भारत जो प्याज के मामले में दुनिया का सबसा बड़ा निर्यातक देश है जिससे करीब 60 देशों में प्याज निर्यात की जाती है।बम्पर पैदावार होने के बाद भी हर साल प्याज के दाम बढ़ जाते है। बढ़े दामों की मार जनता को झेलनी पड़ती है।इसके पीछे सरकार की विदेशी निर्यातक रणनीति और रिटेलर का अधिक मुनाफाखोरी होना है।वहीं प्रमुख उत्पादक राज्य महाराष्ट्र,आंध्रप्रदेश,कर्नाटक में भारी बारिश के कारण उत्पादन और यातायात परिवहन का कम होना भी है।कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण के मुताबिक भारत ने वित्त वर्ष 2018 -2019 में 22 लाख टन प्याज का निर्यात किया ।भारत के प्याज उत्पादन का 60 फीसदी हिस्सा रबी का होता है।भारत में प्याज तीन बार खरीफ (गरमी),देर खरीफ और रबी (जाड़े) के मौसम में लगाई जाती है।वित्त वर्ष 2016 -17 में प्याज निर्यात के बाद 2017-18 में निर्यात लगातार बढ़ा ।2018-19 में भी प्याज निर्यात में पहले की वर्षों के मुकाबला उछाल देखने को मिला ।
भारत से 2016 के वित्त वर्ष में 16.34 लाख टन निर्यात हुआ।वहीं 2017 में 16.79 लाख टन निर्यात किया गया।निर्यात के आकड़ों का कदम थमा नहीं और 2018 में भी निर्यात का यह आंकड़ा 22 लाख टन तक हुआ ।जब प्याज के दाम बढ़ने की ओंर होते है।तब सरकार निर्यात पर रोक लगाने के लिए न्यूनतम निर्यात मूल्य का सहारा लेती है लेकिन बडे बडे स्टोक होल्डर बढ़ा-चढकर मुनाफे में निर्यात कर देते है।जब यह निर्यात अपनी अधिकतम चरमसीमा पर पहुंच जाता है।तब देश में मांग के अनुसार प्याज उपलब्ध नहीं हो पाती।तब सत्ता विपक्ष जनता की मांग पर सड़क और संसद में हड़ताल करने लग जाते है। तब सोई सरकार जागती है और निर्यात पर रोक लगाने का प्रयास करती है।तत्काल सरकार निर्यात प्रतिबंध संबधी कानून बनाती है । लेकिन तब तक जनता के पेट की मांग आनुसार प्याज बाजार से गायब हो चुकी होती है। ऐसे में बाजार की ज्यादा मांग पर होलसेलर और रिटेलर स्टोक से अपनी मनमानी कीमत पर मंडीओं में प्याज निकालते है। और निर्यात करने वाला देश जनता की अधिक महंगाई की मार पर सरकार को प्याज आयात करनी पड़ती है ।तब निर्यातक देश को आयातिक देश बनना पड़ता है ।
मांग,मंहगाई और आयात का सिलसिला दशकों से चला आ रहा है सरकार चाहे फिर किसी भी दल की हों । हमारी सरकारों को रिसर्च कर इस बात की ओंर ध्यान देना चाहिए कि खराब होने वाली लाखों टन प्याज को पेस्ट फ़ॉर्मेट में रखकर इस्तेमाल कर सकें ।
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आनंद जोनवार
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