(९ जून जन्म दिवस पर विशेष )
शहीद हरिकिशन जी का नाम भारतीयों के उन नामों में से एक है जिन्होंने देश की स्वाधीनता के लिए संघर्ष करते हुए अपने प्राणों का उत्सर्ग कर दिया| आपके पिता निडर, पराक्रमी,उच्च संस्कारों वाले समाज सेवी तथा देशभक्त थे| पिता के इन संस्कारों के कारण ही आपने बलिदान का मार्ग पकड़ा| बलिदानी हरिकिशन जी का जन्म उत्तर पश्चिम सीमा प्रांत की नोशहरा छावनी से कुछ ही दूर स्थित गाँव घालेढेर में दिनांक ९ जून १९०८ ईस्वी को हुआ| आपके पिता जी का नाम लाला गुरदासमल जी तलवाड तथा माता क नाम मथुरादेवी था| पिताजी स्वभाव से ही निडर,पराक्रमी, उत्तम संस्कारों से युक्त समाज की सेवा करने वाले तथा देशभक्त थे| पिता जी ने अपना पूरा परिश्रम अपने बालक में भी यह सब गुण भरने के लिए लगा दिया| इस सब का ही यह परिणाम हुआ कि नन्हे बालक में देश, जाति व धर्म के लिए कुछ कर गुजरने के लक्षण बालपन में ही दिखाई देने लगे |
हरिकिशन जी नित्य देखते थे कि विदेशी लोग भारतीयों को घृणा की दृष्टि से देखते थे तथा नित्य गन्दी-गन्दी गालियाँ भी दिया करते थे| दासता की बेड़ियों ने भी उनके मन पर दुष्प्रभाव डाला| इस सब के कारण वह सदा स्वयं को घायल सा अनुभव करते थे| यह सब वही कारण थे जो उन्हें सदा झंझोडते रहते थे तथा वह अपने भारत देश को स्वाधीन कराने तथा अंग्रेजों को पाठ पढ़ाने के लिए सदा ही किसी अवसर की खोज में रहते थे| उन्हें शीघ्र ही ऐसा एक अवसर भी मिल गया| दिसंबर सन् १९३० ईस्वी को सर्वपल्ली डा. राधाकृष्णन् जी पंजाब विश्वविद्यालय लाहौर के दीक्षांत समारोह में व्याख्यान पढने के लिए गए| स्वाभाविक रूप से इस अवसर पर उनके साथ पंजाब के तत्कालीन अंग्रेज गवर्नर सर गोफारे डी मोंट मोरेंसी भी थे| इस दीक्षांत समारोह में प्रवेश बहुत ही सीमित रखा गया था| प्रवेश के लिए प्रवेश करने वालों की गहन तलाशी भी ली जा रही थी| एसी भयंकर अवस्था में भी यह वीर हरिकिशन जी की विचित्र सूझ का ही परिणाम था कि वह अपनी पिस्तौल सहित किसी प्रकार इस कार्यक्रम में प्रवेश पाने में सफल रहे|
वीर हरिकिशन जी अपने क्रांतिकारी दल के सदस्यों में अचूक निशाना लगाने वाले के रूप में प्रसिद्ध थे| इस कारण गवर्नर को निशाना बनाने की योजना उनहोंने बना रखी थी| किन्तु आज के इस अवसर पर गवर्नर के साथ दिखाई दे रहे डा. राधाकृष्णन् जी को बचाना भी आवश्यक था| अत: व्याख्यान की समाप्ति पर ज्यों ही डॉ.राधाकृष्णन् के साथ गवर्नर भी बाहर निकलने लगे तभी निकास द्वार के पास खड़े हमारे धीर वीर हरिकिशन जी ने गवर्नर पर धांय-धांय गोलियों की बौछाड़ लगा दी किन्तु दुर्भाग्यवश डा. राधाकिशन को बचाने के प्रयास में गवर्नर भी बाच गए और कई अन्य व्यक्ति घायल हो गए| इस गोलीबारी से एक व्यक्ति की मृत्यु भी हो गई| इतना सब होते हुए भी दुबकी हुई पुलिस के सामने हमारे हरिकिशन जी छाती तान कर खड़े रहे| अंत में होश मेन आने के बाद पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया| गिरफ्तारी के बाद उन्हें कठोर यातनाओं में से निकलना पड़ा |
