�“इन्डियननेस इन कम्युनिकेशन” या “इन्डियननेस इन एडवरटाइज़िग” जब मैंने पहली बार इन शीर्षकों को देखा तो बहुत अच्छा महसूस हुआ. लगा जैसे “चलो कहीं से तो बात शुरू हुई.” कुछ तो है ज़रूर कि लोग आज इसकी ज़रूरत महसूस कर रहे हैं और इसपर बड़े पैमाने पर गहन चर्चा हो रही है. वास्तविक तौर पर भारत ने महज़ २०० सालों की गुलामी झेली है, मगर व्यावहारिक तौर से हम आज भी गुलाम हैं….. अंग्रेजों के ना सही, अंग्रेजियत तो हावी है हम पर. सोचकर तकलीफ होती है कि भारत में रहकर, भारतीय होकर भी हम भारतीयता के प्रति लोगों को जागरूक कराने की कोशिश में जुटे हैं. कैसी विडम्बना है यह?
राष्ट्रीय साक्षरता मिशन का यह स्लोगन शायद आपको याद हो,
“पूरब से सूर्य उगा, फैला उजियारा.
जागी हर दिशा-दिशा, जागा जग सारा.”
आज सूर्य “ईस्ट” से निकलता है और “वेस्ट” में अस्त होता है. वैसे सूर्यास्त और सूर्योदय अब होता कहाँ है? अब तो “सनसेट” और “सन राईज़” की परम्परा चल पड़ी है. जागने के बजाय हम “वेक अप” करते है और सोने के बजाय “स्लीप” करते है. हमारे बच्चे “गुड मॉर्निंग” और “गुड नाइट” के ऐसे आदि हो चुके हैं कि “सुप्रभात” और “शुभ रात्री” उनके लिए विदेशी शब्द हैं. इतना ही नहीं, आशीर्वाद की जगह अब “बेस्ट विशेज़” ने ले ली है. माता-पिता और बुजुर्गों के आशीर्वाद से ज्यादा अहमियत हम दोस्तों और चाहने वालों के “बेस्ट विशेज़” को देने लगे हैं. चरण स्पर्श की हमारी भारतीय परम्परा अब “हैण्ड शेक” की पाश्चात्य शैली में तब्दील हो गयी है. उपरोक्त बातें महज़ कुछ उदाहरण हैं भारतीयता से दूर होती भारतीय संस्कृति की.
देखा जाए तो हमारे रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में पाश्चात्य शैली, पाश्चात्य विचार इस कदर घर कर गए हैं की अब तो भेद कर पाना भी मुश्किल लगता है. ऐसा नहीं है कि इसके (दुष्परिणाम) परिणाम लोगों को दिखाई नहीं दे रहे, किन्तु इसे नज़रअंदाज़ करने की सिवा उपाय क्या है, है न? यही ख़राबी है हम भारतीयों में, स्वयं को इतना बेबस और लाचार मान बैठते हैं कि कोई भी ऐरा,गैरा, नत्थू खैरा, अपनी उँगलियों पर नचा जाता है और हम ख़ुशी-ख़ुशी उसे ही स्वीकार कर बैठते हैं जिसका विरोध अंतर्मन कर रहा होता है. क्यों, और कब तक? कहते हैं जब तक स्वयं पर नहीं बीतती, तबतक उसे समझ पाना आसान नहीं होता.
मुझे भी इसका बोध तब हुआ जब मेरे सामने यह प्रश्न आया. पेशे से मैं एक शिक्षिका हूँ और पिछले चार सालों से भारत के एक प्रतिष्ठित संस्थान में पठन-पाठन का कार्य कर रही हूँ. यहाँ स्नातक और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम चलाये जाते हैं और भारत के सभी भागों से विद्यार्थी यहाँ पढने आते है. विद्यार्थियों में इतनी विविधताओं के बावजूद कुछ बातें इनमें एकसमान हैं जैसे, १. पाश्चात्य सभ्यता-संस्कृति के प्रति उनका आकर्षण; २. अंग्रेज़ी बोलने में फर्राटेदार, लिखने में व्याकरण की अनेक गलतियां, ३. हिंदी-भाषियों के प्रति हीन भावना; ३. हिंदी बोलने के प्रति हीन-भावना, ४. भाषा (हिंदी या अंग्रेज़ी) के समुचित ज्ञान का अभाव, ५. लिखने के प्रति अरुचि, ६.मोबाईल और इंटरनेट के बीच सिमटी दुनिया, ७. पुस्तकों, या यूँ समझ लीजिये, पढने से परहेज़, ९. सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर स्टेटस अपडेट करना दिन का सबसे महत्वपूर्ण कार्य, १०. क्रियात्मकता में गूगल की महत्वपूर्ण भूमिका अर्थात कोई भी कार्य पूरा करने के लिए गूगल सर्च अनिवार्य.
