बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा विकसित दवा के प्रयोग में अनियमितता पर सुप्रीम कोर्ट ने फिर तीखा प्रहार किया है। कोर्ट ने सोमवार को 157 दवाओं के ट्रायल पर रोक लगा दी। साथ ही 5 दवाओं के ट्रायल के आंकड़ों को गहन जांच में ले लिया है। इन दवाओं को जरूरी प्रक्रिया अपनाए बगैर ही देश पर थोप दिया गया था।
कोर्ट ने सरकार से कहा कि पहले सभी प्रक्रिया का पालन करें और बताएं कि इन ट्रायल से देश और इसके नागरिकों को क्या फायदा होगा? स्वास्थ्य अधिकार मंच, इंदौर की जनहित याचिका पर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट मे नौंवी सुनवाई हुई। जस्टिस आरएम लोढ़ा और एमके सिंह की पीठ को बताया गया कि दिसंबर 2012 के पहले शुरू किए गए 157 ड्रग ट्रायल के लिए सिर्फ नई औषधि सलाहकार समिति की मंजूरी ली गई।
3 जनवरी 2013 को सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर गठित की गई सर्वोच्च और तकनीकी मामलों की समितियों की मंजूरी नहीं ली गई। इस पर कोर्ट ने आश्चर्य जताया। कोर्ट ने साफ कहा, दोनों समितियों के सामने 157 ट्रायल प्रस्तावों को रखा जाए और अनुमति के बाद ही इन्हें आगे बढ़ाया जाए। कोर्ट में 5 ऎसी दवाओं का मामला भी आया है, जिनकी मंजूरी वर्ष 2013 में दी गई। कोर्ट ने कहा है, इन दवाओं के जो भी आंकड़े सामने आ रहे हैं, उनकी गहन पड़ताल की जाए।
जवाब नहीं दे सकी सरकार : सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ एडवोकेट संजय पारिख ने कहा कि सरकार यह बताए कि इन ट्रायल्स से देश को क्या फायदा होगा? इन 162 ट्रायल में से कितने देश के बाहर पेटेंट किए गए हैं? नई दवाओं के विकास के नाम पर बहुराष्ट्रीय दवा कंपनियों को फायदा पहुंचाया जा रहा है। इस पर सरकार की ओर से उपस्थित अतिरिक्त सालिसिटर जनरल जवाब नहीं दे सके। तीन बिंदुओं को जांचेगी दोनों कमेटियां दवाओं से मरीजों को कितना जोखिम उठाना होगा और उन्हें क्या फायदा होगा? संबंधित रोगों में वर्तमान में मौजूद इलाज से नई दवा किन बिंदुओं पर अलग है? देश की स्वास्थ्य जरूरतों को इन दवाओं के ट्रायल से क्या फायदा होगा?