पुलिस यह चाहती थी कि इन यातनाओं से दु:खी होकर वह अपनी योजना और अपने साथियों का पता बता देवें किन्तु हरिकिशन जी तो पूर्ण रूप से धीर, वीर, दृढ थे | उनसे किसी प्रकार का भी कोई भेद निकालना साधारण बात न थी| इस का ही परिणाम था कि असीमित अत्याचार देने के पश्चात् भी अत्याचारी उनसे कुछ भी उगलवा न पाए| हरिकिशन जी के पिताजी ने अपने पुत्र को बचाने के लिए केस लड़ा| हरिकिशन जी अभी छोटी आयु के ही थे| दूसरी और पुलिस अपनी क्रूरता की सब सीमाएं लांघते हुए पूरे परिवार को भी प्रतिदिन बुरी तरह से परेशान कर रही थी किन्तु इस सब की पिता तो क्या पूरे परिवार में से भी किसी को कोई चिंता नहीं थी| अंत में सब प्रयास विफल हुए तथा वीर हरिकिशन जी को फांसी के दंड स्वरूप पुरस्कार सुना दिया गया, ऐसा पुरस्कार जिसे पाने के लिए देश के दीवाने सदा प्रतीक्षा किया करते हैं|
हम सब जानते हैं कि हरिकिशन जी धीर, वीर और कर्मवीर तो थे ही , दंड स्वरूप फांसी का उपहार पाकर झूम उठे| वह इस बात से कुछ दुखी भी थे कि देश के लिए जो अभिलाषा उन्होंने अपने ह्रदय में संजोयी थी, वह पूर्ण नहीं हो सकी| इस अभिलाषा की पूर्ति के लिए उन्हें भारत ही में एक जन्म और लेने की आवश्यकता है और जब तक इस जन्म के शरीर को नहीं छोड़ेंगे तब तक नया जन्म मिल नहीं सकता| इस कारण वह बहुत जल्द ही इस शरीर को छोड़ कर नया शरीर लेना चाहते थे| उनकी इस अभिलाषा की पूर्ति का एक मात्र साधन तत्काल फांसी ही था, जिसकी वः नित्य प्रतिक्षा करने लगे| कुछ ही दिनों में यह अवसर भी आ गया| मियांवाली ( वर्तमान पाकिस्तान ) जेल में एक दिन प्रात:काल भारत माता की जय के नारों से जेल गूंज उठी| इस जेल में बंद सबके सब स्वाधीनता सेनानी समझ गए कि देश का कोई दीवाना प्रसन्नता से देश की स्वाधीनता के लिए अपने प्राणोत्सर्ग करने जा रहा है| अत: जेल की उन सब बैरकों से भी प्रतिध्वनी में क्रान्ति जिंदाबाद और भारत माता की जय के जयघोष सुनाई देने लगे| इस प्रकार जेल में बंद देश के दीवानों ने भी अपने एक साथी को सदा -सदा के लिए विदाई देते हुए इतिहास रच दिया|
अंग्रेज सरकार तो निष्ठुर सरकार के रूप में जानी जाती थी| नियमानुसार फांसी के पश्चात् शहीद का पार्थिव शरीर उसके परिजनों को सौंप देना चाहिए था किन्तु निष्ठुर सरकार ने यह भी नहीं होने दिया| परिवार को अपने परिजन का अंतिम संस्कार करने का अधिकार भी न दिया| यहां तक कि उन्हें अंतिम संस्कार के पश्चात् चिता की भस्म तक भी नहीं दी गई किन्तु इसे सौभाग्य ही कहना चाहिए कि उनका दाह-संस्कार ठीक उस सथान पर हुआ, जिस स्थान पर धर्म पर बलिदान होने वाले शहीद राजपाल जी का दाह संस्कार हुआ था| शहीद हरिकिशन जी की माता मथुरादेवी अपने पुत्र की देश-भक्ति से भरपूर गाथाएं सुन कर फूली न समाती थी तथा कहा करती थी कि एक तो क्या मेरे सौ पुत्र होते तो मैं उन्हें भी देश के लिए कुर्बान करते हुए कभी पीछे न देखती | धन्य है ऐसी माता और धन्य है ऐसा परिवार जो देश के लिए न्योछावर होने के लिए सदा तैयार मिलता था | मातृभूमि को इस प्रकार के पुत्रों पर सदा गर्व रहेगा|
डॉ.अशोक आर्य
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