लिखती जाऊं तो यह सूची� ना जाने और कितनी लम्बी होगी… मगर सच्चाई यही है कि आज की पीढ़ी हमारे संस्कार, हमारी संस्कृति से बहुत आगे निकल चुकी है. वो ज़माने लद गए जब गुरु के एक आदेश पर शिष्य अपना अंगूठा भी काट डालता था. अब तो शिष्य अंगूठा दिखा-दिखा कर गुरुओं का मज़ाक बनाने से भी बाज नहीं आते. (यहाँ मेरा अनुरोध है कि वाक्यों को शब्दशः लेने का कष्ट ना करें, भावनाओं को समझें) ऐसे में भारतीयता की बात करने वाले हम चंद लोगों की यह कोशिश कहीं हवाई क़िला बनकर ना रह जाए. बहरहाल, हमारा मानना है कि हमें फल की चिंता किये बिना अपना कार्य करते रहना चाहिए. सफलता-असफलता वक्त के साथ-साथ स्वयं परिलक्षित हो जायेगा.
सबसे पहले तो हमें यह समझना होगा कि भारतीयता क्या है. क्या भारतीयता हिन्दी बोलने-समझने में है या सभी नव आगंतुक के समक्ष भारत की गौरव गाथा बखान करने में है या भारतीयता सदियों से आ रही परम्पराओं और रीति-रिवाजों का अन्धानुकरण करने का दूसरा नाम है. आखिर है क्या यह भारतीयता?
भारतीयता का ख़याल ज़हन में आते ही चंद शब्द स्वयं ही मस्तिष्कपटल पर अंकित होने लगते है. सभ्यता-संस्कृति, आचार-विचार, धर्म-संस्कार, खान-पान, रहन-सहन, पहनावा, भाषा आदि. तो क्या, यही भारतीयता है? या भारतीयता इन सबसे परे, इन सबसे ऊपर एक ऐसी सोच है जो भारत को भारत बनाती है, एक ऐसा भाव है जो सफल और सहज जीवन जीने का मार्गदर्शन करती है.
आइये जानने का प्रयास करें. भारत एकमात्र ऐसा देश है जहां कदम-कदम पर विविधताएं दृष्टिगोचर होती है. अठाईस राज्यों व् छः केंद्र शाषित प्रदेशों के इस देश में लगभग २००० मातृभाषाएं बोली जाती है. हर राज्य का अपना खान-पान, अपना पहनावा; यहाँ के प्रत्येक नागरिक को अपना धर्म, अपना समुदाय, अपने संस्कार, अपनी परम्परा मानने का संवैधानिक अधिकार प्राप्त है. इतनी विभिन्नताओं के बावजूद भारत को एक सूत्र में बांधे रखने का नाम है है भारतीयता. भारतीयता एक विचार है जो प्रत्येक भारतीय को धरोहर के रूप में प्राप्त है.
