Sunday, November 24, 2024
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मूकमाटी’ में सुनी जा सकती है गांघी-दर्शन की अनुगूंज – डॉ.जैन

राजनांदगांव। हिंदी साहित्य और महात्मा गांधी विषय पर पंडित रविशंकर विश्वविद्यालय रायपुर में हुई राष्ट्रीय संगोष्ठी में डॉ. चंद्रकुमार जैन ने कहा कि महात्मा गाँधी के विचार और व्यवहार का भारतीय साहित्य पर गहरा प्रभाव पड़ा है। आज गबन और विश्वासघात से उपजी हिंसा चिंता का विषय बनी हुई है। इसके कई रूप हैं। जीवन और व्यापार में नैतिकता ताक पर धर दी गयी है। सेवा की आड़ में लोग लोगों को लूटने का गोरखधंधा चलाने से बाज़ नहीं आ रहे हैं। महात्मा गांधी ने सत्य और अहिंसा की रक्षा के लिए ऎसी बुराइयों से निहायत दूर रहने का सन्देश दिया था। उनका जीवन कहने का नहीं, खुद जी कर दिखाने की अनोखी कहानी है। कदम-कदम पर इंसान के भरोसे को आहत करने वालों के लिए उनका जीवन आज भी दिशा दे सकता है। डॉ. जैन संगोष्ठी के आमंत्रित मुख्य वक्ता और सत्र अध्यक्ष के रूप में बोल रहे थे। इस अवसर पर यूनिवर्सिटी की साहित्य एवं भाषा अध्ययन शाला की अध्यक्ष प्रोफेसर डॉ. शैल शर्मा ने अतिथियों के साथ मुख्य वक्ता डॉ.चंद्रकुमार जैन का शाल, श्रीफल, पुष्प्प गुच्छ और गांधी साहित्य भेंट कर आत्मीय सम्मान किया।

 

 

डॉ. जैन ने संगोष्ठी के केंद्रीय विषय पर आचार्य विद्यासागर जी महाराज की बहुचर्चित रचना मूकमाटी के आधार पर ख़ास तौर चर्चा की। उन्होंने बताया कि दोस्स्रों का धन और सम्पदा का हरण कर अपने सुख और स्वार्थ के लिए संग्रह करना मोह का अतिरेक है। यह निम्न कोटि का कर्म है, दूसरों को सताना है और मूकमाटी के अनुसार नीच-नरकों में जा जीवन बिताना है। दूसरी तरफ गांधी जी ने सत्य और अहिंसा की साधना में सहनशीलता को अनिवार्य शर्त माना था। सहे बिना जीवन में मुक्ति नहीं मिलती। डॉ. जैन ने स्पष्ट किया कि मूकमाटी में इसे जीवन निर्माण का आधार माना गया है जिसमें पीछे बापू जैसी प्रेरणा साफ़ दिखती है। प्रत्येक व्यवधान का सावधान होकर सामना करना जीवन के अंतिम समाधान को पाना है।

डॉ. जैन ने कहा कि भारतीय संस्कृति भोगवादी नहीं है। यहाँ त्याग-तपस्या की प्रतिष्ठा की गयी है, जहाँ अहिंसा ही फलित होती है। महात्मा गांधी ने भी भारत को त्याग भूमि कहा है, भोग भूमि नहीं। अहिंसा की साधना ईमान और संयम के भाव के बिना संभव नहीं है। गांधी जी के लिए अहिंसा सबसे अचूक साधन रही। मूकमाटी में अहिंसा पर व्यापक चर्चा है। जिस प्रकार बापू का जीवन अहिंसा का जीवन था उसी प्रकार मूकमाटीकार और उनका साहित्य संसार स्वयं अहिंसा का महाकाव्य है। करुणा उसमें कूट-कूट कर भरी है। माटी जैसी तुच्छ, उपेक्षित और पददलित वस्तु पर कवि की दृष्टि गयी है। बापू ने भी समाज के अंतिम व्यक्ति के उत्थान, प्रकृति के संरक्षण और स्वराज के साथ-साथ सर्वोदय को लक्ष्य बनाया। मूकमाटी में कहा गया है -जीवन को रण मत बनाओ, प्रकति मां का वृण सुखाओ।

डॉ. जैन ने कहा कि भारतीय स्वाधीनता आंदोलन में महात्मा गाँधीनायक के रूप में उभरते हैं। सम्भवतः पहली कोशिश होगी, जब इतने बड़े आंदोलन का नेतृत्व इन मानवीय गुणों के आधार पर किया गया। अकारण नहीं है कि गाँधी जी इसके पर्याय हो गये। आज आजादी के बाद की परिस्थितियों में भी गाँधी बार-बार याद आते हैं। उनका जीवन हर युग में अँधेरे और अंधेर के बीच प्रकाश स्तम्भ के समान रहेगा। आयोजन में देश के ख्यातिप्राप्त गांधीवादी चिंतक, शिक्षाविद, दर्शनवेत्ता, विचारक और भाष-साहित्य के विशेषज्ञ शामिल हुए।

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