Sunday, November 24, 2024
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मिलिये संस्‍कृत के इन मुस्लिम ‘पंडितों’ से, बेहद दिलचस्प है इनकी कहानी

कुछ ऐसे भी मुस्लिम हैं जिन्‍होंने संस्‍कृत में गहरी रुचि दिखाई। उन्‍होंने इसका प्रशिक्षण भी दिया। बनारस हिंदू विश्‍वविद्यालय (BHU) में संस्‍कृत शिक्षक के रूप में डॉ फिरोज खान की नियुक्ति का विरोध हो रहा है। यह कहा जा रहा है कि एक मुस्लिम संस्‍कृत नहीं पढ़ा सकता। ऐसे में कुछ मुस्लिम पंडितों का जिक्र होना स्‍वाभाविक है जिन्‍होंने मजहब की सीमाओं से परे जाकर एक भाषा के प्रति अपना अनुराग जाहिर किया। इन्‍होंने संस्‍कृत को पढ़ा और पढ़ाया भी। मुस्लिमों सहित हिंदुओं के बीच भी ये मिसाल बन चुके हैं। आइये जानते हैं इनके बारे में।

पंडित गुलाम दस्‍तगीर बिराजदार
पंडित गुलाम दस्‍तगीर बिराजदार वाराणसी के विश्‍व संस्‍कृत प्रतिष्‍ठान के पूर्व सचिव और वर्तमान में महाराष्‍ट्र की स्‍कूल टैक्‍स्‍ट बुक समिति के अध्‍यक्ष हैं। उनकी संस्‍कृत पर जर्बदस्‍त पकड़ है। उन्‍हें अक्‍सर हिंदू विवाहों में पूजा-अनुष्‍ठान के लिए बुलाया जाता है। उन्‍होंने अभी तक कई हिंदुओं को मंत्रोच्‍चारण सिखाया है। वे कहते हैं, “मैंने जीवन भर संस्‍कृत को आगे बढ़ाने का काम किया है। अलग-अलग जगहों पर संस्‍कृत की टीचिंग की। बीएचयू में इस पर कई बार व्‍याख्‍यान दिए। किसी ने मुझसे आज तक नहीं कहा कि मुस्लिमों को संस्‍कृत नहीं पढ़ाना चाहिये। दूसरी तरफ, संस्‍कृत के विद्वान संस्‍कृत के प्रति मेरे कार्य और लगन को लेकर मेरी सराहना करते हैं।” बिराजदार एक सर्टिफाइड पंडित हैं, जिन्‍हें पूर्व राष्‍ट्रपति स्‍व. केआर नारायणन से प्रशस्ति-पत्र मिल चुका है। वे देश के उन कुछ मुस्लिमों में से एक हैं जिन्‍होंने परिपाटी बदलते हुए संस्‍कृत का प्रशिक्षण दिया है।

डॉ. मेराज अहमद खान

सिविल सविर्सेज का शौक फरमा चुके डॉ. मेराज ने पटना यूनिवर्सिटी से संस्‍कृत में बीए और एमए दोनों की डिग्रियां ली हैं। वे टॉपर रहे हैं। उनके पिता पुलिस इंस्‍पेक्‍टर हैं और मेराज वर्तमान में कश्‍मीर यूनिवर्सिटी में संस्‍कृत के एसोसिएट प्रोफेसर हैं। वे कहते हैं, “यूनिवर्सिटी में हम मार्डन संस्‍कृत पढ़ाते हैं जिसका किसी धर्म से कोई संबंध नहीं है। मुझे मुस्लिम होने के नाते कभी भेदभाव का सामना नहीं करना पड़ा। यदि ऐसा होता तो मुझे एमए में गोल्‍ड मेडल भला कैसे मिलता।”

