जम्मू कश्मीर में धारी 370 और 35 ए की आड़ मे किस तरह से संवैधानिक फ्राड कर जम्मू कश्मीर और लद्दाख के लोगों के नागरिक अधिकारों का हनन कर वहाँ के नेता अपने घर भरते रहे और लोगों को गुमराह करते रहे इसको जानना हो तो दिल्ली के जाने माने वकील दिलीप दुबे को सुनना चाहिए।
मुंबई में अधिवक्ता परिषद द्वारा बाला साहेब आप्टे कॉलेज ऑफ लॉ में 370 और 35 ए पर आयोजित एक सेमिनार ममें जब श्री दुबे ने अपना धारा प्रवाह भाषण दिया तो सभागृह में उपस्थित सैकड़ों वकील और कानून के विद्यार्थी हतप्रभ रह गए। दुबेजी ने 370 और 35 ए को लेकर देश भर में मीडिया और विपक्षी नेताओं के साथ ही पाकिस्तान द्वारा फैलाए जा रहे झूठ का तमाम कानूनी तथ्यों के साथ जोरदार खंडन किया। उनको सुनने के लिए मुंबई में रविवार के दिन सुबह 9 बजे ही दो सभागृह खचाखच भर गए थे। उन्होंने कहा कि अगर 35 ए नहीं होती तो 370 का अंतिम संस्कार भी नहीं हो पाता। ये तो 35 ए थी जिसकी वजह से पूरे देश के लोगों को पता चला कि 370 की आड़ में जम्मू कश्मीर और लद्दाख में आम लोगों के जीने के अधिकारों का हनन ही नहीं हो रहा है बल्कि आतंकवादियों को पनाह भी मिल रही है।
उन्होंने कहा कि जम्मू कश्मीर के राजा ने नहीं बल्कि दिल्ली की सरकार ने अधिमिलन में देरी की थी कश्मीर का अधिमिलन संवैधानिक रूप से पूर्ण है एवं उसी प्रारूप में हुआ जैसा कि बाकी सभी रियासतों का हुआ।
उन्होंने कहा कि धारा 35A जो सबसे बड़ा संविधानिक धोखा थी जिसकी वजह से जम्मू कश्मीर के ही नागरिकों को खासकर दलितों महिलाओं एवं पाकिस्तान से आए हुए शरणार्थियों व उनकी पीढ़ियों को देश की नागरिकता नहीं मिल रही था। यह धारा उन्हें शिक्षा रोजगार सरकारी सहायता जैसे मूल अधिकारों से वंचित रखती थी। उन्होंने कहा की धारा 35 A जम्मू कश्मीर राज्य को पाक अधिकृत कश्मीर से घुसपेठियो को भारत की नागरिकता देने का अधिकार देती है, लेकिन जम्मू कश्मीर के हिंदू शरणार्थियों को नहीं। उन्होंने कहा िक पाकिस्तान के सियालकोट से जो लोग पंजाब में आ गए उनमें पूर्व प्रधान मंत्री इन्द्र कुमार गुजराल व मनमोहन सिंह भी शामिल थे, ये दोनों तो िसलिए प्रधान मंत्री बन गए कि ये पंजाब में आए और इन्हें भारत की नागरिकता मिल गई मगर जो गरीब लोग सियालकोट से जम्मू में आकर बस गए उन्हें 35 ए की आड़ में भारत का नागरिक तक नहीं माना गया। उनके बच्चों को स्कूल, कॉलेज की शिक्षा से वंचित किया गया।
उन्होंने कहा कि बहुत से लोगों के मन में प्रश्न आता है कि केन्द्र से अलग जम्मू कश्मीर के लिये संविधान सभा का गठन क्या केवल जम्मू कश्मीर के लिए ही था। इसको जानने के लिए हमें ये समझना होगा कि जम्मू कश्मीर के विलय की जो प्रक्रिया थी वह बाकी राज्यों की विलय की प्रक्रिया से अलग नहीं थी। हाँ परिस्थितियाँ अलग थीं। कई स्वार्थी ताकतों के कारण कारण अधिमिलन में देरी जरुर हुई थी।
