केंद्र सरकार ने कृषि और गैर कृषि क्षेत्र की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को शुरू करने के लिए देशबंदी के दूसरे चरण में कई राहत कदमों की घोषणा की है। हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि जब तक उचित तरीके से घोषणाएं लागू किए जाने की निगरानी नहीं की जाती, यह ढील कागजी ही बनी रहेगी।
ग्रामीण अर्थव्यवस्था में रोजगार के सबसे बड़े स्रोत मनरेगा को लेकर केंद्र सरकार ने कड़ाई से शारीरिक दूरी का पालन करते हुए सभी काम शुरू करने की अनुमति दे दी है, लेकिन जल संरक्षण और सिंचाई कार्यों को प्राथमिकता होगी। इसे आगामी मॉनसून सत्र को देखते हुए अहम माना जा रहा है। इसके साथ ही केंद्र व राज्य सरकार की मौजूदा सिंचाई व जल संरक्षण योजनाओं को भी मनरेगा से जोड़ दिया गया है, जिससे ज्यादा रोजगार का सृजन हो सके क्योंकि पिछले कुछ सप्ताह में शहरों से बड़े पैमाने पर मजदूर गांवों में पलायन कर गए हैं।
इसके साथ ही एमएचए के दिशानिर्देशों में ग्रामीण इलाकों में औद्योगिक गतिविधियां शुरू करने की भी अनुमति दे दी गई है, जो नगर निगम की सीमा से बाहर हैं। साथ ही निर्माण गतिविधियों व ईंट बनाने के काम को भी अनुमति दे दी गई है। ग्रामीण सड़कें, भवन बनाने व अन्य गतिविधियों के साथ एमएसएमई को भी पुनरीक्षित छूट में शामिल किया गया है।
बहरहाल विशेषज्ञों का कहना है कि यह घोषणाएं इस पर निर्भर हैं कि राज्य सरकारें इस पर कैसे काम करती हैं क्योंकि मनरेगा जैसी योजनाओं मे राज्यों को ज्यादा पहल करनी होती है।
साथ ही जब कार्यस्थल ही बंद हैं और लोग अपने घरों से निकलने में डर रहे हैं तो यह देखना अभी बाकी है कि मनरेगा में कितने लोग काम करने आते हैं।
आईआईएम अहमदाबाद में अध्यापक और अर्थशास्त्री ऋतिका खेड़ा ने कहा, ‘जिनको बहुत मजबूरी होगी, वही काम करने निकलेंगे, क्योकि सामान्य स्थिति में कोई बाहर नहीं निकल रहा है।’
उन्होंने कहा कि बहुत से मामलों में यदि कार्यस्थल को खोल भी दिया गया है तो श्रमिकों को कई महीनों तक भुगतान नहीं मिल पाता है जिससे मनरेगा कार्य शुरू करने की अनुमति देने का पूरा प्रयोजन ही बेअसर हो जाता है। खेड़ा ने कहा, ‘यह भी देखा गया है कि वास्तव में कितने परिवारों को साल में 100 दिनों का रोजगार मिल पाता है क्योंकि औसत रोजगार 48-49 कार्यदिवसों के साथ बहुत ही नीचे है।’
उन्होंने कहा कि 2020-21 के लिए 209.27 रुपये की नई मनरेगा मजदूरी की दर से 2,000 रुपये हर महीने देने का वादा किया गया है जिसके लिए एक मजदूर को महीने में कम से कम 10 दिन काम मिलना चाहिए, जबकि 2020-21 में अब तक मनरेगा परिवार को मिले कार्यदिवस का औसत 7.7 दिन है जो पिछले कुछ वर्षों में सबसे कम औसतों में से एक है।
साल 2020-21 में योजना के लिए मंजूर किया गया श्रम बजट 280.76 करोड़ कार्यदिवस है जो 2019-20 से 1.44 फीसदी अधिक है, लेकिन बहुत से विशेषज्ञों का कहना है कि मंजूर किया गया श्रम बजट राज्यों की ओर से मांगी गई बजट का बहुत ही कम है। अप्रैल में अब तक मनरेगा के तहत महज करीब 0.18 करोड़ कार्यदिवसों का सृजन हुआ है।
साल 2020-21 के लिए केंद्र सरकार ने मनरेगा के तहत 60,000 करोड़ रुपये का बजट निर्धारित किया है जो 2019-20 के संशोधित अनुमान से करीब 13 फीसदी कम है।
यह भी देखना होगा कि नियमों के आसान किए जाने पर राज्?य किस तरह से ग्रामीण सड़क का निर्माण शुरू करते हैं। केंद्र सरकार ने 2020-21 में ग्रामीण सड़क कार्यक्रम के लिए 19,000 करोड़ रुपये का आवंटन किया है। इंदिरा गांधी विकास अनुसंधान संस्थान के निदेशक महेंद्र देव ने कहा, ‘ये सभी रियायतें अच्छी हैं और ग्रामीण गैर-कृषि अर्थव्यवस्था को बल देने में सहायक होनी चाहिए लेकिन देखना होगा कि वास्तव में जमीन पर कितना लागू हो पाता है।’
उन्होंने कहा कि श्रमिकों की उपलब्धता ग्रामीण क्षेत्र की एक बड़ी शिकायत रही है और मौजूदा रियायतें विशेष तौर पर केंद्र और राज्य सरकार की सिंचाई और जल संरक्षण योजनाओं के लिए मनरेगा श्रमिक के अंतरग्रर्थन पर लक्षित है।
नाबार्ड के 2016-17 के वित्तीय समावेशन सर्वेक्षण के मुताबिक ग्रामीण भारत में गैर-कृषि क्षेत्र ने कृषि परिवारों की आय में बड़ा योगदान दिया है।
साभार https://hindi.business-standard.com/ से