राजनीति करने वाली ताकतें सच में बेहद ताकतवर होती हैं । हम सोच भी नहीं सकते उससे भी ज्यादा ताकतवर होती हैं। सिर्फ ताकतवर ही नहीं होती है, देश को जोड़ने, तोड़ने के साथ सरकारों को बनाने, बिगाड़ने और दिग्भ्रमित करने का इनमें अप्रतिम कौशल होता है। सरकार बनाना कोई मजाक या बच्चों का खेल नहीं है। आपकी और हमारी सरकार तो घर भी ठीक से नहीं चला सकती है तो प्रदेश और देश की कल्पना करना दिन तारे ढूंढने जैसा है। अगर आपको खुदकुशी भी करनी है तो उसके लिए एक लंबी तैयारी करनी पड़ेगी। खुद को दिमागी तौर पर तैयार करने के बाद कुछ जरुरती सामान का जुगाड़ भी करना पड़ेगा। सोचिए जब खुद की जान लेना हो तो इतना सोचना पड़ता है तो रात भर में सरकार बनाना कितना मुश्किल होगा। बहुत ही जोखिम भरा काम है सरकार बनाना।
किसी के राय मशवरों पर एक रात में पानी फेर देना आपके और हमारे बस की बात नहीं है। आप और हम ठहरे सामान्य आदमी, पारिवारिक आदमी, कामकाजी आदमी और भारतीय नैतिक मूल्यों की दुहाई दे कर जीवन को गधे की तरह ढोने वाले आदमी, जो केवल मतदान कर अपने आप को इस लोकतंत्र का राजा मान लेते है। जबकि सच ये है कि सरकार का ढ़ाचा हम बना सकते है पर उपर का रंग रोगन और इंटीरियर डेकोरेशन हमारे हाथ में बिलकुल नहीं होता है क्योकि हममें राजनीति की समझ ही नहीं है।
आज देश में कहीं भी विधानसभा चुनाव हो निन्यानवें टका सरकारें मोठा भाई की बन रही है। एक टका कहीं दूसरे ने बना भी ली तो उनको रात को सपने में मोठा भाई मिटिंग करते दिखते है । और ये ही डर बना रहता है की सुबह सरकार न बदल जाए। महाराष्ट्र में सरकार बनाने की जिद पर अड़े लोग अड़े के अड़े ही रह गये और मोठा भाई ने पिछवाड़े से बिना बारात के सत्ता सुंदरी और फडणवीस का लग्न करवा दिया और तो और जिसने पीछे से निकलने में मदद करने वाले छोटे पंवार को भी छोटी बेन दिलवा दी। दरवाजे पर अड़े और बातचीत कर रणनीति बनाने वालों को कानों-कान खबर नहीं होने दी कि लग्न हो गये और बारात घर आ गई। मोड़ बांधने की जिद अड़े छोटे ठाकरे को कुंवारा ही रहना पड़ा। और बापदादा की इज्जत की धज्जियां उड़ी वो अलग।
लोकसत्ता की तुलना नगरवधु से की जाती रही है। और नगरवधु के प्रेम में अक्सर इज्जत का फालूदा बनता ही बनता है। इसका इतिहास गवाह है। फडणवीस ने शुरु से मोठा भाई की बात मानी और बिना तर्क सत्ता सुंदरी का त्याग कर दिया उसी का परिणाम है कि सत्ता सुंदरी को कोई और भोगे इसका रास्ता ही बंद हो गया और छोटे पंवार की दुखती रग पर हाथ रखा और छोटी से जुगाड़ कर देने की जुबान करके फिर से फडणवीस को सत्ता सूंदरी ससम्मान दिला दी।
ये सब सामान्य राजनीति के गणित नहीं है जिनको अंक गणित की तरह आप और हम समझ ले, ये सब काम उस बीज गणित की तरह है जिसका साईन, कॉस, थीटा और एक्स के मान को पढ़-पढ़ कर दिन रात हमने सिर खपाया पर परिक्षा के समय कुछ भी याद नहीं आया। सारे रटे हुए सवाल बेकार गये और नये सवाल आ गये। राजनीति के धंधे में दिन-रात जोड़, घटाव, गुणा, भाग लगा लो पर परिक्षा के समय केवल बीज गणित के सूत्र ही काम में आते है।जिनमे कई रहस्य छुपे होते है।
अंक गणित की तरह आप और हम केवल कांदा, टमाटर, पेट्रोल, डिजल और जातिवाद आदी सामने दिखने वाले मुद्दो को ही राजनीति समझते है लेकिन असल में राजनीति बीज गणित के एक्स के मान की तरह होती है। जैसे कि मोठा भाई ने पूर्ण संख्या फडणवीस में एक्स के रुप में छोटे पंवार का जोड़ किया तो संख्या वह बन गई जिसकी कल्पना वे सब संख्याएँ नहीं कर सकी जो महाराष्ट्र की सत्ता सूंदरी का वरण करने की चाह में पगड़ी पर मोड़ कलंगी बांधे बैठी थी। सबकी पगड़ी रह गई और दुल्हन फिर वही ले उड़ा। अब तो सांप निकलने के बाद लाठी पीटना ही बचा है केवल बाकी दुल्हों के हाथ में ।
-संदीप सृजन
संपादक-शाश्वत सृजन
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