उन्होंने कहा कि 26 अक्टूबर 1947 जम्मू कश्मीर को भारत के डोमिनियन के शामिल हुआ। उसी अधिमिलन पत्र (इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन) के ऊपर हस्ताक्षर किये गये जिसके ऊपर बीकानेर, पटियाला, मैसूर,कोचीन एवं ट्रावनकोर, या किसी और राजा ने किये थे। एक स्टैंडर्ड इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन था। तीन विषयों के लिए विलय हुआ था तो केवल जम्मू कश्मीर ही नहीं, सब राज्यों का विलय ही तीन विषयों के लिए हुआ। क्योंकि समय देश में 550 रियासतों के अलावा सैकड़ों ठिकाने, जागीरदारी आदि थी जिनको रियासत का रुतबा हासिल था। इसके लिए इन छोटी रियासतों का एक संघ बनाकर उन सबके प्रतिनिधियों से सम्मिलन पत्र पर हस्ताक्षर करवाए गए।
जम्मू कश्मीर की संविधान सभा बनेगी यह निर्णय हुआ 20 सितम्बर 1947 को, ‘नेगोशिएटिव कमेटी ऑफ प्रिंसली स्टेट्स’ और ‘ड्राफ्टिंग कमेटी’ के बीच हुई चर्चा के आधार पर, जिसमें यह निर्णय जम्मू कश्मीर के विलय के पहले हो चुका था। विलय 26 अक्टूबर को हुआ। जिस समय देश आजाद हुआ सरदार पटेल के सामने बहुत बड़ा प्रश्न था कि 550 से अधिक रियासतों का जल्दी से जल्दी एकीकरण किया जाय। नहीं तो अनेक प्रकार के विवाद उठेंगे।
उन्होंने एक रास्ता निकाला कि तीन विषयों के लिए सबका अधिमिलन अथवा विलय किया जाय। इसके बाद ‘नेगोशिएटिव कमेटी ऑफ प्रिंसली स्टेट्स’ के विमर्श में चार महत्वपूर्ण निर्णय हुए। पहला निर्णय था कि भारत के संविधान की निर्माण प्रक्रिया में रियासतें भी भागीदारी करेंगी और दस लाख की आबादी पर एक प्रतिनिधि रियासतों से आये। जम्मू कश्मीर की जनसंख्या 40 लाख थी इसलिए वहाँ से चार प्रतिनिधि आये।
बहुत सारे राज्य ऐसे थे जिनकी जनसंख्या कुछ हजार या कुछ लाख ही थी। ऐसे राज्यों का एक समूह बना दिया गया। इसके लिए कुछ राज्यों का परस्पर विलय (मर्जर) कर नयी इकाइयां बनायी गयीं। कुछ रियासतों का उनकी सहमति से ब्रिटिश प्रान्तों (प्रोविन्सेज) के अंदर विलय किया गया। बार-बार यह सवाल खड़ा किया जाता है कि एक्सेशन हुआ किन्तु मर्जर नहीं, वास्तव में जम्मू कश्मीर इतना बड़ा राज्य था कि उसका विलय किसी अन्य रियासत में नहीं हो सकता था, वहीं उसकी भौगोलिक स्थिति ऐसी थी कि किसी अन्य रियासत का उसके अंदर विलय होना भी संभव नहीं था। पटियाला और आस-पास की छोटी-छोटी रियासतें परस्पर विलय कर ‘पेप्सू’ बन गयी थीं। राजस्थान के अंदर ‘राजस्थान यूनियन ऑफ स्टेट्स’ बन गया, सौराष्ट्र में ‘सौराष्ट्र यूनियन ऑफ स्टेट्स’ बना।
26 अक्टूबर 1947 का निर्णय जो विलय को लेकर था वह समाप्त हुआ और उस पर महाराजा ने हस्ताक्षर किये। 27 अक्टूबर को माउंटबेटन ने उसको स्वीकार किया। इसके साथ ही जम्मू कश्मीर भारत बन गया।
