मूर्ति पूजा भारत में कोई नई बात नहीं है, यहां पर कई करोड़ देवी-देवताओं को मूर्ति बनाकर पूजा जाता है। इन्सानों को भगवान बना दिया जाता है यहां तक कि मूर्ति विरोधी लोगों को मूर्ती बनाकर पूजा जाने लगता है। जैसा कि बुद्ध को भगवान बना दिया गया उनकी पूजा होने लगी यहां तक झारखंड की कुछ जगहों पर तो बुद्ध की मूर्ति पर महिलाएं सिन्दुर तक लगा देती हैं। बुद्ध मूर्ति पूजा विरोधी थे लेकिन आज के समय बुद्ध खुद मर्ति के रूप में विरजमान हैं, इसी तरह भगत सिंह जो कि खुद को नास्तिक मानते थे उसको भी हिन्दुत्वा बिग्रेड व शासक वर्ग अपनाने की कोशिश कर रहा है। भगत सिंह ने जिस तरह के शोषणकारी पार्लियामेंट का विरोध किया था उसी तरह के शोषणकारी पार्लियामेंट में उनकी मूर्ति स्थापित कर दी गई। जिस अयोध्या में कई मन्दिर व मूर्तियों की पूजा करने वाला कोई नहीं है उसी अयोध्या में राम मंदिर बनाने के लिए दो सम्प्रदायों के अन्दर इतना विद्वेष भर दिया गया कि कितने लोगों का खून बहा है, बह रहा और बहेगा; कहा नहीं जा सकता।
आजकल भारत में मूर्ति निर्माण का कार्यक्रम चला हुआ है, देश को शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार की जरूरत नहीं है मूर्ति की जरूरत है। गुजरात में ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ 182 मीटर (597 फीट) ऊंची प्रतिमा (दुनिया के सबसे बड़ी प्रतिमा), बिहार के चम्पारण जिले के जानकी नगर में राम की 405 फीट ऊंची मूर्ति (दुनिया का सबसे ऊंचा हिन्दु मन्दिर), उ.प्र. के कुशीनगर में 268 एकड़ जमीन पर 220 फीट ऊंची कांस्य की बुद्ध प्रतिमा बनायी जा रही है। यानि आजकल भारत में सब कुछ ‘ऊंचा’ करने का संकल्प ले लिया है। जैसा कि मोदी ने 31 अक्टूबर, 2013 को नर्मदा तट पर ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ (सरदार बल्लभ भाई पटेल की प्रतिमा) का शिलान्यास करते हुए कहा था कि भारत को श्रेष्ठ बनाने के लिए एकता की शक्ति से जोड़ने का यह अभियान एक नई ऐतिहासिक घटना है।
वे अपने भाषणों में कहते रहे हैं कि दुनिया के सबसे ऊंची ‘स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी’ 93 मीटर (जो कि ऐतिहासिक गलती भी है स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी से ऊंची दो प्रतिमा हैं- 1. स्प्रिंग टेम्पल बुद्धा 153 मीटर, 2. जापान में बुद्ध की प्रतिमा 120 मीटर) से ऊंची लौह पुरुष की ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ को पूरी दुनिया की ऊंची प्रतिमा होगी। क्या हम ‘स्टैचू ऑफ यूनिटी’ बनाकर अमेरिका (स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी 93 मीटर) से दोगुना ताकतवर हो जाने वाले हैं (जो कि मंत्रियों के कपड़े तक खुलवा कर चेकिंग करता है); बेल्जीयम स्थित 39.6 मीटर उंची ‘क्राइस्ट द रीडीमर’ से हम पांच गुना (बेल्जियम की जनसंख्या करोड़ में है और भारत को कर्ज/सहायता देता है) या रूस के ‘द मदरलैंड काल्स’ जो कि 85 मीटर ऊंचा है उससे हम दोगुना ताकतवर होने वाले हैं (जिस के ऊपर भारत रक्षा के लिए निर्भर रहता है)?
