Thursday, November 28, 2024
spot_img
Homeप्रेस विज्ञप्तिचेतेश्वर पुजारा और उनके पिता ने बिना नाम की एक क्रिकेट अकादमी...

चेतेश्वर पुजारा और उनके पिता ने बिना नाम की एक क्रिकेट अकादमी शुरु की


मुंबई।

चेतेश्वर पुजारा (Cheteshwar Pujara’s) की सफलता और विफलता की कहानी एक फिल्म की कहानी जैसी है– ऐसी कहानी जो आपको उन्नति की राह पर ले जाती है, प्रेरणा देती है लेकिन रुलाती भी है। इनकी कहानी भी ऐसी ही कहानी है जो आपको भारत के मध्यम– वर्ग के हर एक परिवार से मिलती–जुलती लगेगी– ऐसी कहानी जिसमें सफलता मिलती है एक पिता के जुनून और अनुशासन के सुदृढ़ लेकिन खुबसूरत बुनियाद और एक माँ की बिना शर्त प्रेम पर।

एक तरफ, पुजारा की कहानी एक पिता के दृढ़ संकल्प की कहानी है। चेतेश्वर के पिता, अरविन्द पुजारा, भारतीय रेलवे में क्लर्क थे। उनकी पोस्टिंग राजकोट में थी। बेटे के साथ गली क्रिकेट खेलने के दौरान उन्होंने अपने बेटे की प्रतिभा को पहचाना। इस समय पुजारा की उम्र मात्र पांच (5) साल थी। सीनियर पुजारा ने अपने बेटे के क्रिकेटर बनने के सपने को पूरा करने के लिए अपनी पूरी ताकत और साधन लगाने का फैसला किया। इसका मतलब था कि पुजारा को बेहद सख्त अनुशासन में रहना होगा– यहां तक कि डांडिया भी नहीं खेलना होगा ताकि वह अगली सुबह प्रशिक्षण ले सकें। उन्हें गली में टेनिस–बॉल से क्रिकेट खेलने तक की इजाज़त नहीं थी ताकि उनको अपनी तकनीक को बनाए रखने में परेशानी न हो।

माँ के त्याग और बलिदान की भी कहानी है। पुजारा को आज भी याद है कि उनकी माँ ने उनके लिए 1500 रु. की एक बैट खरीदी थी (1990 के दशक में एक निम्न–मध्यम–वर्ग के परिवार के लिए यह फिजूलखर्ची जैसा था)। इसके बाद उन्होंने स्पोर्ट्स स्टोर को उस बैट के पैसे किश्तों में दिए – एक महीने 100 रु., दूसरे महीने 200 रु.— घरेलू खर्चे से जो भी वे बचा पातीं उससे बैट की किश्त देतीं। पुजारा बताते हैं कि कैसे उनकी माँ उनके लिए क्रिकेट के पैड्स सिल कर तैयार करती थीं क्योंकि फुल–साइज़ के पैड्स उनको फिट नहीं आते थे। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि पुजारा की माँ (जो अब नहीं रहीं) हमेशा से जानती थीं कि वह भारतीय टीम के लिए जरूर खेलेंगे। जीवन भर उन्होंने अपना यह दृढ़ विश्वास कभी भी हिलने नहीं दिया और उनके इसी विश्वसा ने चेतेश्वर को करिअर के शुरुआती दिनों में आत्मविश्वास दिया।

इस परी–कथा का अंत तो और भी अधिक प्रेरक है। चेतेश्वर और उनके पिता ने महसूस किया कि एक क्रिकेटर बनने के लिए जो संघर्ष उन्हें करना पड़ा वह उनके होमटाउन/ गृहनगर राजकोट के किसी आकांक्षी (अस्पाइरिंग) क्रिकेटर न करना पड़े। और फिर उन्होंने एक नए क्रिकेट अकादमी बनाने का फैसला किया– जिसमें युवा क्रिकेटरों को सफल बनने के लिए जरूरी कोचिंग से लेकर बुनियादी ढ़ांचा संबंधी सभी जरूरतें हों। चेतेश्वर के पिता ने सारी व्यवस्था की– ट्रकों में भर–भर कर काली मिट्टी मंगवाई और हर एक निर्माण कार्य अपनी निगरानी में करवाया।

बावजूद इसके, पुजारा की अकादमी बहुत मशहूर नहीं है। ये किसी प्रकार की मार्केटिंग में विश्वास नहीं रखते, सच पूछें तो, इस अकादमी का नाम तक नहीं रखा गया है। चेतेश्वर बताते

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -

वार त्यौहार