गुरुकुल घरौंदा के आचार्य स्वामी भीष्म जी आर्य समाज के बेधड़क उपदेशकों में स्थापित हैं| इनके प्रयास और पुरुषार्थ से आर्य समाज खूब फला फूला| इन्हीं स्वामी जी ने पुरुषार्थ करते हुए अनेक लोगों को आर्य समाज के प्रचार के लिए तैयार किया और उन्हें प्रचार क्षेत्र में उतार भी दिया| इस प्रकार के प्रचारकों में उनकी ८१ भजन मंडलियाँ भी समाहित हैं| इन भजन मनदलियोन में से चौधरी नत्था सिंह जी की भजन मंडली भी एक थी| नत्था सिंह जी ने न केवल भजनों का गायन करते हुए आर्य समाज का प्रचार किया अपितु उच्चकोटि के भजनों की रचना भी की, जिनके समकक्ष भजन आज भी बहुत कम मिलते हैं | आप करनाल के बदरपुर क्षेत्र के निवासी थे|
हरियाणा के जिला करनाल में एक तहसील है बदरपुर| इस तहसील के गांव इन्द्री में एक चौधरी मनसाराम जी रहते थे| इन्हीं चौधरी मनसा राम जी की पत्नी श्रीमती प्रेमोदेवी जी ने सन् १९०४ ईस्वी को जिस संतान को जन्म दिया, उसका नाम चौधरी नत्था सिंह हुआ| नत्था सिंह जी की माता प्रेमोदेवी बाल्यवस्था से ही प्रज्ञाचक्षु थी| इधर चौधरी मनसाराम जी की गणना गाँव के उत्तम किसानों में होती थी, किन्तु यह सब होते हुए भी उन्होंने अपनी पत्नी को प्रज्ञाचक्षु होने का कभी एहसास न होने दिया| इस कारण वह अत्यधिक धर्म परायणा भी थी|
नत्था सिंह जी संभवतया माता के प्रज्ञाचक्षु होने के कारण उनका हाथ बंटाते रहे, इस कारण कुछ भी शिक्षा प्राप्त न कर सके, क्योंकि अपने माता पिता की वह ही एकमात्र संतान थे| माता की देखरेख तथा पिता को उनकी खेती में हाथ बंटाना यह दो कार्य ही उनके दैनिक जीवन के भाग बन गए थे|
चो. नत्था सिंह जी का विवाह हुआ किनतु इस पतनि से कोइ सनतान न हुइ इस कारन इनका दुसरा विवाह शरिमति शकुनतला देवी से हुआ| इस परकार आप के दो विवाह हुये| शकुनतला देवी ने चार सुपुत्रॉ ( क्रमश: हरपाल आर्य सुरजीत आर्, विजयपाल आर् ओर रनजित आर्य) तथा दो सुपुत्रियों ( कमला देवि ओर सतथा देवी) को जन्म दिया| यह नतथा सिनह जी की परेरना, उनके सुयोगय मारग दरशन तसथा धरम परायणता का ही परिणाम था कि न केवल उनके सुपुत्र ही अपुतु सुपौत्र भी उच्च पदोन पर आसीन हुये|
इन दिनों हरियाणा में आर्य समाज का खूब प्रचार हो रहा था| इस समय इनके क्षेत्र में आर्य समाज के प्रेरणा स्रोत गुरुकुल घरौंदा के आचार्य स्वामी भीष्म जी ही थे| अत: देश की स्वाधीनता से बहुत पूर्व ही स्वामी भीष्म जी से प्रेरणा लेते हुए आपने आर्य समाज की गतिविधियों में भाग लेना आरम्भ कर दिया| अब स्वामी जी से उनका मिलना जुलना आरम्भ हो गया तथा उंसे समय समय पर उपदेश तथा आर्य समाज के प्रचार के लिए मार्गदर्शन मिलने लगा| स्वामी जी के मार्ग दर्शन तथा उनकी प्रेरणा का ही परिणाम था कि आप आर्य समाज का प्रचार करने के लिए एक अच्छे भजनोपदेशक बने| लगभग सन १९५५ ईस्वी तक स्वामी जी के सानिध्य में ही प्रचार करते रहे| तत्पश्चात् गुरु जी की महती प्रेरणा और आशीर्वाद से आपने स्वतंत्र रूप से अपने भजनों के द्वारा आर्य समाज का प्रचार कार्य आरम्भ कर दिया| नत्था सिंह जी की आर्य समाज के प्रति इतनी गहन और निष्ठा हो गई कि आर्य समाज का कोई आन्दोलन ऐसा न था, जिसमें आप ने भाग न लिया हो| हिन्दी रक्षा आन्दोलन में तो आप ने पुरुषार्थ की कोई कोर कसर हि न उठा रखी|
