प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 5 अगस्त 2020 को अयोध्या में श्रीराम मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन करेंगे, सुप्रीम कोर्ट के फैसले और केंद्र सरकार की पहल के बाद भव्य श्रीराम मंदिर निर्माण की शुभ शुरुआत एवं नये प्रस्थान के साथ अयोध्या सहित समूचे भारत की तस्वीर और तकदीर दोनों बदलेंगे और नये युग में प्रवेश करेंगे, यह हमारी राष्ट्रीय अखण्डता, सार्वभौम एकता, सांस्कृतिक वैभव एवं विरासत को नये शिखर देने का ऐतिहासिक एवं अविस्मरणीय अवसर है, यह कोरा मन्दिर नहीं है, कोरा शब्द नहीं है, राष्ट्र का श्वास, इसका प्राण है, शुभ एवं श्रेयस्कर भारत का संकल्प है, ऊर्जा की दीपशिखा है। जो युग-युगों तक भारत को शक्ति एवं उजाला देगा। श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के लिए रखी जाने वाली ईंट केवल ईंट नहीं है, इसमें अन्याय के प्रतिकार, गलत के तिरस्कार और सही के पुरस्कार का राष्ट्रबोध छिपा है, इसमें स्वयं के सशक्तीकरण, पहचान एवं शाश्वत मूल्यों का स्वीकरण का मूल्यबोध है, यह भावात्मक चेतना का अहसास है। श्रीराम ने ही मर्यादा मंे रहते हुए गलत के परिष्कार का मार्ग दिखाया था।
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम जनमानस की व्यापक आस्थाओं के कण-कण में विद्यमान हैं। श्रीराम किन्हीं जाति-वर्ग और धर्म विशेष से ही नहीं जुड़े हैं, वे सारी मानवता के प्रेरक हैं। उनका विस्तार दिल से दिल तक है। उनके चरित्र की सुगन्ध विश्व के हर हिस्से को प्रभावित करती है। भारतीय संस्कृति में ऐसा कोई दूसरा चरित्र नहीं है जो श्रीराम के समान मर्यादित, धीर-वीर और प्रशांत हो। इस विराट चरित्र को गढ़ने में भारत के सहóों प्रतिभाओं ने कई सहóाब्दियों तक अपनी मेधा का योगदान दिया। आदि कवि वाल्मीकि से लेकर महाकवि भास, कालिदास, भवभूति और तुलसीदास तक न जाने कितनों ने अपनी-अपनी लेखनी और प्रतिभा से इस चरित्र को संवारा। वे मर्यादा पुरुषोत्तम तो हैं ही मानव-चेतना के आदि-पुरुष भी है। श्रीराम इस देश के पहले महानायक हैं, जिनका अयोध्या में दिव्य और भव्य राम मंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त हुआ है, इससे देश के आस्थावान करोड़ों हिन्दुओं को संतोष तो मिला ही, साथ ही यह तो उनके लिए आनंदोत्सव जैसा है, जन-जन में जीवन में नयी रोशनी का अवतरण है।
इस देश से, इसकी एकता से दुनिया भयभीत रही है, ऐसी ही भयभीत ताकतों ने श्रीराम, उनके मन्दिर निर्माण एवं अयोध्या को लड़ाई का मैदान, लोगों के मन बांटने वाला मुद्दा बना दिया। जो बाहर से आए उनके लिए इस देश के लोगों को काटना, जनमानस को बांटना यह रणनीतिक खेल बना और इसके लिये श्रीराम मन्दिर निर्माण को हथियार बनाया गया। श्रीरामजन्मभूमि पर फिर से मंदिर बनाने के लिए बाबर के समय करीब आधा दर्जन युद्ध हुए। हुमायूं के समय में करीब दर्जन भर, अकबर के समय लगभग दो दर्जन और अतिक्रूर औरंगजेब के वक्त करीब तीन दर्जन लड़ाइयां इस देश के समाज एवं श्रीराम भक्तों ने शासन के विरुद्ध इस जन्मभूमि को वापस उसका मान दिलाने के लिए लड़ीं और बलिदानों की दास्तान लिखी लेकिन रामभक्त हारे नहीं, टूटे नहीं और अपना संघर्ष जारी रखा, उन्होंने आजादी भी श्रीराम से जुड़ी आस्था एवं भक्ति के बल पर पायी। यानी, श्रीराम वह सेतु हैं जो इस समाज के मानस को जोडता रहा़ हैं।