इन मूर्तियों को लेकर कहीं भी ऐसा शोर सुनाई नहीं दे रहा है जैसा कि मायावती के समय सुनाई दे रहा था कि देश की जनता को पॉर्क, मूर्तियों की जगह शिक्षा, स्वास्थ्य व रोटी की जरूरत है। इस बार शोर इस बात को लेकर हो रहा है कि पटेल की वारिस कांग्रेस है या भाजपा? भाजपा का दावा है कि ‘लौह पुरुष’ पटेल ने 565 राजवारों को भारत में मिलाया था जो कि भाजपा के वृहद भारत के सपनों से मिलता है; दूसरी तरफ कांग्रेस का कहना है कि ‘लौह पुरुष’ कांग्रेस में थे और भाजपा के पितामह संगठन आरएसएस को सांप्रदायिक बता कर प्रतिबंधित किया था। केन्द्रीय मंत्री वेनी प्रसाद वर्मा ने तो यहां तक कह दिया कि ‘‘लोहा मंत्री हैं वेनी प्रसाद वर्मा और लोहा बन रहे हैं मोदी। सरदार पटेल के वशंज हैं वेनी प्रसाद वर्मा और सरदार पटेल की मूर्ति बनवा रहे हैं मोदी। यह वोट के लिए नहीं चलेगा।’’ प्रतिमा की पूरी लड़ाई वारिस बनने की लड़ाई में बदल गई है।
इन मूर्तियों के बहाने लोगों से सच्चाईयों को छुपाया जा रहा है, जमीनें हड़पी जा रही है व टूरिज्म को बढ़ावा दिया जा रहा है। गुजरात सरकार के दस वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी महत्वाकांक्षी योजना ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ की घोषणा की थी। ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ के तहत सरदार बल्लभ भाई पटेल की 182 मीटर उंची मूर्ती नर्मदा जिले मंे नर्मदा नदी के अंदर टापू क्षेत्र में स्थापित की जायेगी। इसके लिए अलग से एक कोष निर्धारित किया गया है जो दुनिया भर में मीडिया के जरिए इस प्रतिमा का प्रचार करेगी। इस प्रतिमा पर सरकार 2500 करोड़ रु. खर्च करने वाली है।
यहां पहले से ही नर्मदा बांध (122 मीटर ऊंचा) द्वारा लाखों लोगों का विस्थापन हो चुका है जो आज तक विस्थापन की लड़ाई लड़ रहे हैं। मेधा पाटेकर ने इसे बांध की ऊंचाई बढ़ाने की साजिश बताया है उनका कहना है कि लगातार बढ़ती बिजली के भूख ने इस बांध को बंटवारे का बांध बना दिया है। ऊंची प्रतिमा के बहाने बांध की ऊंचाई भी 122 मीटर से बढ़ाकर 138 मीटर ले जाने की है जिससे कि पानी की सप्लाई बढ़ायी जाये और बिजली का उत्पादन भी। इसके कारण एक बार फिर बड़ी संख्या में आदिवासी अपने घरों से उजाड़े जायेंगे।
‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ को बनाने का ठेका अमेरिकी कम्पनी ‘टर्नर कन्स्ट्रकशन’ को दिया गया है। यह कम्पनी आस्ट्रेलिया के मीनहाटर््ज और अमेरिका के माइकल ग्रेव्स एण्ड एसोसिएट्स के साथ मिलकर पटेल की आकृतिवाली 60 मंजिला इमारत बनायेगी। अमेरिका के टर्नर कन्स्ट्रकशन व माइकल ग्रेव्स एण्ड एसोसिएट्स भवन निर्माण की कम्पनी है जो पूरी दुनिया में बड़े-बड़े भवनों का ठेका लेती है। एफिल टॉवर के तर्ज पर इस मूर्ति के भीतर 500 फुट पर एक डेक का निर्माण किया जायेगा जिस पर 200 लोग एक साथ चढ़कर 12 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले सरदार सरोवर जलाशय को देख कर आंखों को ठंडक पहुंचा सकते हैं जिसने लाखों लोगों को उजड़ने पर मजबूर किया है।