स्वामी भीष्म जी के शिष्य और आपके गुरु भाई स्वामी रामेश्वरानन्द जी ने जब लोकसभा के चुनाव लड़ने का निश्चय किया तो उनको विजयी बनाने के लिए आपने खूब पुरुषार्थ किया और स्वामी जी को चुनाव में विजय श्री दिलाने में भागीदार बने| सांसद होने पर भी स्वामी जी आर्य समाज के प्रचार में लगे रहते थे और इस समय आप स्वामी जी के साथ ही रहते हुए भ्रमण करते थे तथा उन्हें आवश्यक सहयोग करते थे| आप शरीर से बलिष्ठ थे और आपका स्वर भी सुरीला था| इस कारण स्वामी जी के साथ रहते हुए उनकी सभाओं में आप भजन गायन करते थे| आपकी मधुर कांत ध्वनि से ओजस्वी भजनों को सुनने के लिए हजारों की संख्या में श्रोतागण सभा मे आकर झूमने लगते थे| आपके भजनों का मुख्य विषय कुरीतियों, अन्धविश्वास आदि का व्यंग्यात्मक विरोध तथा समाज सुधार ही होता था| आपने इतनी प्रसिद्धि पाई कि देश का कोई कोना ऐसा न रहा , जहां से आपकी मांग न आई हो| अत: आप देश भर में घूम घूम कर आर्य समाज का प्रचार करने लगे|
नत्थासिंह जी बच्चों में स्नेह के साथ घुल मिल जाते थे और बाल स्नेह के कारण उनकी बात को आदेश मानकर बिना किसी पूर्वाग्रह के मान लेते थे| एक बार की बात है कि आप गुरुकुल आर्य्य नगर हिसार में प्रचारार्थ आये हुए थे| यहाँ इनके भजनों को सुनने के लिए एक १८ वर्षीय युवक (वर्तमान में बागपत के नामी वकील श्री देवेन्द्र आर्य) इनके भजनों को सुनकर इतने उत्साहित हुए कि उस बालक ने आपको उनके गाँव खोडाहटाना (बागपत) में चलकर प्रचार करने का आग्रह किया| बाल आग्रह को देखते हुए नत्थासिंह जी एकदम से उस बालक के साथ जाने को तैयार हो गए| उन दिनों गाँव के लिए यातायात के साधनों की भी कमी थी किन्तु किसी प्रकार की चिंता किये बिना इस बालक के साथ गांव पहुंचे और दो दिन तक खूब भजनोपदेश किया|
आप में प्रचार की इतनी लगन थी कि भजनोपदेश के समय वाद्य यंत्र हैं या नहीं, ध्वनि को दूर दूर तक पहुंचाने के लिए लाऊड़ स्पीकर है या नहीं| एक बार गुरुकुल हिसार में प्रचार करते समय बीच में ही माइक के खराब होने पर भी आपने किसी प्रकार की बाधा नही आने दिए और बिना इसके ही खूब प्रचार कर लोगों की वाह वाही लूटी|
भजनोपदेशक होने के साथ ही साथ नत्थासिंह जी की समाज सुधार के कार्यों में भी अत्यधिक रूचि थी| वह प्राय: नन्हे नन्हें बालकों में शिक्षा के प्रति उत्तम भावना भरते हुए उन्हें शिक्षित होने की प्रेरणा दिया करते थे| आपकी भजन मण्डली में जो अन्य वाद्य वादक थे, वह भी उच्च शिक्षित थे| इनमें से एक शेर सिंह जी तो प्राध्यापक पद से मुक्त होने के पश्चात् आपके साथ चिमटा बजाया करते थे,जबकि चौ. धर्मपाल शास्त्री तथा चौ मानसिंह जी भी वाद्य वादकों में सम्मिलित थे|
इस प्रकार आजीवन आर्य समाज का प्रचार किया और आर्य समाज का प्रचार करते हुये ही दिनांक ३ जुलाई सन् १९९१ इस्वी को इस संसार को छोड दिया| इस प्रकर आप ने आजीवन जो सेवा की उसका ही परिणाम है कि आज भी आर्य समाज के भजनोपदेशक आपके रचे हुये भजनों को गाते हुये नहीं थकते|
डॉ. अशोक आर्य
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