राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने अपनी आमदनी और राष्ट्रपति भवन के खर्चों में कटौती की जो पहले की है, वह अत्यंत सराहनीय है। वे अपने वेतन में एक साल तक 30 प्रतिशत कटौती करवाते रहेंगे और राष्ट्रपति भवन के खर्चों में कम से कम 20 प्रतिशत की कटौती करेंगे। वे करोड़ों रु. की लागतवाली नई कार नहीं खरीदेंगे। पुरानी कार से काम धकाएंगे। वे देश और विदेश की यात्राएं भी घटाएंगे। राष्ट्रपति भवन में सरकारी खर्चे पर होनेवाली आलीशान दावतों में कटौती की जाएगी। दफ्तर में होनेवाले छोटे-मोटे खर्चों को कम करने के लिए नई तकनीकों का सहारा लिया जाएगा। रामनाथजी यह सब क्यों कर रहे हैं ? क्योंकि उनके दिल में दर्द है। मेरा और उनका लगभग 50 साल पुराना परिचय है। वे गांव के रहनेवाले हैं।
उन्होंने गरीबी की पीड़ा खुद भुगती है। जब वे टीवी चैनलों पर गर्भवती महिलाओं को 200 मील तक पैदल चलते हुए, बैल की जगह गाड़ी में खुद यात्री को जुते हुए, छह माह के बच्चे को दूध के अभाव में ब्रेड का टुकड़ा मुंह दबाए हुए और रेल-पटरी पर मजदूरों को कटते हुए देखते होंगे तो क्या उनकी रुह कांप नहीं जाती होगी? जब हमारे जैसे खाए-पीए-धाए लोगों की आंखें आंसुओं से भर जाती हैं तो रामनाथ कोविंद तो राष्ट्रपति है। राष्ट्र की इस दशा पर उनका विहल हो जाना स्वाभाविक है लेकिन जरा सोचें कि हमारे नेतागण क्या कर रहे हैं, सब अपने घरों में घुसे बैठे हैं। भूखों को भोजन करवाने की हिम्मत तक उनकी नहीं है। धिक्कार है, उनके जन-प्रतिनिधि होने को। सांसदों की तनखा जरुर 30 प्रतिशत कटेगी लेकिन इन नेताओं की शत प्रतिशत तनखा और भत्ते भी कट जाएं तो उनके ठाट-बाट पर कोई कमी नहीं आनेवाली है।
उनके पास लाखों-करोड़ों रु. का अंबार लगा होता है। उनके दृश्य और अदृश्यों खर्चों का हिसाब लगाया जाए तो वह करोड़ों नहीं, अरबों में जाएगा। क्या आपने सुना है कि किस पार्टी के कितने नेताओं ने अभी तक 10-20 लाख रु. भी गरीबों के लिए खर्च किए? यदि हमारे प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और मंत्रिगण भी अपने दौरों और भत्तों पर अंकुश लगा दें तो हर साल देश के अरबों रु. की बचत हो सकती है। राजधानी के बड़े-बड़े बंगलों और भवनों को खाली करके ये कई देशों के नेताओं की तरह किराये के फ्लेटों में रहें तो सरकार को करोड़ों रु. की आमदनी हर माह हो सकती है। क्या मालूम इस देश में कभी ऐसे राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री भी हो सकते हैं, जो इस मामले में भी अपना उदाहरण खुद पेश कर दें।
साभार – www.drvaidik.in