न कुछ दिखावा, न ही जनता में कोई खास प्रदर्शन, मुलाकातों में मौन और उसके बाद सुगढ़ की ओर प्रशस्त पथ।
गुजरात से चला सफर, मौन सहभागिता से गोधरा और गाँधीनगर संभाला, राज्य सरकार में भी बतौर गृहमंत्री अमित शाह का नेतृत्व, मोदी की सत्ता के बीरबल बने रहे शाह।
मोदी 1.0 में भी उत्तरप्रदेश की 72 लोकसभा का सेहरा हो चाहे मोदी 2.0 के शिल्पकार बने हो, देशभर के भ्रमण हो चाहे कार्यकर्ताओं के उत्साहवर्धन की चाह, देश की सबसे बड़ी राजनैतिक पार्टी के रूप में भाजपा का कद हो चाहे धारा 370 पर बहस हो या तीन तलाक या राम जन्मभूमि विवाद का सहजता से समाधान, हर जगह कोई खामोशी से मोदी के कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा मिला तो वह अमित शाह ही रहें।
न्यायालय के फैसलों के बाद भी कही देश में कोई हल्ला नहीं। गुरुवार को भी सदन में मोदी उपस्थित नहीं थे लेकिन बिल तो मोदीमय ही था, बिल पास होते मोदी ने पूरा श्रेय शाह को दिया, 70 साल में किसी भारतीय राजनीतिक जोड़ी में ऐसा समन्वय नहीं दिखा।
यह भी सच है कि कठोर, कड़े या कहें विवादित फैसले लेने के लिए भी अमित शाह जाने जाएंगे।
मोदी की सुरक्षा की चिंता हो चाहे भारत की सीमाओं की सुरक्षा का सवाल, पीओके की तरफ नज़र डालने भर पर बलूचिस्तान खो देने का दम्भ दिखाने वाले भी अमित शाह और अजित डोभाल ही हैं।
आखिरकार मोदी-शाह की जोड़ी जरूर किसी बड़ी नज़ीर को रखेगी, क्योंकि पिछली किसी सरकार में एक साथ इतने बड़े फ़ैसले कभी लिए भी नहीं न ही हिम्मत की,पर मोदी 2.0 ने पहले 6 माह में ही देश के कई विवादित मुद्दे समाप्त कर दिए। यह भी अपने आप में बड़ा फैसला है कि चुनना भी कठिन पथ को जबकि देश में वर्तमान में महाराष्ट्र में हुई भाजपा की किरकिरी के बावजूद केंद्र सरकार का हलचल में बने रहना।
सच में मोदी सोते जागते ताकतवर हैं क्योंकि वो निश्चिंत है उनके पास अमित शाह है। यकीनन मोदी-शाह की जोड़ी कमाल है।
डॉ.अर्पण जैन ‘अविचल’*
हिन्दीग्राम, इंदौर