भारतीयता एक दर्शन है जिसकी आज सम्पूर्ण विश्व को आवश्यकता है. भारतीयता गीता-सार है जो सभी विज्ञान का मूल है. भारतीयता स्वामी विवेकानंद का शिकागो में दिया गया भाषण है; भारतीयता गौतम बुद्ध के सिद्धार्थ से भगवान बनने की अमर कथा है, भारतीयता वीर शिवाजी, रानी लक्ष्मीबाई, टीपू सुलतान, महाराणा प्रताप जैसे शूरवीर योद्धाओं की गौरव गाथा है; भारतीयता मंगल पांडेय, भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव आदि के शहादत की गरिमामयी दास्तान है; भारतीयता डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद, लाल बहादुर शास्त्री, भीमराव आंबेडकर और राजा राम मोहन राय का भारत को सुदृढ़ और उन्नत बनाने का अनूठा स्वप्न है; भारतीयता रबीन्द्र नाथ टैगोर, भारतेन्दु हरिश्चंद, हजारी प्रसाद द्विवेदी, हरिवंश राय बच्चन सरीखे साहित्यकारों की रचना है; भारतीयता प्रेमचंद, महादेवी वर्मा, माखनलाल चतुर्वेदी आदि का साहित्य है; भारतीयता कौटिल्य और अमर्त्य सेन का अर्थशास्त्र है; भारतीयता मदर टेरेसा का सेवा-भाव है; भारतीयता चाणक्य नीति है; कबीर वाणी है; रहीम के दोहे हैं; भारतीयता तुलसीदास की रामायण है; भारतीयता महर्षि व्यास की महाभारत है; भारतीयता कल्पना चावला और सुनीता विलियम्स के अन्तरिक्ष की उड़ान है; भारतीयता सचिन तेंदुलकर की बल्लेबाज़ी है; धोनी की कप्तानी है; भारतीयता बिरजू महाराज के घुँघरू की थिरकन है; बिस्मिल्लाह खां की शहनाई है; भारतीयता लता मंगेशकर की सुरीली आवाज़ है; किशोर कुमार का अनोखा अंदाज है; भारतीयता अमिताभ बच्चन की बेहतरीन कलाकारी है और मीना कुमारी की नाज़ुक अदाकारी है; भारतीयता ए. आर रहमान का संगीत है और नीरज का गीत है. इतना ही नहीं, भारतीयता कभी ईद का चाँद है तो कभी दूज का; कभी भाई-बहन का रक्षा-बंधन है तो कभी पति-पत्नी का तीज-चौथ; भारतीयता दीवाली के दीयों की रौशनी है और होली के रंगों की रंगोली; दरअसल, भारतीयता भारत के कण-कण में है; यहाँ की सुबह में है, यहाँ की शामों में है.
जब भारतीयता इतना वृहत और विस्तृत है तो आज के बालमन और युवा इससे अनभिज्ञ क्यों हैं? क्यों यह भारतीयता इतना दुर्लभ हो गया है कि इसे पुनः स्थापित करने की कोशिश की जा रही है? क्यों भारत और भारतीयता एक बड़ा प्रश्नचिह्न बनकर हमारे सम्मुख खड़े हैं? उत्तर साफ़ है. जिस भारतीयता की आबो-हवा में हम पले-बढ़े हैं, आज की पीढ़ी उस वातावरण से अनजान है. धूल-मिट्टी से सनने वाले हाथों में अब मोबाइल, स्मार्ट फोन, लैपटॉप, और टैबलेट थमा दिए गए है. दिमाग से बनने वाले सवाल अब गूगल हल कर रहा है. लुका-छिपी, दौड़-भाग, कबड्डी, खो-खो जैसे खेलों की जगह अब एंग्री बर्ड, फ्रूट निन्जा, और क्रिमिनल केस ने ले ली है. प्रेमचंद के गोदान की जगह अब स्टेफनी मेयर की ट्वाईलाईट सागा ने ले ली है, रुडयार्ड किपलिंग की जंगल बुक पर जे. के. राउलिंग का हैरी पॉटर हावी हो गया है. कत्थक, भरतनाट्यम, मणिपुरी, कुचिपुड़ी आदि नृत्य शैलियों पर बेली, हिप-हॉप, जैज़, सालसा, साम्बा आदि पाश्चात्य शैलियों का परचम लहरा रहा है.
हिन्दुस्तानी और कर्नाटिक संगीत की ऊपर पॉप, रैप और रॉक आलाप तान रहा है. लाल क़िला और इंडिया गेट पर यूँ तो हम तिरंगा लहराते हैं मगर नतमस्तक अंग्रेजियत के सामने होते हैं. पूरी-कचौड़ी, लिट्टी-चोखा, समोसा-जलेबी आदि पिज़्ज़ा, फ्रेंच-फ्राइज़, और बर्गर के समक्ष बेस्वाद हो चुके हैं. सत्तू, पोहा जैसे इंस्टैंट खाने की जगह मैगी और यिप्पी नूडल्स ने ले ली है. रसगुल्ला, गुलाब-जामुन और रसमलाई की मिठास केक, पेस्ट्री के सामने फीके पड़ चुके हैं. भारत की पहचान समझी जाने वाली भारत की हर बात अब भारत से दूर होती जा रही है, फिर भारतीयता कैसे बची रह सकती है. अब तो भारत भी भारत से दूर हो रहा है. जी हाँ, सही पढ़ा आपने. भारत की जगह अब एक नया देश बन रहा है- इण्डिया. आप बोलेंगे अंतर क्या है, दोनों एक ही हैं और यहीं मात खा जाते हैं हम. जिस तरह सिक्के के दोनों पहलु कभी एक नहीं हो सकते उसी तरह भारत और इण्डिया को एक समझना हमारी सबसे बड़ी भूल है. कहते हैं प्रत्येक भाषा का अपना एक संस्कार होता है, एक तहजीब होती है. इसी संस्कार और तहजीब का फ़र्क है भारत और इण्डिया में. भारत का इतिहास सदियों पुराना है – वेद, पुराण, ऋचाएं, ऋषि-मुनि, तप, योग, कर्म, फल आदि उसी स्वर्णिम इतिहास की देन हैं. इण्डिया तो भारत की गुलामी की ही तरह ईस्ट इण्डिया कम्पनी की देन है महज़ चंद सौ साल पुरानी. सदियों पुराने भारत पर जब इण्डिया अपना परचम लहराएगा तब भारतीयता का डगमगाना लाज़मी है.