त्रिपुरा ने 1949 में अधिमिलन किया। अनेक राज्य इसके भी बाद भारत में शामिल हुए। जम्मू कश्मीर आखिरी राज्य नहीं था। अधिमिलन के लिए अंतिम तिथि निर्धारित नहीं थी।
सभी राज्यों ने संविधान निर्माण की प्रक्रिया में भाग लेना स्वीकार किया। कहा कि हम अपने प्रतिनिधि भेजेंगे। दूसरी बात तय की कि सभी राज्यों में भी संविधान सभा का गठन होगा जो अपने लिये संविधान बनायेंगे। क्योंकि सरदार पटेल ने उस समय वादा किया था कि तीन विषयों के अतिरिक्त हम आपसे कुछ लेने वाले नहीं हैं। आप जो स्वीकार करेंगे वही हम आपसे लेंगे। संविधान सभाएं अधिमिलन अथवा विलय की पुष्टि करेंगी और राज्य में भारतीय संविधान के न्यायक्षेत्र का निर्णय करेंगी। 1947 में जब देश स्वतंत्र हुआ तब एकीकरण की प्रक्रिया चल रही
अप्रैल 1949 आते-आते संविधान बनाने वाले लोगों को समझ में आ गया कि राज्यों के संविधान बनाने की प्रक्रिया पूरी होने वाली नहीं है। वहां जिस प्रकार की संवैधानिक समझ वाले लोग चाहिये उनकी उपलब्धता नहीं है। वे निर्णय नहीं कर सकते। धीर-धीरे यह बात भी स्पष्ट होने लगी कि यदि सब राज्यों के अपने संविधान होंगे तो समन्वय कठिन होगा। डॉ. भीमराव अम्बेडकर, सरदार पटेल और अन्य संविधान निर्माताओं को यह बातें ध्यान में आ गयी थी।
देश की सभी रियासतों के प्रधानमंत्रियों (तब मुख्य मंत्री को प्रधान मंत्री कहा जाता था) की बैठक मार्च 1949 में बुलाई गयी। तब तक तीन राज्यों में संविधान सभा का चुनाव हो चुका था। सौराष्ट्र, मैसूर और कोचीन त्रावणकोर। संविधान सभा केवल जम्मू कश्मीर की ही नहीं बनी थी। तीन और राज्यों की संविधान सभा भी बनीं थीं।
सभी राजा चाहते थे कि संसद में उनकी भी भागीदारी रहे तो इसके लिए राज्य सभा का गठन किया गया और हर राज्य से उसकी जनसंख्या के आधार पर राजा या उनके प्रतिनिधि को राज्यसभा के सदस्य के रूप में नामांकित किया गया। जम्मू कश्मीर से तो लोकसभा के सांसद तक विधान सभा तय करके भेजती रही।
देश के सब राजप्रमुखों ने देश के संविधान को लेकर प्रोक्लेमेशन किये। इसी प्रक्रिया के कारण जम्मू कश्मीर भारतीय संविधान के पहले अनुच्छेद के अंतर्गत पहली अनुसूची में 15वां राज्य बना।
उन्होंने रहस्योद्घाटन करते हुए कहा कि “भारतीय संविधान में आज तक जितने भी संशोधन हुए हैं, सबका जिक्र संविधान की किताब में होता है। लेकिन 35ए संविधान में कहीं भी नहीं है” 14 मई 1954 को तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने एक आदेश पारित किया था। इस आदेश के जरिये भारत के संविधान में एक नया अनुच्छेद 35ए जोड़ दिया गया। हमने भारत सरकार के हर मंत्रालय ले लेकर राष्ट्रीय अभिलेखागार में जब राष्ट्रपति के इस आदेश के गजट नोटिफिकेशन की प्रति की तलाश की तो वह कहीं नहीं मिला। इसलिए नहीं मिला क्योंकि ये आदेश चोरी छुपे संविधान में चिपका दिया गया था। इसके लिए न तो संसद की मंजूरी ली गई न कैबिनेट ने कोई प्रस्ताव पास किया था। जिस तारीख को ये आदेश जारी किया गया था उसके आगे पीछे के गजट नोटिफिकेशन भी देखे मगर इस आदेश का कोई गजट नोटिफिकेशन नहीं मिला। बहुत मुश्किल से बाद में 35 ए के नाम से जारी ये आदेश गूगल पर मिला।
