि 1999 तक करीब 7 से 10 करोड़ लोग इसका अभ्यास करने लगे। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की मेम्बरशिप उस समय 6 करोड़ ही थी। उस समय के चीनी शासक जियांग जेमिन ने फालुन गोंग की शांतिप्रिय प्रकृति के बावजूद इसे अपनी प्रभुसत्ता के लिए खतरा माना और 20 जुलाई 1999 को इस पर पाबंदी लगा कर कुछ ही महीनों में इसे जड़ से उखाड़ देने की मुहीम चला दी।
पिछले 20 वर्षों से फालुन गोंग अभ्यासियों को चीन में यातना, हत्या, ब्रेनवाश, कारावास, बलात्कार, जबरन मज़दूरी, दुष्प्रचार, निंदा, लूटपाट, और आर्थिक अभाव का सामना करना पड रहा है। अत्याचार की दायरा बहुत बड़ा है और मानवाधिकार संगठनों द्वारा दर्ज़ किए गए मामलों की संख्या दसियों हजारों में है।
यह भारत के लिए प्रासंगिक क्यों है: पिछले कुछ समय से भारत और चीन के बीच संबंध तनावपूर्ण रहे हैं। भारत पर दबाव बनाने के लिये चीन मसूद अजहर समर्थन, अरुणाचल प्रदेश, डोकलाम विवाद आदि का इस्तेमाल करता रहा है। किंतु चीन स्वयं आज एक दोराहे पर खड़ा है। एक ओर चीनी कम्युनिस्ट पार्टी है जिसका इतिहास झूठ, छल और धोखाधड़ी का रहा है। दूसरी ओर वहां लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता की आवाजें उठ रही हैं।
चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की धारणाएं और नीतियां उन सभी चीजों का खंडन करती हैं जिनका भारत जैसी एक प्राचीन संस्कृति और आधुनिक लोकतंत्र प्रतिनिधित्व करता है। भारत के पास चीन को सिखाने के लिये बहुत कुछ है। भारत को चीन में हो रहे मानवाधिकार हनन की निंदा करनी चाहिए। भारत को चीन में अवैध मानवीय अंग प्रत्यारोपण समाप्त करने के लिए एक निर्णायक भूमिका निभाने की जरूरत है। यही सोच भारत को विश्वगुरु का दर्जा दिला सकती है। हम भारत को मानवता के पक्ष का समर्थन करने और इतिहास के सही पक्ष में खड़ा होते देखने के लिए उत्सुक हैं।
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