हम हिंदुस्तानियों की एक खासियत है कि हम लोग आपस में संबंध जोड़ने, निकालने व उस पर गर्व करने में माहिर है। जब शहर में होते हैं तो किसी व्यक्ति के चर्चा में आने पर उसके पड़ोसी होने पर गर्व करते हैं। जब दिल्ली में होते हैं तो किसी व्यक्ति के अपने शहर में चर्चा में आने पर गर्व करते हैं और जब विदेश जाते हैं तो वहां किसी भारतीय व्यक्ति के चर्चा में रहने पर गर्वित हो जाते हैं।
हाल में जब सुंदर पिचाई के गूगल की मूल कंपनी अल्फाबेट का मुख्य कार्य अधिकारी सीईओ बनने की खबर आई तो भारतीय बहुत खुश हुए। यह स्वाभाविक भी है क्योंकि जब कोई भारतीय विदेश में किसी अहम पद पर पहुंचता है तो हम गर्वित होने लगते हैं। इससे पहले भी भारतीय मूल के लोगों के दुनिया के दूसरे देशों जैसे अमेरिका की जानी-मानी कंपनियों में अहम पद पाने पर हमारी बांछे खुशी से खिल उठती रही है।
अल्फाबेट कंपनी व गूगल कंपनी को स्थापित करने वाले लैरी पेज और सर्गी ब्रिन ने 1998 में इसकी स्थापना करने के बाद जब 21 साल बाद उसके कार्यकारी निदेशक पदों से हटने का फैसला किया तो सीईओ पद के लिए पिचाई को चुना गया। सूचना तकनीक के क्षेत्र में गूगल को दुनिया की सबसे बड़ी कंपनियों में गिना जाता है और वह माइक्रोसॉफ्ट के बराबर मानी जाती है। लैरी पेज व सर्गी ब्रिन तो माइक्रोसॉफ्ट के संस्थापक बिल गेट्स व एप्पल के संस्थापक स्टीव जॉब्स की श्रेणी में आते हैं।
अब उस जगह पिचाई जा पहुंचे हैं। उन दोनों का कहना था कि पिचाई के अंदर सबको साथ लेकर चलने की क्षमता है और वे तकनीक और अपने सार्थियों के साथ बहुत अच्छा व्यवहार करते आए हैं। उनसे ज्यादा किसी और पर कंपनी के भविष्य में और आगे ले जाने का विश्वास नहीं किया जा सकता।
सुंदर पिचाई मूलतः दक्षिण से हैं। चेन्नई में जन्मे इस सीईओ का पूरा नाम सुंदरराजन पिचाई है। पर बाद में अमेरिका जाने पर उन्होंने अपने नाम को छोटा करते हुए उसके आगे से राजन शब्द हटा दिया। उन्होंने 2004 में गूगल कंपनी में मैटीरियल इंजीनियर के रूप में नौकरी शुरू की। फिर वे कंपनी के प्रोडक्ट चीफ बने व 2015 में गूगल कंपनी के सीईओ बने। यह 47 वर्षीय सीईओ चेन्नई के मदूरे जिले में पैदा हुआ व इसका परिवार दो कमरो के एक छोटे से मकान में रहता था। उसके मां-बाप दोनों ही नौकरी करते थे।
बचपन में उनके घर में कार, टीवी, फोन आदि कुछ नहीं था। आज वह 4,32,000 करोड़ की कंपनी के कर्ता-धर्ता बन गए हैं। अपने वेतन से उन्होंने आईआईटी मद्रास के प्रांगण में स्थित वनवानी स्कूल से बारहवीं की और फिर आईआईटी खड़गपुर से मैटेलर्जिकल इंजीनियरिंग की डिग्री की फिर उन्होंने स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी से एमएस किया। फिर उन्होंने व्हार्टन स्कूल पेंसिलवेनिया यूनिवर्सिटी से एमबीए किया।
गूगल में नौकरी करते हुए उन्होंने गूगल का इस्तेमाल करने वालो के लिए गूगल क्रोम सरीखा बेहतर उपयोगी साफ्टवेयर विकसित किया। जीमेल व गूगल मैप्स बनाने में उनकी बहुत भूमिका रही। एड्रायड विकसित करने में उनकी अहम भूमिका रही। पिचाई को अपने एक उस कर्मचारी को निकलने के लिए काफी आलोचना का सामना करना पड़ा जिसने कंपनी के बारे में लिखा था कि उसकी नीतियां स्त्री व पुरुष कर्मचारियों में भेदभाव करती हैं व यह भेदभाव उनके शारीरिक क्षमताओं के कारण किया जाता है। टेक्नोलॉजी व नेतृत्व के मामले में कंपनी में महिलाओं को अहमियत नहीं दी जाती है।