तीन वर्ष के अंदर यहां होटल, पार्क, रेस्टोरेण्ट, अंडरवाटर अम्यूजमेन्ट पार्क, थीम, पब बनाये जायेंगे जिससे कि पर्यटकों को लुभाया जा सके। मोदी की इस ड्रीम योजना की और स्पष्टता उनके 15 दिसम्बर, 2013 को उत्तराखण्ड में दिये गए भाषण से होती है वे कहते हैं कि ‘‘प्रदेश की आर्थिक हालत को सुधारने के लिए टूरिज्म को बढ़ावा देना होगा। पूरे विश्व में टूरिज्म उद्योग सबसे तेज गति से बढ़ने वाला उद्योग में शामिल है। टूरिज्म में 3 खरब डॉलर व्यापार की संभावना छिपी है। ईश्वर के नाम पर उत्तराखंड लाखों लोगों को आकर्षित कर सकता है, ‘टेरिज्म डिवाइड्स, टूरिज्म युनाइट्स’।’’ मोदी टूरिज्म उद्योग को बढ़ावा देकर देश को आगे ले जाना चाहते हैं। गोवा के लोगों की दुर्दशा किसी से छिपी बात नहीं है जो कि एक टूरिज्म स्थल के रूप में मशहूर है, यहां पर लाखों विदेशी सैलानी प्रति वर्ष आते हैं। वहां की स्थानीय जनता को अपनी पेट की आग को बुझाने के लिए महिलाओं, लड़कियों को नंगा होकर नाचना पड़ता है, शैलानियों के नंगे बदन को मसाज करना होता है।
उत्तराखण्ड की केदार घाटी में ईश्वर के नाम पर जून, 2013 में मानव निर्मित तबाही छिपी हुई बात नहीं है जिसमें बीसियों हजार लोग मारे गये। एक साथ गांव अनाथ/विधवा हो गये। उस समय मोदी जी भी उत्तराखण्ड गये थे। क्या वह ऐसा ही विकास चाहते हैं जहां पेट की आग बुझाने के लिए महिलाओं और बच्चियों को नंगा नाचना पड़े, गांव के गांव, परिवार के परिवार एक साथ मारे जायें लाशें सड़ती रहें बच्चे अनाथ हो जाएं। ऐसा ही टूरिज्म और ऐसा ही विकास उनको चाहिए?
‘रन फॉर यूनिटी’
सरदार बल्लब भाई पटेल की 63 वीं पुण्यतिथि पर 15 दिसम्बर को ‘रन फॉर यूनिटी’ का अयोजन 565 जगहों पर किया गया। ‘रन फॉर यूनिटी’ का अयोजन 565 जगह पर इसलिए किया गया कि पटेल ने 565 रियासतों को भारत में मिलाया था। इस आयोजन को बड़ोदरा जिले में हरी झंडी दिखाते हुए नरेन्द्र मोदी ने कहा कि ‘‘सरदार पटेल ने राष्ट्र को एकजुट करने में अपना जीवन समर्पित कर दिया। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम से आम लोगों को जोड़ा देश को औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्ति दिलाने का प्रयास किया। देश को बांटने की मानसिकता को बदला और देश को एकजुट किया।’’ हम मोदी जी से पूछना चाहते हैं कि मोदी जी इसमें से किन पद्चिनहों को अपनाया है? आप तो औपनिवेशिक मानसिकता को अपना रहे हैं और उसे बढ़ावा दे रहे हैं। आप ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ को बनाने के लिए जिस ‘टर्नर कन्सट्रक्शन’ कम्पनी को ठेका दिया है जो दुनिया के जालिम देश अमेरिका की कम्पनी है जिस देश का नकल करके आप स्टैच्यू बनाकर ‘श्रेष्ठ’ होना चाहते हैं।
आप पटेल के आम लोगों की जोड़ने की बात कर रहे हैं, ‘साहब’ आप ध्यान दीजिये आप तो अपने ही लोगों को उजाड़ रहे हैं, उनको अपनी जमीन, अपनी संस्कृति से बेदखल कर रहे हैं। आप के ‘सिरमौर’ बनने के डर से एक वर्ग, एक विशेष समुदाय भयभीत है। आप जिस उद्योग को बढ़ावा देने की बात कर रहे हैं उस उद्योग में आप की संस्कृति का क्या होगा, अपने देश की मां-बहनों के साथ क्या होगा वो आपने कभी सोचा है?
भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने दिल्ली में ‘रन फॉर यूनिटी’ के समय कहा कि अगर जनता ने मोदी को 10 वर्ष के लिए प्रधानमंत्री बनाया तो भारत महाशक्ति बन जायेगा। सिंह जी क्या मोदी के 10 वर्ष के शासन काल में गुजरात भारत का अग्रणी राज्य बन गया है? अगर गुजरात अग्रणी राज्य बन गया होता तो पश्चिम गुजरात की रहने वाली सोनल को दो बार पैसे के लिए सरोगेसी (किराये का कोख) से बच्चा पैदा नहीं करने पड़ते (बीबीसी हिन्दी.कॉम, 29 जुलाई 2011)। अग्रणी राज्य होता तो गुजरात के जिस नर्मदा जिले में जनता का 2500 करोड़ रु. खर्च करके स्टैच्यू बनाया जा रहा है उसी जिले की 5,90,297 जनसंख्या पर हायर सेकेंड्री स्कूल केवल 27 हैं अस्पताल तो केवल दो ही हैं अगर इन पैसों को उस जिला के लोगों पर ही खर्च कर दिया जाता तो सचमुच शिक्षा, स्वास्थ्य के मामले में दुनिया के बेहतरीन जगहों में गिना जा सकता था। लेकिन सिंह जी आप लोगों को तो नाम चाहिये, इससे मुझे 1969 में आई फिल्म ‘एक फूल दो माली’ के गाने याद आते हैं- ‘‘तूझे सूरज कहूं या चंदा, दीप कहूं या तारा मेरा नाम करेगा रोशन जग में मेरा राज दुलारा’’।
2500 करोड़ रु. से भारत में 100-100 करोड़ रु. लगाकर 25 अस्पताल बना दिये जाते तो हर साल लाखों लोगों की जिन्दगी बचाई जा सकती थी या इतने पैसे लगाकर स्कूल, कॉलेज खोले जाते तो शिक्षा के स्तर में सुधार होता, कई डाक्टर, इंजीनियर पैदा किये जा सकते थे। इसमें बल्ली सिंह चीमा के वो गाने सटीक बैठते हैं कि ‘‘कोठियों से मुल्क की मय्यार को मत आंकिये, असली हिन्दुस्तान तो फुटपाथ पर आबाद है….।’’
भारत में मूर्तियों को लेकर एक खास तरह की राजनीति हो रही है। मूर्तियों में जनता को उलझा कर और झूठी श्रेष्ठता दिखाकर टूरिज्म को बढ़ावा दिया जा रहा है। अब हम तो सब कुछ ॅज्व् की शर्त्तों पर अपने देश को लूटने की इजाजत देकर बाहर से मंगा सकते हैं। अब उद्योगों की जगह मूर्तियों की स्थापना की जा रही है और उसके आस पास रेस्टोरेन्ट, होटल, पब, डिस्को इत्यादि का निर्माण किया जा रहा है। टूरिज्म से विदेशी मुद्रा आयेगी उससेे उपभोक्तावादी-साम्राजयवादी, संस्कृति को और बढ़ावा मिलेगा। देश में बलात्कार जैसी घटनाएं बढ़ेंगी जिस पर हम रोज हाय-तौबा मचा रहे हैं। इससे आम लोगों की हालत और बदतर होगी, स्थानीय लोगों की जमीनी छीनी जायेगी, उनकी रोजी-रोटी खत्म कर दिये जायेगा, उनके छोटे व्यापारियों के जगह धानाढ्य लोगों का व्यापार आ जायेगा और हम-आप उनके पास काम करने को मजबूर होंगे। महिलाओं-लड़कियों को वेश्यावृति के धंधे में धकेला जायेगा। ‘बड़ा, ऊंचा, श्रेष्ठ’ ये सब सुना कर लोगों को ये एहसास कराया जा रहा है कि कोई बात नहीं घर में खाने को भी नहीं है लेकिन हम ‘श्रेष्ठ’ हैं, ‘ताकतवर’ हैं।
हमें जितनी ऊंचाई दिखाई जा रही है हम उतनी ही हमें नीचे की तरफ जा रहे हैं। हमें इन झूठे श्रेष्ठ, स्वाभिमान और ऊंचाई की मूर्तियों के खिलाफ एक होकर बोलना होगा, लोगांे की रोटी, रोजगार, स्वास्थ्य, शिक्षा और सम्मान की राजनीति दिलाने वाली नीतियों के लिए लड़ना होगा। मूर्तियों में जो पैसा खर्च किया जा रहा है वो पैसा भारत की आम जनता के लिए रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य पर खर्च किये जाने की जरूरत है।