एक बार मुगल बादशाह अकबर और उनका अति प्रिय मंत्री बीरबल दोनों शतरंज खेलने बैठे। दोनों के बीच यह शर्त लगी कि उन में से जो भी व्यक्ति शतरंज की यह बाजी हारेगा, उसे जीतने वाले की इच्छा के अनुसार जुर्माना चुकाना होगा। इसी क्रम में पहले बीरबल बोला जहांपनाह यदि आप जीत गए और मैं हार गया तो हुकुम फरमाएं कि मैं आपको क्या जुर्माना चुकाऊंगा ? बादशाह ने जवाब दिया बीरबल यदि यह बाजी मैं जीता और तुम हारे तो तुम्हें, जुर्माना स्वरूप मुझे सौ स्वर्ण मुद्राएं सौंपनी होगी। इस पर बीरबल ने हां में गर्दन हिलाई । अब बारी बीरबल की थी, वह बोला जहांपनाह यदि इस बाजी में आप हारे और मैं जीता तो आप मुझे जुर्माने के रूप में शतरंज के 64 खानों में गेहूं के दाने रखकर चुकाएंगे लेकिन इसमें मेरी एक छोटी सी शर्त यह रहेगी कि आपको शतरंज के पहले खाने में गेहूं का एक दाना रखना होगा, दूसरे खाने में पहले के दुगने दो दाने, तीसरे खाने में दो के दुगने चार दाने, चौथे खाने में चार के दुगने आठ दाने, पांचवें खाने में आठ के दुगने सोलह दाने। ऐसे करते हुए शतरंज के सभी चौसठ खानों में गेहूं के दाने रख कर वे सारे गेहूं के दाने जुर्माना स्वरूप मुझे सौंप दें। बस यही मेरी शर्त है।
बीरबल की इस छोटी सी मांग को सुनकर बादशाह अकबर ने जोरदार ठहाका लगाया और बोला बीरबल मुझे तुम्हारी यह शर्त मंजूर है। इसके बाद शतरंज का खेल शुरू हुआ। अब संयोग देखिए कि शतरंज की उस बाजी में बीरबल जीत गया और बादशाह अकबर को हार का मुंह देखना पड़ा। अब बारी आई हारने वाले को जीतने वाले का जुर्माना चुकाने की। हारने वाले अकबर बादशाह ने बड़े ही अहंकार के साथ अपने खजांची को हुकुम दिया कि वह बीरबल को शर्त के अनुसार शतरंज के चौसठ खानों में गेहूं के दाने रख कर कुल दाने चुका दें। बीरबल की इस शर्त को पूरी करने के दौरान अकबर बादशाह का खजांची थोड़ी ही देर में पसीने-पसीने हो गया। फिर वह अकबर बादशाह के सामने हाथ जोड़कर खड़ा हो गया और बोला जहांपनाह हम हुकूमत का सारा खजाना खाली कर लें तो भी बीरबल की इस शर्त को पूरी नहीं कर पाएंगे। अकबर याने सुल्तान-ए-हिन्द को खजांची की बात पर विश्वास नहीं हुआ लेकिन जब खुद उसने 64 खानों की जोड़ लगाई तो उसका मुंह खुला का खुला रह गया।
आप भी शायद मेरी बात से इत्तेफाक नहीं रख रहे हैं। चलिए मैं आपको समझाता हूं। बीरबल की शर्त के अनुसार जहां शतरंज के पहले खाने में गेहूं का केवल एक दाना, दूसरे खाने में दो दाने, तीसरे खाने में चार दाने ऐसे रखे गये थे वहीं शतरंज के सबसे आखिरी अकेले चौसठवें खाने में गेहूं के 9223372036854775808 दाने रखने पड़ रहे थे और एक से लगा कर चौसठ तक के सभी खानों में रखे जाने वाले गेहूं के कुल दानों की संख्या हो रही थी 18446744073709551615. जिनका कुल वजन होता है 1,19,90,00,00,000 मैट्रिक टन जो कि वर्ष 2019 के सम्पूर्ण विश्व के गेहूं के उत्पादन से 1645 गुणा अधिक है।
साथियों, वृद्धि दो तरह की होती है। पहली संख्यात्मक वृद्धि और दूसरी होती है गुणात्मक वृद्धि। यदि शतरंज के चौसठ खानों में क्रमशः 1, 2, 3…..62, 63, 64 कर के प्रत्येक खाने में उसकी संख्या के अनुसार गेहूं के दाने रखे जाते तो सभी 64 खानों में रखे गेहूं के कुल दानों का योग होता मात्र 2080 दाने और यह कहलाती है संख्यात्मक वृद्धि जबकि बीरबल के द्वारा बताई गई गणना कहलाती है गुणात्मक वृद्धि। जहां संख्यात्मक वृद्धि में 64 खानों का योग मात्र 2080 दाने होते हैं वहीं गुणात्मक वृद्धि में तो मात्र 11 खानों का योग ही 2047 दाने हो जाता है।
साथियों, मैं ना तो विज्ञान का विद्यार्थी रहा हूं और ना ही मैं डाक्टरी किया हुआ हूं। चिकित्सा विज्ञान मेरे लिए काला अक्षर भैंस बराबर है। मैं तो कामर्स का एक औसत विद्यार्थी रहा हूं लेकिन कोरोनावायरस की तेज वृद्धि और उसके विश्वव्यापी दुष्प्रभाव का आकलन करने के बाद मेरे मन में यह पोस्ट बनाने का विचार आया और मैंने यह पोस्ट बना डाली। कोरोनावायरस की वृद्धि को आप संख्यात्मक वृद्धि समझने की भूल कभी मत करना। हकीकत में कोरोनावायरस की वृद्धि एक गुणात्मक वृद्धि है इसलिए मेरी आप सभी से हाथ जोड़कर विनती है कि कोरोनावायरस को हल्के में ना लें। इस सम्बन्ध में आप जरा गम्भीर हो जाएं और मेहरबानी करके आगामी एक पखवाड़े तक अपने परिवार के साथ अपने घरों में ही बने रहें। इससे ना केवल आप खुद सुरक्षित रहेंगे अपितु इस महामारी को फैलने से रोकने की आप एक अहम कड़ी भी बनेंगे क्योंकि इस महामारी को फैलने से रोकने के लिए एक कड़ी को तोड़ना ज्यादा फायदेमंद है, ज्यादा जरूरी है।