किसी भी संकट को बहुत पहले ही भांपकर वक्त गंवाए बिना फैसले लेने में माहिर राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कोरोना से निपटने के मामले में भी अव्वल रहे हैं। गहलोत ने जिस तेजी से फैसले लिए व केंद्र सरकार से भी पहले उन पर अमल किया, उससे यह भी साबित हुआ है कि वे एक दूरदर्शिता संपन्न राजनेता हैं।
अशोक गहलोत को बधाई दीजिए। बधाई इसलिए कि कोरोना के मामले में राजस्थान सरकार के मुखिया के रूप में वे देश की सरकार से भी ज्यादा सजग व सक्रिय साबित हुए हैं। यही नहीं, कोरोना के खिलाफ बड़ी जंग की शुरूआत करने में भी वे दूसरे राज्यों के मुख्यमंत्रियों के मुकाबले अग्रणी साबित हुए हैं। इस अंतर्राष्ट्रीय संकट ने गहलोत की राजनीतिक प्रतिभा, निर्णय क्षमता और दूरदर्शिता की नई इबारत लिखी है। यह उनकी दूरदर्शिता का ही कमाल है कि राजस्थान में कोरोना जिस तेजी से पसर सकता था, उतनी तेजी पकड़ ही नहीं पाया। सच सुनने में अगर किसी को तकलीफ नहीं हो, तो यह भी जान लीजिए कि कोरोना संकट के मामले में अशोक गहलोत फैसले लेने के मामले में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी ज्यादा तेज साबित हुए हैं। क्योंकि इस संकट से बचने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर जो भी फैसले लिए गए, एहतियात के तौर पर हर फैसले को गहलोत राजस्थान में उससे पहले ही लागू कर चुके थे। इन्ही को देखकर कहा जा सकता है कि राजस्थान के मुख्यमंत्री अपनी प्रशासनिक क्षमताओं और राजनीतिक प्रखरता को प्रस्थापित करने में एक बार फिर सबसे आगे रहे हैं।
अकसर अपने व्यवहार से सीधे, सरल और सहज लगनेवाले गहलोत बहुत तगड़े फैसले भी तुरत फुरत ले लेते हैं, यह इन दिनों एक बार फिर दिखा, जब राष्ट्रीय स्तर पर तो लॉकडाउन का फैसला 22 मार्च के जनता कर्फ्यू के बाद हुआ। लेकिन इससे चार दिन पहले ही गहलोत सरकार ने राजस्थान में 18 मार्च को बड़ा फैसला लेते हुए प्रदेश भर में धारा 144 लागू करने के आदेश दे दिए थे। गहलोत कहते हैं कि जनता का जीवन बचाने के लिए यह जरूरी थी। इसके बाद 19 मार्च को सभी स्कूल, कॉलेज और यूनिवर्सिटी की परीक्षाएं स्थगित कर दी गई और होम आइसोलेशन में रखे गए नागरिकों पर सीसीटीवी कैमरों के जरिए कड़ी नजर रखने के आदेश दिए। फिर देखा कि लोग धारा 144 का पालन करने में ढिलाई बरत रहे हैं, तो सूबे की सरकार ने पूरी तरह कमर कस ली और रोडवेज सहित सार्वजनिक परिवहन के सभी वाहनों के परिचालन पर भी पाबंदी लगा दी। सरल स्वभावी गहलोत कानून की पालना के मामले में कितने सख्त है, यह राजस्थान की जनता ने सार्वजनिक रूप से 23 मार्च की रात को देखा, जब उन्होंने जनता से कहा कि लॉकडाउन तोड़ा तो कर्फ्यू लगाना पड़ेगा। गहलोत हर हाल में जनहित को केंद्र में रखकर कड़े फैसले लेते रहे हैं।
कांग्रेस की सबसे बड़ी नेता सोनिया गांधी ने इसी की तारीफ में 24 मार्च को गहलोत को पत्र लिखकर कोरोना के मामले में राजस्थान सरकार के प्रयासों की सराहना की। यह पत्र एक स्पष्ट राजनीतिक संदेश था, जिसके निहितार्थ गहलोत की गद्दी के मंसूबे पालनेवालों क अरमानों पर पानी फेरने के लिए काफी हैं। जन सरोकारों को आगे रखकर काम करनेवाले राजनेता के रूप में विख्यात गहलोत ने पूरे प्रशासनिक अमले को सक्रिय करते हुए सोशल मीडिया पर अफवाह फैलाने और धारा 144 का उल्लंघन करने के आरोप में 23 मार्च को 29 लोगों को गिरफ्तार करके ऐसे लोगों के न बख्शने का संदेश भी दिया। हर जिले में कंट्रोल रूम सेथापित किए और तंत्र को तेज करते हुए राजस्थान को महामारी से बचाने की दिशा में जोरदार जतन किए। बड़ी संख्या में जब प्रवासी मजदूर पलायन करके राजस्थान आने लगे, तो उन्होंने कईयों को बसें भंजकर घर पहुंचाया तो अटके हुओं को वहीं रखने और खाने पीने की व्यवस्था की वहां के मुख्यमंत्रियों से अपील की। राजस्थान में कोरोना के केंद्र बने भीलवाड़ा के बारे में तो गहलोत की त्वरित कारवाई से सब वाकिफ ही है, जहां हर हाल में कोरोना के फैलाव को रोकने के लिए युद्ध स्तर पर उन्होंने कई कड़े कदम उठाए। संकट की भयावहता को गहलोत मार्च आते आते ही भांप गए थे। तभी तो जिला अधिकारियों को सतर्क करते हुए शुरू में ही कोरोना के खिलाफ जनजागरण का बिगुल बजा दिया था। मुख्यमंत्री जानते हैं कि मेले राजस्थान की रंगभरी संस्कृति के संवाहक हैं, फिर भी उन्होंने मेलों और सार्वजनिक आयोजनों के प्रति सतर्कता बरतने के आदेश दिए। फिर 15 मार्च आते आते तो उन्होंने इन पर भी रोक की सलाह दे दी।
दरअसल, राजस्थान में गहलोत यह सब उस वक्त कर रहे थे, जब केद्र सरकार और बाकी मुख्यमंत्री बहुत ही धीमे कदमों से कोरोना के खिलाफ आगे बढ़ रहे थे। सरल गहलोत की सख्ती, सख्त गहलोत की निर्णय क्षमता, और क्षमतावान गहलोत की दूरदर्शिता का ही यह परिणाम है कि बाकी प्रदेशों के मुकाबले राजस्थान में कोरोना कुछ कब्जे में आता दिखाई दे रहा है। वरना, कोरोना कोई ऐसा वायरस थोड़े ही है, जो आसानी से अटका दिया जाए ! भारतीय राजनीति में अशोक गहलोत को दूरदर्शी राजनेता यूं ही नहीं माना जाता।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं)