नई दिल्ली। एमएसएमई की परिभाषा में बदलाव की चर्चा 2015 से हो रही है। स्वदेशी जागरण मंच और लघु उद्योग भारती इस बारे में समय-समय पर अपना मत व्यक्त करते हुए इस क्षेत्र के हितों की रक्षा हेतु सरकार के साथ विमर्श में संलग्न रहे हैं। केंद्र सरकार एमएसएमई एक्ट 2006 में बदलाव कर सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग की परिभाषा वार्षिक विक्री पर आधारित करने का प्रस्ताव ला रही है।
स्वदेशी जागरण मंच के राष्ट्रीय सहसंयोजक डाॅ. अश्वनी महाजन ने कहा कि देश में सूक्ष्म एवं लघु उद्योगों के संरक्षण एवं संवर्द्धन हेतु पृथक लघु उद्योग मंत्रालय का गठन 1999 में किया गया था। यह क्षेत्र देश में कृषि के बाद सर्वाधिक रोजगार का सृजन करता है। बाद के वर्षों में सेवा उद्योग एवं मध्यम उद्योग को इसमें शामिल करने से व एमएसएमई एक्ट 2006 में इंटरप्राईज शब्द के समावेश से ये मुहिम कमजोर हुई।
इन सब परिवर्तनों से सन् 2006 से लेकर अब तक देश में स्वरोजगार में 10 प्रतिशत की कमी आई है। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (एनएसएसओ) द्वारा जारी विवरण इस बात की पुष्टि करते हैं। स्वरोजगार घटने से रोजगार सृजन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है और बेरोजगारी बढ़ती है।
वैश्विक स्तर पर यह माना गया है कि सूक्ष्म व लघु उद्योग विकेन्द्रित अर्थव्यवस्था को बल देते है एवं ग्रामीण क्षेत्र से युवाओं का शहरों में पलायन कम करते हैं। देश की युवा जनशक्ति के समावेशी उपयोग, संतुलित विकास एवं जीडीपी में वृद्धि हेतु सूक्ष्म व लघु उद्योगों को प्राथमिकता एवं संवर्धन अत्यावश्यक है।
स्वदेशी जागरण मंच एवं लघु उद्योग भारती सरकार से मांग करते है कि –
1. देश में स्वतंत्र सूक्ष्म व लघु उद्योग नीति बनाई जाए। मध्यम उद्योग क्षेत्र एवं इंटरप्राईज शब्द को एमएसएमई एक्ट से अलग किया जाए तथा इसका नाम माईक्रो एंड स्माल इंस्ट्री एक्ट (एमएसआई एक्ट) हो।
2. सूक्ष्म एवं लघु उद्योगों की परिभाषा वर्तमान में जारी प्लांट एवं मशीनरी में पूंजी निवेश राशि आधारित को ही बनाये रखा जाए। इसकी पूंजी निवेश सीमा इस प्रकार हो-
सूक्ष्म उद्योग- रू. 50 लाख तक। लघु उद्योग – रू. 50 लाख से अधिक व रू. 5 करोड़ से कम।
3. इसके अतिरिक्त एमएसआई एक्ट में भारतीय स्वामित्व एवं प्रबंधन की शर्त अनिवार्य रूप से लागू हो।
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गोविन्द लेले
अ.भा. महामंत्री
लघु उद्योग भारती