35 ए को लेकर जम्मू कश्मीर के लोगों के शोषण की दास्तान बताते हुए उन्होंने कहा कि जम्मू कश्मीर में 1956 में सफाई कामगारों ने हड़ताल कर दी तो वहाँ प्रधान मंत्री (तब मुख्यमंत्री को प्रधान मंत्री कहा जाता था।) ने पंजाब सरकार से निवेदन किया कि हमारे लिए सफाई कर्मी भेज दो। पंजाब सरकार ने वाल्मिकी समुदाय के लोगों को जम्मू कश्मीर की सफाई व्यवस्था के लिए भेज दिया। लेकिन इन लोगों को पाँच पीढ़ियाँ गुजर जाने के बाद भी जम्मू कश्मीर की नागरिकता नहीं दी गई और इनके जो बच्चे ऑक्सफोर्ड में भी पढ़कर आ गए तो उन्हें कहा गया कि तुम्हारा काम ते सफाई करना है। तुम्हें सफाईकर्मी की ही नौकरी मिल सकती है। दूसरी और जम्मू कश्मीर की सरकरा आतंकवादियों को नागरिकता देने में तनिक भी देर नहीं करती थी।
इस तरह 1988 तक जम्मू कश्मीर की पूरी डेमोग्राफी बदल गई। जम्मू कश्मीर की महिलाएँ अगर प्रदेश के बाहर किसी व्यक्ति से शादी कर ले तो उसके तमाम पैतृक अधिकार छीन लिए जाते थे।
उन्होंने कहा कि धारा 370 व 35 ए को हटाए जाने के बाद जम्मू कश्मीर ने अपनी मनमर्जी से जो भी कानून राज्य की जनता पर थोप रखे थे वो खत्म हो गए और अब वहाँ भारत सरकार के बनाए सभी कानून लागू हो सकेंगे।
उन्होंने बताया कि मीडिया और विपक्ष के नेताओं के साथ ही जम्मू कश्मीर के कुछ गिरोहबाज नेताओं ने हर बार जम्मू कश्मीर की घटनाओं को लेकर झूठ पर झूठ परोसा। इसका उदाहरण है बुरहान वानी की शवयात्रा। इस शवयात्रा में लाखों लोगों के शामिल होने का प्रचार किया गया जबकि जिस जगह उसे दफनाया गया वहाँ मुश्किल से 5 हजार लोग भी इकठ्ठे नहीं हो सकते।
जम्मू कश्मीर में तनाव को लेकर उन्होंने कहा कि हर मौके पर हर आदमी किसी न किसी तनाव में रहता है, शादी के समय दुल्हा- दुल्हन से लेकर उनके घर वाले तक सब तनाव में रहते हैं। ये तनाव भी मीडिया और तथाकथित नेताओं द्वारा उछाला गया एक शब्द मात्र है।
श्री दुबे ने कहा कि हमें पाकिस्तान से बात करना है लेकिन वो बात पाकिस्तान द्वारा हड़पे गए जम्मू कश्मीर और गिलटिग बाल्टिस्तान पर होगी। उऩ्होंने बताया कि
13 अगस्त 1948 को संयुक्त राष्ट्र संघ (यू एन आई सी पी) ने संकल्प पारित किया जिसके तहत भारतीय सीमा से पाकिस्तानी फौज को हटाने का आदेश दिया गया था।
अब पाकिस्तान से भारतसरकार को जो बात करना है वो पाकिस्तान द्वारा कब्जाए गए जम्मू कश्मीर और गिलगिट बाल्टिस्तान पर करना है। पाकिस्तान एक हारी हुई लड़ाई लड़ रहा है इसलिए वह दुनिया भर में जम्मू कश्मीर को लेकर झूठ पर झूठ परोसता है और दुनिया भर से लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ तक में उसे हर बार मुँह की खानी पड़ती है।
