प्रिय पाठक,
कोरोना का संकट गहराता जा रहा है। लॉक डाउन अनिश्चितता को गाढ़ा कर रहा है। मज़दूर बेहाल हैं। किसानों की स्थिति बिगड़ रही है। देश की आर्थिक स्थिति को लेकर कई तरह की चिंताएँ व्यक्त की जा रही हैं। महामारी को सम्भालने के अनथक प्रयास के बीच सामान्य स्वास्थ्य सेवाएँ बाधित हैं। मृत्यु नींद और जागरण के बीच झूला झूल रही है। उम्मीद जगाती, हौसला देती कोई भी ख़बर इस दौरान पल-दो पल का सुकून है। समाज में चौतरफ़ा अवसाद का माहौल बन रहा है। इसी बीच सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट चर्चा में है। भारत को एक नई राजधानी देने की तैयारी शुरू हो चुकी है। लुटियन ज़ोन की शक्ल-ओ-सूरत बदलने के लिए खज़ाना खुल चुका है। नक़्शा तैयार है। सरकार का इरादा पक्का है। दिल्ली एक बार फिर कुछ और तरह से बसेगी। पहले भी उजड़ती और बसती रही है। पुरानी और नई के बीच खिंचती-फैलती रही है; उनके दायरे से बाहर पसरती रही है। इस बार एक याद को मिटाकर ख़ुद यादगार बन जाने का स्वप्न बुना गया है। धरोहर को कूड़ा कर नई विरासत बनाने की कवायद शुरू की गई है। नई-पुरानी से आगे क्या अब कोई सुनहली दिल्ली हमारे सामने आने वाली है! आज लॉक डाउन के 47वें दिन ‘पाठ-पुनःपाठ’ की तेईसवीं क़िस्त उसी सम्भावित दिल्ली की नींव के नाम!
आशा है, आपको नियमित पाठाहार मिल रहा है। नहीं मिलने की स्थिति में आप हमें 9810802875 नम्बर पर सूचना भेज दें। डाक पुनः भेज दी जाएगी। आपसे एक विनम्र अनुरोध है, इन पुस्तिकाओं को किसी को फॉरवर्ड न करें। आप जिन्हें ये पढ़ाना चाहती/चाहते हों, उन्हें राजकमल प्रकाशन समूह के व्हाट्सएप्प ब्रॉडकास्ट नम्बर +91 98108 02875 से जुड़ने के लिए प्रेरित करें।
अच्छे विचारों और रचनाओं के लिए राजकमल प्रकाशन समूह से सीधे निरंतर सम्पर्क में बने रहना आपके या किसी के लिए भी असुविधाजनक नहीं होगा। सिर्फ़ आप इस व्हाट्सएप्प नम्बर पर कॉल/वीडियो कॉल करने से बचें। इससे हमारी टीम को काम करने में बाधा पहुँचती है। यहाँ हम आपसे केवल मैसेज की अपेक्षा रखते हैं।
पढ़ना मनोरंजन भर नहीं है और न सिर्फ़ ज्ञानवर्द्धन की जरूरत है; बल्कि यह वैचारिक उलझनों, तमाम तरह की चिंताओं और आशंकाओं से पार पाने में सहायक एक मनोवैज्ञानिक उपचार की तरह भी है।
पाठाहार के चयन में हम हर आस्वाद और हर विधा की रचना को शामिल करने का भरसक प्रयास कर रहे हैं। इसे आप उदार भाव से अपनी पसंद-नापसंद को नए सिरे से समझने का अवसर मानें। हम भी इसे परस्पर जुड़ाव और संवाद के एक अवसर की तरह ही देख रहे हैं। हम पुस्तिकाओं में केवल उन्हीं रचनाओं को शामिल कर रहे हैं, जिनके इस्तेमाल का कॉपीराइट हमारे पास है। अपने पढ़ने से अलग इनका अन्यत्र किसी भी रूप में इस्तेमाल करने से पहले आप हमारे यहाँ सम्पर्क करें। बग़ैर लिखित अनुमति के इन रचनाओं को किसी संकलन/चयन/ऑडियो-वीडियो पाठ वगैरह में न लें।
आप अपना फ़ीडबैक सोशल मीडिया (फेसबुक, ट्वीटर, इंस्टाग्राम) पर राजकमल पेज को टैग करके दे सकती/सकते हैं। यहाँ भी भेज सकती/सकते हैं। आपकी सम्मति हमारे लिए नैतिक बल है, पथप्रदर्शक है।
शुभकामनाओं के साथ,
सम्पादकीय निदेशक
राजकमल प्रकाशन समूह