फिरोज खान के दादा गाते थे हिंदू भजन, जानिये उनके बारे में

फिरोज खान के दादा गफूर खान राजस्‍थान में हिंदू जनता के बीच भजन गाते थे। उनके पिता रमज़ान खान ने संस्‍कृत में पढ़ाई की है। वे अक्‍सर गायों की देखभाल को लेकर भी हिदायत देते थे। खान कहते हैं, “पहले हमें कोई समस्‍या नहीं थी।” लेकिन अब दृश्‍य बदल चुका है। बीएचयू में उनका विरोध हो रहा है। वे कहते हैं, बचपन से लेकर पढ़ाई पूरी होने तक मैंने कभी भी धार्मिक भेदभाव नहीं झेला। लेकिन अब जो हो रहा है वह दिल तोड़ने वाला है।

गुजरात में 22 साल से संस्‍कृत पढ़ा रहे आबिद सैयद

गुजरात के वडोदरा स्थित एमईएस बॉयज हाई स्‍कूल में 46 वर्षीय आबिद सैयद गत 22 वर्षों से संस्‍कृत पढ़ा रहे हैं। उनकी क्‍लास में मुस्लिम छात्र संस्‍कृत के श्‍लोकों का वाचन करते हैं। हालांकि उन्‍हें कभी भी धार्मिक विरोध का सामना नहीं करना पड़ा। उनकी बेटी इज्‍मा बानो बड़ौदा मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस की फर्स्‍ट ईयर की स्‍टूडेंट है। उसने 2017 में दसवीं में ना केवल क्‍लास में टॉप किया, बल्कि संस्‍कृत में सर्वाधिक 98 प्रतिशत अंक भी हासिल किए।

मुस्लिमों में संस्‍कृत के प्रति आकर्षण, विद्वानों की यह है राय

– कुछ मुस्लिम अधिक से अधिक संस्‍कृत सीखना चाहते हैं, क्‍योंकि उन्‍हें भारतीय सभ्‍यता के बारे में जानने में बहुत रुचि है। भारतीय सांस्‍कृतिक विरासत का मूल स्‍त्रोत संस्‍कृत ही है, इसलिए अधिकांश मुस्लिम इसे जानना चाहते हैं। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के पूर्व संस्‍कृत विभाग प्रमुख डॉ. खालिद बिन युसुफ का कहना है हमारे विभाग में 50 प्रतिशत मुस्लिम हैं और शिक्षकों की नियुक्ति को लेकर कोई भेदभाव नहीं होता।

– एएमयू के ही संस्‍कृत विभाग के अध्‍यक्ष प्रोफेसर मोहम्‍मद शरीफ का कहना है, संस्‍कृत ऐसा विषय है, जिसमें अच्‍छे अंक लाना ही है। यह विषय यूपीएससी के लिए अहम है। यदि कोई यूपीएससी के लिए क्‍वालीफाई नहीं कर पाता तो उसके लिए शिक्षक बनने का विकल्‍प है। डॉ. मोहम्‍मद हनीफ खान शास्‍त्री कहते हैं, मुस्लिम इसलिए भी संस्‍कृत सीखना चाहते हैं क्‍योंकि वे इस्‍लाम और हिंदुत्‍व को करीब लाना चाहते हैं।

– वे बताते हैं पूर्व राष्‍ट्रपति शंकरदयाल शर्मा भी उनकी संस्‍कृत पर पकड़ से प्रभावित थे और उन्‍होंने ही उन्‍हें शास्‍त्री की उपाधि दी थी। हनीफ खान राष्‍ट्रीय संस्‍कृत संस्‍थान दिल्‍ली से 2016 में एसोसिएट प्रोफेसर के पद से रिटायर हुए। वे कहते हैं यदि मैंने संस्‍कृत नहीं पढ़ी होती तो मैं वसुधैव कुटुंबकम की अवधारणा को नहीं समझ पाता। वे कहते हैं फिरोज खान की नियुक्ति का विरोध होना दुखद है।

साभार- https://www.naidunia.com/ से

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