श्री दुबे ने अपने धारदार और प्रभावी भाषण से 370 और 35 ए को लेकर फैलाई जा रही भ्रांतियों और कुप्रचार का तर्क और कानूनी मुद्दों के साथ ऐसा जवाब दिया कि कानून के जानकार जाने माने वकील और कानून के छात्र भी उनकी इस शैली से दंग रह गए।
गिलगिट बाल्टिस्तान का वो सच जिसे आप जानेंगे तो हैरान रह जाएंगे
जम्मू-कश्मीर स्टडी सेंटर और दक्षिण एशियाई राजनीतिक व सामरिक मामलों के विशेषज्ञ श्री आलोक बंसल ने कहा कि गिलगिट बाल्टिस्तान के लोगों को पुलिस व आतंकवादियों का खौफ दिखाकर डराया जाता है। जो विरोध करता है उसे जेल या मौत ही नसीब होती है। उनके बच्चों व परिवार पर भी जुल्म ढाया जाता है। पाकिस्तान यहां विरोध की हर आवाज को कुचल देता है। यहां के लोग पाकिस्तान के साथ नहीं रहना चाहते। भारत को मामले में हस्तक्षेप करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान यहां पर दूसरे राज्यों के लोगों को बसा रहा है। यहां की आबादी में 75 फीसदी की बढ़ोतरी भी इसी के चलते हुई है। यहां के मूल लोग अल्पसंख्यक हो गए हैं।
श्री आलोक बंसल ने मुंबई में जम्मू कश्मीर अध्ययन केंद्र द्वारा आयोजित एक सेमिनार में व्यक्त किए। श्री बंसल ने कहा कि पाकिस्तान ने जम्मू कश्मीर के जिस हिस्से पर कब्जा कर रखा है उसमें 15 प्रतिशत भौगोलिक क्षेत्र मीरपुर क्षेत्र में है और 85 प्रतिशत गिलगिट बाल्टिस्तान में है। जबकि मीरपुर मुज़फ्फराबाद और गिलगिट बाल्टिस्तान में आबादी का प्रतिशत क्रमशः क्षेत्र 70 और 30 प्रतिशत है।
श्री बंसल ने कहा कि गिलगिट बाल्टिस्तान आज अपनी मूल पहचान जिसे हम प्रिइस्लामिक पहचान कह सकते हैं, को पाने के लिए संघर्ष कर रहा है। दूसरी ओर पाकिस्तान ने विगत 60 सालों में मीरपुर और गिलगिट बाल्टिस्तान की अपनी मूल सांसकृतिक पहचान नष्ट करने का लगातार प्रयास किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि गिलगिट बाल्टिस्तान के युवाओं के संगठन ने अपनी सांस्कृतिक पहचान को बचाने और पाकिस्तान के अत्याचारों से मुक्ति पाने के लिए संघर्ष का जो शंखानाद किया है उसमें उन्होंने अपना जो झंडा बनाया है उसका प्रतीक चिन्ह स्वस्तिक रखा है। गिलगिट बाल्टिस्तान में पाकिस्तानी कट्टरपंथी संगठनों को बसाया जा रहा है जबकि नियमानुसार वहाँ बाहर के लोग जमीन भी नहीं खरीद सकते। 1988-2000 के दौरान गिलगिट बाल्टिस्तान में बाहरी लोगो को बसाए जाने के कारण वहगाँ की आबादी 63 प्रपतिशत तक बढ़ गई।
इसी तरह पाकिस्तान ने मीरपुर मुज़फ्फराबाद में मंगला बाँध बनाया और ये पूरा क्षेत्र डूब में आ गया पाकिस्तान ने जम्मू कश्मीर की धरती पर बाँध बनाया और उसका पानी और बिजली पाकिस्तान को मिल रही है थ। अब पाकिस्तान गिलगिट बाल्टिस्तान में भासा पर बाँध बनाया इससे गिलगिट बाल्टिस्तान का बड़ा इलाका तो डुबेगा और बिजली पाकिस्तान को मिल रही है।
