राजनांदगांव। पुलिस प्रशिक्षण विद्यालय द्वारा डॉ. चन्द्रकुमार जैन का प्रासंगिक अतिथि व्याख्यान आयोजित किया गया। कोरोना वायरस की विकट चुनौती और लॉकडाउन के बीच पुलिस की विशिष्ट भूमिका पर डॉ. जैन ने महिला पुलिस प्रशिक्षणार्थियों को 50 मिनट के व्याख्यान में देश भक्ति और जन सेवा की नयी छवि और नयी शक्ति का एहसास करवाया।
व्याख्यान के दौरान डॉ. जैन ने कहा कि कोरोना काल में देश की आतंरिक सुरक्षा के लिए काम करने वाली पुलिस को जन जीवन के अंतर्जगत तक पहुंचकर मानवीय कार्य करने का अनोखा अवसर मिला है। पुलिस की नयी सकारात्मक इमेज उभरी है। सर्वेक्षण के अनुसार लोगों का विश्वास पुलिस पर तीन गुना तक बढ़ गया है। कोरोना वारियर के रूप में पुलिस का नया चेहरा सामने आया है। पुलिस ड्यूटी के अतिरिक्त भी एक व्यक्ति के रूप में भी उनके भीतर मानवता का झरना जैसे फूट सा पड़ा और लोग उनके हौसले और चकित कर देने वाली सेवाभावना को देखकर उन पर फूल बरसाने लगे।
डॉ. जैन ने स्पष्ट किया कि पुलिस ने मौजूदा दौर में पीड़ितों के आँखों में जाले और पांवों के छाले से दिल का रिश्ता जोड़ा। उनके आंसुओं को आदर दिया। उनकी चिंता की। पुलिस जनता के बीच पारिवारिक सम्बन्ध जैसी कड़ी जुड़ गयी। पुलिस ने एक तरफ कड़ाई तो दूसरी तरफ कोरोना खिलाफ मानता की लड़ाई की नायाब मिसाल पेश कर दिखायी। दूसरी तरफ शरारती तत्वों, अफवाह फ़ैलाने वालों और मज़बूरी के समय बाज़ार में बेजा फायदा उठाने से बाज़ नहीं आने वालों पर लगाम कसने की भूमिका भी वह निभा रही है। इलाकों की सीलिंग और कर्फ्यू के दौरान उसका काम ज्यादा संजीदा देखा गया। बाज़ार खुलने पर ट्रैफिक नियंत्रण और सोशल व फिजिकल डिस्टेंस की ज़रुरत को अमल में लाने में भी वह पीछे नहीं है।
डॉ. जैन ने कहा कि अब तक पुलिस को तीन चरणों में खुद को साबित करना पड़ा है। सबसे पहले लोगों को घरों में महफूज़ रखने में मदद। उसके बाद ज़रूरतमंदों तक हर तरह की सहायता पहुँचाना और मरीज़ों की मेडिकल प्रोटोकाल के अनुरूप देखभाल से लेकर आइसोलेशन और क़्वोरेन्टाइन में रखे गए लोगों के मनोबल को बनाये रखने की व्यवस्था की कमान संभालना और तीसरे दौर में तालाबंदी में कमोबेश छूट के दौरान कानून और व्यवस्था के साथ प्रवासी मज़दूरों के रेले को संभालना। प्रशिक्षणार्थियों को समझाते हुए और सलीके से हौसला बढ़ाते हुए हुए डॉ. जैन ने कहा कि ये कोई मामूली कार्य नहीं है लेकिन अपना जीवन और अपनी सुरक्षा को भी ताक पर रखकर पुलिस ने इस संभव को संभव कर दिखाया है। इस दौरान पुलिस भाईचारगी का चेहरे के साथ सामने आयी। जगह-जगह उनका सम्मान किया जाने लगा। सामाजिक संस्थाएं अंगवस्त्र भेंट कर, फूल मालाएं पहनाकर पुलिस का स्वागत करती देखी गयीं। डाक्टर, नर्स और अन्य स्वास्थ्य कर्मी योद्धाओं के साथ पुलिस सबसे आगे की पंक्ति पर तैनात है तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है। प्रसिद्ध पंक्तियों को अपने अंदाज में सुनाते हुए डॉ. जैन ने कहा कि मैं खाकी हूँ । दिन हूँ, रात हूँ और सांझ वाली पाती हूँ। मैं खाकी हूँ।
डॉ. जैन ने कहा कि लॉकडाउन में ऐसे पुलिस कर्मी भी देखे गए जो बुजुर्गों की व्यक्तिगत मदद कर रहे हैं। उदाहरण सहित डॉ. जैन ने बताया कि कई महिला पुलिस कर्मचारियों और अधिकारियों ने खुद खाना और मास्क भी बनाकर लोगों को बांटा। अक्सर दमनकारी भूमिका के लिए आरोपित पुलिस को लोगों ने उद्धारक की अनोखी भूमिका में देखा। पद और रौबदाब को किनारे कर कोरोना काल में हाशिये में छटपटा रही ज़िंदगियों को पुलिस का बड़ा सहारा मिल गया। पुलिस अकादमी में प्रशिक्षण का अंदाज़ बदल गया। डॉ. जैन ने बताया कि उत्तरप्रदेश में मुरादाबाद स्थित डॉ. भीमराव अम्बेडकर पुलिस प्रशिक्षण अकादमी सहित कई राज्यों में महामारी नियंत्रण और आपदा प्रबंधन के कोर्स शुरू कर दिए गए। छत्तीसगढ़ पुलिस ने भी कोरोना नियंत्रण में अभूतपूर्व रोल अदा किया।
डॉ. जैन ने कहा राजनांदगांव में पुलिस रोजनामचा डिजिटल तैयार करना, पुलिस पम्प में हेलमेट पहनकर पहुँचने पर ही पेट्रोल देना, कोरोना जागरूकता के नारों और गीतों से प्रचार-प्रसार कर लोगों को लगातार जगाना जैसा शानदार कदम उठाया गया। डॉ. जैन ने कहा कि पुलिस ने साबित कर दिखाया कि वह कोरोना के साथ और कोरोना के बाद भी जनता के साथ है। डॉ. जैन ने सुझाव दिया इतनी जांबाज़ी और इंसानियत से मोर्चे पर डटे पुलिस अमले को हर संभव प्रोत्साहन के साथ-साथ पूरी सुरक्षा और काम के दौरान ज्यादा राहत व पूरी सुरक्षा किट भी मिलनी चाहिए। आखिर अपने शरीर के साथ समाज को बचाने का दोहरा काम उन्हें करना है।