भारत के संस्कार और इण्डिया के संस्कारों में वही फ़र्क है जो ‘लक्ष्मण’ और ‘लकी’ के संस्कारों में है. भारत में दुकानें हुआ करतीं थीं, इण्डिया में शॉपिंग मॉल्स हैं; भारत व्यक्ति-प्रधान है और इण्डिया ब्रैंड प्रधान. भारत संतुष्ट था और इण्डिया असंतुष्ट. ऐसे कई कारण व अवयव हैं जो भारतीयता को इण्डिया से दूर कर रहे है. वैश्वीकरण के इस युग में वैश्विक होना कोई अपराध नहीं, किन्तु वैश्विक होने के चक्कर में अपना अस्तित्व खो देना अपराधतुल्य माना जा सकता है. भारत यही अपराध कर रहा है. जाने या अनजाने में ही सही, अपनी अस्मिता, अपना अस्तित्व छोड़ यह पाश्चात्य सभ्यता-संस्कृति की नक़ल करने में ऐसे जुटा है कि अपने अक्स का ही भान नहीं रहा इसे. इण्डिया और भारत के बीच भारतीयता कहीं ज़ार-ज़ार हो रही है, इसका भी होश नहीं रहा इसे. उपाय क्या है? निदान क्या हो? समस्या समझ लेना और इसे स्वीकार कर लेना उपाय की ओर हमारा पहला कदम है. समस्या है और इस समस्या के दुष्परिणाम हम ऊपर देख भी चुके हैं. यदि हम अब भी सचेत नहीं हुए तो वे दिन दूर नहीं जब कम्प्यूटर और अन्य मशीनों की तरह हमारी संवेदनाएं भी मशीनी हो जाएगी; हमारे सामाजिक और मानवीय रिश्ते सोशल नेटवर्किंग साइट्स के समान लाइक्स और कमेंट्स तक सीमित रह जायेंगे. हमारी होली-दीवाली इंटरनेट मेसेजेस और ई-कार्ड्स के ज़रिये मनाई जायेगी. जब तक हमारी भारतीयता सुरक्षित है, हमें वलेंटाइन डे और फादर्स या मदर्स डे मनाने से कोई परहेज़ नहीं. मगर जहां भारतीयता पर ख़तरे के आसार नज़र आयेंगे, वहां अंकुश लगाना तो लाज़मी हो जाता है. विचार कीजिये, और खुद ही तलाशिये रास्ते जो भारतीयता की ओर ले जाएँ. जो प्रश्न, जो समस्याएं आपके सम्मुख प्रस्तुत किये गए हैं, उनका हल, उनका निराकरण आसान नहीं है. मगर आसानी से मिलने वाली चीजों में वो बात कहाँ जो मेहनत और परिश्रम से हासिल हो. भारतीयता की ओर हमारा सबसे बड़ा प्रयास यही होगा कि हम इसकी चर्चा करें, इससे अपनी युवा पीढ़ी और आने वाली पीढ़ी का परिचय करायें. जाना कहाँ है इसका ज्ञान है हमें, बस रास्ते तलाशने होंगे. आइये हम सब मिलकर इसका आगाज़ करें, एक नई शुरुआत करें.
लेखिका दीपा कुमार मुंबई स्थित राष्ट्रीय फ़ैशन टेक्नोलॉजी संस्थान में एसिस्टेंट प्रोफ़ेसर के रूप में कार्यरत हैं।
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Assistant Professor
Department of Fashion Communication
National Institute of Fashion Technology, Mumbai
(Ministry of Textiles, Government of India)
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