श्री बंसल ने कहा कि सामरिक रूप से गिलगिट बाल्टिस्तान भारत के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। यही वह क्षेत्र है जो पाकिस्तान को चीन से जोड़ता है। उन्होंने बताया पानी के 80प्रतिशत स्त्रोत कि गिलगिट-बाल्टिस्तान में हैं। वहाँ कई दुर्लभ और महंगी खनिज संपदा है। 1996-97 तक पाकिस्तान जाने वाले सबसे ज्यादा पर्यटक गिलगिट बास्टिस्तान जाते थे। आज पाकिस्तान वहाँ चीन की मदद से 32 पन बिजली योजनाएँ चला रहा है।
गिलगिट बाल्टिस्तान के इतिहास का उल्लेख करते हुए श्री बंसल ने कहा कि वहाँ की चित्राल रियासत जम्मू कश्मीर के राजा के अधीन थी। दुनिया की सबसे बड़ी 8 पर्वत श्रृंखलाएँ,दुनिया के सबसे बड़े ग्लैशियर गिलगिट बाल्टिस्तान में है। यहाँ की के कुछ क्षेत्रों में बोली जाने वाली भाषा बुशुश्की दुनिया की सबसे विलक्षण भाषाओं में गिनी जाती है, क्योंकि यह भाषा दुनिया की किसी भी भाषा के वर्ग में नहीं है। वहाँ की मूल भाषा बाल्टी है अब पाकिस्तान ने बाल्टी भाषा को उर्दू में लिखवाना शुरु कर दिया है जबकि वहाँ के लोग इसका विरोध कर रहे हैं। वहाँ की आबादी शिया मुस्लिमों की है और पाकिस्तान के सुन्नी मुसलमान इन पर हमला करते रहते हैं।
ऐतिहासिक रूप से गिलगिट बाल्टिस्तान मौर्य साम्राज्य का हिस्सा रहा है, यहाँ बुध्द प्रतिमाएँ और कुशण कालीन सिक्के प्रचुर मात्रा में पाए गए हैं। यह क्षेत्र अतीत में कश्मीर के राजा ललितादित्य के दीन था, जिनका साम्राज्य उज्जैन से लेकर दक्षिण तक था।
श्री बंसल ने बताया कि 1850 में जम्मू कश्मीर राज्य की स्थापना हुई थी। उन्होंने बताया कि आज जम्मू कश्मीर में पाकिस्तान द्वारा जो समस्याएं पैदा की जा रही है उसकी शुरुआत जिन्ना के सिपाहसालार कैप्टन हसन खान ने रची थी।
श्री बंसल ने कहा कि पाकिस्तान की राजनीति ऐसी है कि वे अपने यहाँ होने वाली किसी बी घटना के लिए आरोप लगाने के लिए शिकार खोजते रहते हैं। पह1947 से 1971 तक वहाँ हिन्दुओं पर आरोप लगाया जाता था, लेकिन जब 1971 के बाद हिन्दुओं की संख्या कम हो गई तो पाकिस्तान ने एक नई चाल चलते हुए अहमदिया मुसलमानों को गैर मुस्लिम होने का तमगा देते हुए हर घटना के लिए उन्हें जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। अहमदियाँ शिया मुसलमान हैं उन्हें मस्जिदों में नमाज अता नहीं करने दी जाती है, पाकिस्तान में अहमदिया वोट नहीं डाल सकते।
उन्होंने कहा कि गिलगिट बाल्टिस्तान में चीन की मदद से पाकिस्तान 32 परियोजनाओं पर काम कर रहा है। लेकिन पाकिस्तानी लोग चीनियों को कतई पसंद नहीं करते हैं। पाकिस्तानियों के एक समूह ने नंदा पर्वत जैसी ऊँची चोटी पर जाकर 3 चीनी नागरिकों को मार दिया, इसके बाद से चीनी कंपनियाँ पाकिस्तान से भागने लगी। अब पाकिस्तान सरकार पाकिस्तान में परियोजनाएँ पर काम करने वाले चीनी लोगों के लिए एक विशेष सुरक्षा दल बना रही है।
