राजनांदगाँव । मद्रास विश्वविद्यालय, चेन्नई और अखिल भारतीय साधुमार्गी शांत क्रांति श्रावक संघ द्वारा आचार्य प्रवर श्री विजयराज जी महाराज साहब के सान्निध्य में दुर्ग के नवकार भवन में आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी सफलतापूर्वक संपन्न हुई। संगोष्ठी में दिग्विजय कालेज के प्रोफ़ेसर डॉ. चन्द्रकुमार जैन ने आमंत्रित मुख्य वक्ता और सत्र अध्यक्ष के रूप में भागीदारी की । यह गरिमामय आयोजन जैन आगम ग्रंथ सूत्र कृतांग सूत्र के छठे अध्ययन वीर स्तुति पर केंद्रित था । इसमें देश के चुनिंदा ख्याति प्राप्त विद्वानों, चिंतकों, शिक्षाविदों, उच्च शिक्षा के क्षेत्र के निदेशकों तथा दर्शनवेत्ताओं ने सारस्वत सहभागिता की। संगोष्ठी का संयोजन चेन्नई के डॉ.दिलीप धींग ने कुशलतापूर्वक किया।
मुख्य वक्ता डॉ. चन्द्रकुमार जैन ने कहा कि आर्य सुधर्मा स्वामी ने द्वितीय अंग सूत्रकृतांग के छठे अध्ययन में महावीर भगवान की स्तूति की है जो अर्ध मागधी यानी प्राकृत भाषा में है । भगवान महावीर की प्रातः प्रार्थना एवं गुण कीर्तन के रुप में वीर-स्तुति अति उपयोगी है । यह स्तुति वास्तव में मानवता के लिए मंगलगान के समान महा कल्याणकारी है। इसके शब्द-शब्द में उच्च भावों का निर्झर सा बहता प्रतीत होता है। इसकी वाणी में मन वीणा के तारों को झंकृत कर देने की अद्भुत क्षमता है। आस्था और समर्पण के साथ इसका गायन करें तो भौतिक,मानसिक,आध्यात्मिक शांति के लिए वीर स्तुति एक अचूक साधन है।
डॉ. जैन ने स्पष्ट किया कि आर्य जम्बूस्वामी के प्रश्न पर गुरुदेव सुधर्मा स्वामी गणधर ने बताया कि भगवान महावीर संसारी जीवों के दुःखों के वास्तविक स्वरूप को जानते थे, क्योंकि उन्होंने कर्मों से उत्पन्न होने वाले उस दुख को दूर करने के लिए यथार्थ उपदेश दिया है । भगवान स्वयं आत्मा के सच्चिदानन्दमय सत्यस्वरूप के दृष्टा थे । कर्मरूपी कुश को उखाड़ फैंकने में कुशल थे, महान ऋषि थे, अनन्त पदार्थों के ज्ञाता-द्रष्टा थे और अक्षय यश वाले थे । भगवान का त्यागमय जीवन जनता की आँखों के सामने स्पष्ट खुला हुआ था । वे हित-अहित, अच्छे-बुरे मार्ग के दिखाने वाले थे, भगवान की महत्ता जानने के लिए उनके बताए हुए जन-कल्याणकारी धर्म को तथा संयम की अखण्ड दृढ़ता को देखना चाहिए।
जैन आगम के गुरु गंभीर विषय पर भी अत्यंत रोचक शैली में व्यक्त करते हुए डॉ. चन्द्रकुमार जैन ने वीर स्तुति की सभी उनतीस गाथाओं का सार प्रस्तुत किया । आज के जीवन में उसकी उपयोगिता पर प्रकाश डाला । उन्होंने कहा कि भगवान महावीर की प्रज्ञा विश्व का मंगल करने वाली थी । महावीर ने पूर्व तीर्थंकरों भगवान ऋषभ देव आदि द्वारा प्रचलित अहिंसा धर्म का पुनरुद्धार किया था। वीर स्तुति में सुमेरुपर्वत से उनकी सुंदर उपमा की गई है । कई अन्य उपमानों से उनके परम दिव्य जीवन और साधना के फल को समझाया गया है । वास्तव में वीर स्तुति काव्य मात्र नहीं, मोक्ष प्राप्ति का मंगल माध्यम है । संगोष्ठी में शहर के श्री मांगीलाल टाटिया ने भी सहभागिता करते हुए अपने प्रेरक उदगार व्यक्त किए । आयोजन में साधुमार्गी शांत क्रांति श्रावक संघ दुर्ग के साथ संस्कारधानी के श्री सुशील छाजेड़ ने विशेष सहयोगी भूमिका निभाई ।