ब्रिटेन की दूसरी सबसे बड़ी कोर्ट, कोर्ट ऑफ अपील ने इस्लामिक शरिया के तहत की गयी शादी को गैरकानूनी ठहराते हुए बड़ा लैंडमार्क फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ऑफ यूनाइटेड किंगडम के बाद इंग्लैंड और वेल्स की सबसे बड़ी कोर्ट ने दरअसल हाईकोर्ट के 2 साल पहले फैसले को पलट दिया है, जिसमें 2018 में हाईकोर्ट ने इस्लामिक निकाह को कानूनी ठहराया था।
कोर्ट ऑफ अपील के इस फैसले के बाद ब्रिटेन में लाखों मुस्लिमों की शादियों की वैधता पर प्रश्नचिन्ह खड़ा हो गया है। दरअसल ये प्रश्नचिन्ह उन शादियों की वैधता पर खड़ा हुआ है, जिन्होंने शरिया के तहत तो निकाह किया है लेकिन ब्रिटिश कानून के तहत सिविल सेरेमनी के तहत शादी नहीं की। 2017 में चैनल 4 की एक डॉक्यूमेंटरी के मुताबिक ब्रिटेन में 70 फीसदी मुस्लिमों ने सिर्फ शरिया के तहत निकाह तो किया है, लेकिन सिविल सेरेमनी नहीं की। अब इस फैसले के बाद इन शादियों की वैधता खत्म हो गयी है।
दरअसल ये केस नसरीन अख्तर और मोहम्मद शाहबाज़ अख्तर के तलाक के मामले से शुरू हुआ, जिनके 4 बच्चे हैं। नसरीन ने 2016 में तलाक के लिए कोर्ट में अर्जी दाखिल कर ब्रिटिश कानून के मुताबिक अपने पति से आर्थिक सुरक्षा और मुआवजे की मांग की। लेकिन इसपर मोहम्मद शाहबाज़ अख्तर ने ये कहते हुए मुआवजा देने से इंकार कर दिया कि उनकी शादी ब्रिटिश कानून के मुताबिक हुई ही नहीं। कोर्ट में सामने आया कि 1998 में दोनों ने 150 मेहमानों के सामने शरिया के तहत निकाल तो किया, लेकिन ब्रिटिश कानून के तहत सिविल सेरेमनी नहीं की।
कोर्ट ने 2018 में निकाह को वैध मानते हुए बीवी नसरीन अख्तर के हक में फैसला सुनाया। जिसके खिलाफ पति शाहबाज़ अख्तर ने कोर्ट ऑफ अपील में गया। जहां कोर्ट ने लैंडमार्क फैसला सुनाते हुए बिना सिविल सेरेमनी किये सिर्फ शरिया के तहत निकाह को अवैध ठहरा दिया। इसके तहत नसरीन अख्तर को कोई आर्थिक सुरक्षा नहीं मिलेगी।
कोर्ट ऑफ अपील के इस फैसले के बाद उन लाखों मुस्लिम महिलाओं में खलबली मच गयी है। जिन्होंने सिविल सेरेमनी के तहत निकाह नहीं किया। अब उनके अधिकार भी एक झटके में खत्म हो गये हैं। ऐसे में ब्रिटेन में ह्यूमन राइट्स एक्टिविस्ट्स और वकीलों ने इस फैसले पर सवाल खड़े करने शुरू कर दिये हैं। भविष्य में देखना दिलचस्प होगा कि आगे इस मामले में क्या सामने आता है।
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