वर्धा। महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में 27 जुलाई को गोस्वामी तुलसीदास जयंती पर ‘तुलसी : तत्व चिंतन और श्रवण’ विषय पर आयोजित गोष्ठी में सुविख्यात आलोचक श्री प्रेमशंकर त्रिपाठी जी ने कहा कि गोस्वामी तुलसीदास जी ने जनभाषा में लोकचेतना जगाने का काम किया है। उनकी हरी भक्ति मनुष्यता के निर्माण की सीढ़ी है। वैज्ञानिक विकास के इस युग में तुलसीदास का साहित्य सभी के लिए मार्गदर्शक बन सकता है।
विश्वविद्यालय के आधिकारिक यू टयूब चैनल पर लाइव प्रसारित इस गोष्ठी की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल ने की। इस गोष्ठी में प्रतिकुलपति प्रो. हनुमान प्रसाद शुक्ल, प्रो. कृष्ण कुमार सिंह ने भी अपने विचार प्रकट किये। गोष्ठी का संचालन मानविकी तथा सामाजिक विज्ञान विद्यापीठ के अधिष्ठाता एवं जनसंचार विभाग के अध्यक्ष प्रो. कृपा शंकर चौबे ने किया। कार्यक्रम में स्वागत वक्तव्य साहित्य विद्यापीठ की अधिष्ठाता प्रो. प्रीति सागर ने दिया। प्रतिकुलपति प्रो. चंद्रकांत रागीट ने धन्यवाद ज्ञापित किया। कोलकाता से अपनी बात रखते हुए प्रेम शंकर त्रिपाठी जी ने गोस्वामी तुलसीदास के अनेक छंदो को उधृत करते हुए उनकी रचनाओं का विस्तार से विवेचन किया । उन्होंने कहा कि तुलसीदास अपने समय के समाज को एक बड़ा आश्वासन देते हैं। तुलसीदास जी ने रामचरितमानस की रचना के माध्यम से भक्ति का सरल सूत्र दिया है तथा भक्ति की सरल परिभाषा भी बतायी है।
अध्यक्षीय वक्तव्य में कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल जी ने कहा कि तुलसीदास मर्यादाओं के कवि हैं। वे रामचरित मानस के माध्यम से अमर्यादित और विचलित समाज में मर्यादाओं को स्थापित करना चाहते है। मर्यादापुरुष राम उनकी रचनाओं के केंद्र में है। भारत की संवाद प्रणाली को समझने के लिए गोस्वामी तुलसीदास रचित रामचरितमानस एक महत्वपूर्ण प्रस्तुति है। प्रो. शुक्ल ने कवि तुलसीदास को भारतीयता के भाष्यकार संज्ञा देते हुए कहा कि उनके साहित्य का पुनर्विवेचन करने की आवश्यकता है।
प्रतिकुलपति प्रो. हनुमान प्रसाद शुक्ल ने तुलसीदास को अनन्य आस्था तथा अखंड विश्वास के कवि बताया। उन्होंने कहा कि कवि तुलसीदास सर्जक रचनाकार, धर्मसंस्थापक, परंपरा के भाष्यकार और मूल्यों के संस्थापक हैं। प्रो.शुक्ल ने कहा कि तुलसीदास सम्यक दृष्टि से संपन्न कवि हैं। हिंदी एवं तुलनात्मक साहित्य विभाग के प्रो. कृष्ण कुमार सिंह ने कहा कि 450 वर्षों से तुलसीदास की रचनओं का जनमानस पर बड़ा प्रभाव रहा है। तत्वज्ञ के रूप में उनका मुकाबला कोई नहीं कर सकता।
गोष्ठी के बाद जगजीत सिंह, पं. रतन मोहन, पुरूषोत्तम दास जलोटा, वीणा सहस्रबुद्धे, पंडित जसराज, रमेश भाई ओझा, रमाकांत शुक्ल और हरिओम शर्मा आदि कलाकारों के गीतों का श्रवण किया गया।
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