हैदराबाद निजाम के मुस्लिम राज्य में जहाँ हिन्दुओं विशेष रूप से आर्यों के व्यक्तिगत अधिकारों और कर्मकांडों के अधिकार को निजाम ने छीन रखा था, वहां उन्हें अपने शहीदों को भी याद करने का अधिकार नहीं दिया गया था| निजाम को इस बात कि जानकारी थी कि शहीदों को स्मरण करने का अर्थ है जाती में नव रक्त क संचार करना है| समय-समय पर हिन्दू, जो रियासत की जनसंख्या का अस्सी प्रतिशत थे, केवल बीस प्रतिशत वाले मुस्लिमों की क्रूरता पूर्ण, तानाशाही तथा अत्याचारी गतिविधियों की हिन्दू विओरोधी गतिविधियों का सहकार होते हुए समय समय प्र अपना विरोध परकत करते ही रहते थे, इस कारण वहां की धर्मांध पुलिस का उन्हें प्राय: सामना भी करना होता था|
अनेक बार एसी घटनाएँ भी सामने आतीं थीं जब बिना किसी कारण के भी उन्हें वहां की पुलिस के क्रोध का शिकार होना पड़ता था| इस अवसर पर निजामी पुलिस सब प्रकार की सीमाएं लांघते हुए निहत्थे तथ निर्दोष हिन्दुओं को दबाने के लिए कोई कसार न उठा रखती, तो अनेक अवसरों पर हंसी-खेलमे ही हिन्दुओं पर अंधाधुन्द गोलियां चला कर उनके जीवन से हातह धोने लगते| यहाँ तक कि चलते-चलते बिना किसी कारण गोली चलाने से भी न चुकती थी| इस प्रकार गोली चलाते हुए उन्हें किसी प्रकार का भय तो क्या अपितु गोली इस प्रकार चलाती मानो जंगल में कोई शिकारी अपने शिकार पर गोलियां चला रहा हो| इस प्रकार का ही एक अवसर जिला नांदेड के नगर मिर्जापुर में देखने को मिला, जहाँ पुलिस की गोली से अनेक पुरुष और महिलाएँ शहीद हो गई|
नांदेड जिला के मिर्जापुर नामक सथान पर मुस्लिivekम रजाकारों ने गोविन्द पंसरे का अकारण ही खून कर दिया या यूँ कहें कि गोविन्द पनासरे रजाकारों के हाथों शहीद हो गए| जिस सथान पर गोविन्द पंसरे की शहादात हुई, उस सथान पर पंसरे जी की स्मृति में प्रतिवर्ष मेला लगाने लगा| इस मेले में न केवल आर्य समाज ही अपितु कांग्रेस के नेताओं के व्याख्यानों के माध्यम से श्रद्धांजली समारोह का आयोजन किया जाता था| इस प्रकार ही एक वर्ष मेले के अवसर पर श्रद्धान्जली सभा का आयोजन किया गया| इस अवसर पर न केवल मेले में हि अपितु सभा स्थल पर भी भारी संख्या में जन समुदाय उम्दा हुआ था| इसे देख कर निजामशाही की पुलिस अपनी सकती क प्रदर्शन करने पर उतारू हो गई तथा अकस्मात् ही इस शान्ति पूर्ण चल रहे मेले पर चढ़ आई| बस फिर क्या था बिना कोई कारण बताये, बिना कोई चेतावनी दिए मेले में आये लोगों पर अंधाधुंध गोलियां चलाने लगी|
पुलिस की इस अन्यायपूर्ण कार्यवाही तथा अकारण ही अंधाधुन्द गोली चलाने के परिणाम स्वरूप यहाँ पर उपस्थित अनेक पुरुष तथ अनेक स्त्रियों ने वीरगति को प्राप्त करने का सौभाग्य पाया| समाधि पर शहीद होने वाले इन वीर और वीरांगनाओं के सबके साब नाम , उनके जीवन परिचय आज उपलब्ध नहीं किन्तु कुछ नाम उपलब्ध हैं जो इस प्रकार हैं, वीरांगना महिलाओं में ५५ वर्ष की आयु की कमला बाई, मात्र सत्रह वर्षीय सरास्वती बाई, तीस वर्षीय शान्तम्मा, सायन्ना की पत्नि( जिसका नाम नहीं मिलता तथा न ही जिसकी आयु का कुछ पता चल पाया है), एक हरिजन महिला ( इस के भी नाम तथा आयु का पता नहीं चल पाया) तथा एक नन्हीं सी बच्ची इस बच्ची के भी नाम और आयु का ज्ञान नहीं हो सका)|
इस प्रकार हैदराबाद के निजाम की मुस्लिम पुलिस तथा मुस्लिम रजाकारों की क्रूरता की घिनौनी कथा के समान ही स्वाधीन भारत में आज भी उग्रवाद के रूप में हम झेल रहे हैं| उस युग में तो वह सत्ताधारी थे| इस कारण उनके अत्याचारों की तो कोई सीमा ही न थी| आओ हम सब मिलकर देश के शहीदों को निरंतर और प्रतिदिन याद करते हुए अपने में और अपनी जाती में नव रक्त का संचार करते हुए हो रहे अन्याय के विरोध में एक संगठित आवाज उठाने का संकल्प लें|
डॉ. अशोक आर्य
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