श्री बंसल ने कहा कि स्वतंत्रता के बाद से हमने कभी गिलगिट बास्टिस्तान को लेकर की सोच ही पैदा नहीं की, भारत को चाहिए कि वह बाल्टिस्तान और लेह लद्दाख से जोड़े।
श्री बंसल ने कहा कि 19 फरवरी, 2014 को चीन के राष्ट्रपति झाई जिन पिंग और पाकिस्तान के राष्ट्रपति ममनून हुसैन, जो अपनी पहली विदेश यात्रा पर चीन गए हैं, ने चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे को विकसित करने का करार किया है। इस परियोजना में ग्वादर बंदरगााह पर नया हवाई हड्डा बनाना, कराकोरम राजमार्ग को उन्नत करना और गिलगित-बाल्टिस्तान इलाके के ऊबड़-खाबड़ पहाड़ी क्षेत्र में से रेल मार्ग और पाइप लाइन गुजारना शामिल है। संवैधानिक और कानूनी रूप से यह क्षेत्र भारत का अभिन्न अंग है। लेकिन यह 2000 किलोमीटर लम्बा गलियारा चीन के सिंक्यांग प्रान्त में काशगर को बलूचिस्तान के ग्वादर बंदरगाह से जोड़ेगा।
श्री बंसल ने बताया कि लोग ग्वादर को अपनी धरती को उपनिवेश बनाने की इस्लामाबाद की चाल का एक औजार मानते हैं। उनको लगता है कि ग्वादर से जुड़े फैसले बलूचिस्तान के बाहर लिए जा रहे हैं। क्योंकि ग्वादर कराची से जुड़ा है, न की मुख्य बलूच भूमि से। यही कारण है कि वे ग्वादर से जुड़े कामों और कामगारों पर हमले बोलते रहे हैं। उन्होंने चीनी हितों पर भी खासतौर पर निशाना साधा है क्योंकि उन्हें लगता है कि चीन उनकी धरती को उपनिवेश बनाने की इस्लामाबाद की साजिश में मदद दे रहा है।
इस सेमिनार के आयोजन में जम्मू कश्मीर अध्ययन केंद्र की उपाध्यक्ष श्रीमती शक्ति मुंशी की अहम भूमिका रही। इस कार्यक्रम में उन्होंने जम्मू कश्मीर के उन लाखों लोगों की पीड़ा की चर्चा की जिन्हें भारत का नागरिक नहीं मानते हुए 370 और 35 ए की आड़ में उन्हें शरणार्थी बना दिया गया है। उन्होंने देश के अन्य हिस्सों के लोगों से भी आव्हान किया कि जम्मू कश्मीर को वे अपने से अलग नहीं समझें और यहाँ के लोगों की पीड़ा और समस्याएँ समझने की कोशिश करें।
कार्यक्रम के आयोजन में अखिल भारतीय अधिवर्ता परिषद की मुंबई इकाई की अध्यक्षा एडवोकेट सुश्री अंजली हेलेकर, बालासाहेब आप्टे विधि महाविद्यालय की प्रभारी प्राचार्या वैशाली गुरव की प्रमुख भूमिका रही। कार्यक्रम में महाराष्ट्र व गोआ के गोआ व महाराष्ट्र के एडवोकेट जनरल श्री आशुतोष कुंभकोनी ने महाराष्ट्र व गोआ बार कौंसिल के नवनिर्वाचित के सदस्यों का सम्मान किया। कार्यक्रम में अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल श्री अनिल सिंह भी उपस्थित थे।
कार्यक्रम में श्रोताओं ने श्री दिलीप दुबे व श्री आलोक बंसल से सवाल पूछे और दोनों वक्ताओं ने किसी भी श्रोता को निराश नहीं किया।