उनका कहना था कि गूगल ने तमाम चीनी कंपनियों को आगे बढ़ाने में काफी मदद की। चीन के लिए सेंसरशिप एप विकसित करने के आरोपो में उन्हें अमेरिकी संसद की न्यायिक समिति के सामने भी कंपनी की ओर से पेश होना पड़ा।
सुंदर पिचाई की पत्नी अंजली पिचाई भी केमिकल इंजीनियर है जो आईआईटी खड़गपुर व कोटा (राजस्थान) की पढ़ी लिखी है। उन दोनों के दो बच्चे है। पिचाई को फुटबाल व क्रिकेट काफी पंसद है। सुंदर का अपने मूल देश भारत के प्रति भी काफी लगाव है व वे यहां काफी निवेश भी करते आए हैं। उन्होंने गूगल में व नेक्स्ट बिलियन यूजर्स जैसी व्यवस्था विकसित की है।
गूगल की सीईओ बनने पर उन्हें 2016 से 19में अरबो रू का वेतन लिया हैं। पिचाई को अब उन्हें वेतन के अलवा इस कंपनी के शेयर भी मिलेंगे। जिसकी कीमत 58 करोड़ डालर है इससे पहले सत्या नडेला, माइक्रासॉफ्ट के सीईओ रह चुके हैं। जबकि भारतीय मूल के शांतनु नारायण अमेरिकी कंपनी अडोबी के अध्यक्ष रह चुके हैं। अजय बंगा ने मास्टर कार्ड के अध्यक्ष पद को संभाला व इवान मेन्जेस डियाजियो के सीईओ रह चुके हैं।
मेरी समझ में एक बात यह नहीं आती है कि आखिर वे इतने वेतन का करेंगे क्या जिसे आम भारतीय के लिए लिख पाना या गिन पाना ही मुश्किल है। जब मैं किसी धनी व्यक्ति से मिलता था तो उससे यह जरूर पूछता था कि आखिर वे इतने पैसे का करते क्या हैं? अंततः वह पैसा दान करके जाते हैं।
पिचाई की योजना का मुझे पता नहीं है। हां, फिर भी मैं इस बात से खुश हूं कि जो अमेरिका पूरी दुनिया पर अपनी धाक जमा रहा है उसकी सबसे बड़ी कंपनी का सीईओ एक भारतीय है। ऐसी खुशी मेरे एक मित्र ने कभी मुझे बताई थी जोकि प्रधानमंत्री के सूचना अधिकारी हुआ करते थे। इंदिरा गांधी जब प्रधानमंत्री थी तो आंध्र प्रदेश के वाईवी शारदा प्रसाद उनके सूचना सलाहकार थे। एक बार कुछ बिहारी नेता वहां आए और मित्र से कहने लगे कि हमे शारदा प्रसाद जी से मिलना है। जब उन्होंने वजह पूछी तो कहने लगे कि वे तो हमारे बिहार के ही हैं। उन्हें लगा कि प्रसाद सरनेम तो बिहार में ही होता है। जैसे कि डा. राजेंद्र प्रसाद।
जब मित्र ने उन्हें हकीकत बताई तो वे बहुत आश्चर्य में पड़ गए। उनका कहना था कि हमें तो यही लगता था कि शारदा प्रसाद बिहार के ही होंगे। हम अन्य भारतीय के लिए भी पिचाई कुछ ऐसे ही हैं। वैसे सुंदर पिचाई की स्थिति वेतन आदि को लेकर हम भारतीयों की खुशी पर एक घटना याद आ जाती है। काफी साल पहले अपनी बेटी से मिलने उसके होस्टल गया। उस दिन अध्यक्ष की और अभिभावको की बैठक थी। उसकी एक सहेली के पिता मेरठ से आए थे। उन्होंने मुझसे कहा कि मैं दिल्ली तक उन्हें अपनी कार में लेता जाऊं। वै बेहद मौनी स्वभाव के व्यापारी थे। कुछ नहीं बोलते थे जबकि मैं आदतन समय काटने के लिए उनसे बात करता रहा। मैंने उनसे कहा कि देखिए स्कूल के छात्रावास कैसै सुंदर है तो उन्होंने फटाक यह कहते हुए मेरी बात काट दी हमें क्या इसका बैगमा करवाना है जो अच्छाई दें। कुछ समय बाद मैंने माहौल को सामांतर बनाने के लिए उनसे कहा कि यहां खाना बहुत अच्छा मिलता है उनका जवाब था कि क्या हम अपने घर में घटिया खाना खाते हैं? और मैं चुप हो गया।
(विवेक सक्सेना नया इंडिया से जुड़े हैं और अपने अंदाज में चर्चित विषयों पर रोचक लेख लिखते हैं। )
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