यह बात अगर अमीर अली ने समझी तो अंग्रेज भी इसे भांपने में नहीं चूके। यही कारण है कि ‘बांटो और राज करो’ का अगला हथौड़ा इसी रामभक्ति पर चला। जन्मभूमि विवाद को समाप्त करने के लिए आवाज उठाने वाले मौलाना अमीर अली तथा हनुमान गढ़ी के महंत बाबा रामचरण दास को अंग्रेजों ने 18 मार्च, 1858 को अयोध्या में हजारों हिंदुओं और मुसलमानों के सामने कुबेर टीले पर फांसी दे दी। अब जब मंदिर का शिलान्यास हो रहा है तो ऐसे अनेक बलिदानों का स्मरण स्वाभाविक है। इस ऐतिहासिक अवसर पर हमें एक बार फिर सावधानी एवं सर्तकता बरतनी होगी, श्रीराम या हिन्दुत्व कोई राजनीति मुद्दा नहीं है, श्रीराम एवं हिंदुत्व इस देश का सांस्कृतिक स्वभाव एवं संवेदना है। इसे किसी एजेंडे के खांचे में सोचना या निरूपित करना संकीर्णता है।
श्रीराम मन्दिर को लेकर अनेक तरह की गलतफहमियां समाज विरोधी लोगों द्वारा फैलायी जाती रही हंै, उन्हीं में एक राजनीति की मंशाओं को धार देता मुद्दा आने वाले दिनों में गरमाया जा सकता है कि हिंदू आस्था के प्रतीक स्थानों की स्थापना के साथ ही देश में कट्टरता बढ़ेगी। यह समझना चाहिए कि ऐसी सब आशंकाएं पूर्णरूप से गलत हैं, मिथ्या एवं भ्रांत है और संकीर्ण एवं समाज को तोड़ने की मंशाओं से ही गढ़ी गई हैं। दरअसल, हिंदुत्व में कट्टरता का कोई स्थान है ही नहीं। फिर श्रीराम तो जन-जन के हैं, मनुष्य की तो बात छोड़िए, वे तो जड़ चेतन सबकी बात करने वाले, सबके बीच संतुलन का आग्रह करने वाले हैं। सृष्टि में सबके भले के आग्रह-आह्वान को आप कट्टरता नहीं कह सकते। निश्चित ही यह मन्दिर भी श्रीराम के विराट व्यक्तित्व के अनुरूप होगा। जिससे भारतीय जनमानस पर न केवल अनूठी छाप अंकित होगी, बल्कि यह जन-जन मे सौहार्द एवं सद्भावना का माध्यम भी बनेगा, क्योंकि श्रीराम किसी धर्म का हिस्सा नहीं बल्कि मानवीयता का उदात्त चरित्र हैं। श्रीराम का सम्पूर्ण जीवन त्याग, तपस्या, कत्र्तव्य और मर्यादित आचरण का उत्कृष्ट स्वरूप है।
हिन्दुओं के लिए यह बहुत पीड़ादायक रहा कि श्रीराम के जन्मस्थल पर ही भव्य मंदिर निर्माण के लिए उन्हें काफी संघर्ष करना पड़ा। कई वर्षों से रामलला अस्थायी टैंट में रहे। अब रामलला भव्य मंदिर निर्माण में विराजमान होंगे। भले सदियों से मन्दिर निर्माण की बाट जोहता एवं दशकों से कानूनी उलझनों में जकड़ा यह मामला सर्वोच्च न्यायालय ने हल किया है लेकिन जिस तरह से नरेन्द्र मोदी सरकार ने इस संवेदनशील मसले को अपने राजनीतिक कौशल से सम्भाला है उसके लिए पूरा श्रेय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को दिया ही जाना चाहिए। कहीं कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई, कोई हिंसा नहीं हुई, किसी तरह का बिखराव नहीं हुआ। कुछ आवाजों को छोड़ कर सभी पक्षकारों ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया। ठीक उसी तरह अब मन्दिर निर्माण का कार्य भी निर्विध्न एवं निष्कंटक होगा, ऐसा विश्वास किया जा रहा है।
श्रीराम का भव्य मंदिर उनकी जन्मभूमि में बने, यह आस्था एवं विश्वास से जुड़ा ऐसा संवेदनशील मसला था, जिसे तथाकथित राजनीतिक स्वार्थों एवं संकीर्णताओं ने विवादास्पद बनाये रखा एवं अपनी राजनीतिक स्वार्थों की रोटियां सेंकते रहे, वही धर्म ईमामों ने अपनी गठरी में बन्द कर रखा था, जो मन्दिरों के घण्टे और मस्ज़िदों की अज़ान तथा खाड़कुओं एवं जंगजुओं की ए0 के0-47 में कैद रहा। जिसे धर्म केे मठाधीशों, महंतों ने चादर बनाकर ओढ़ लिया। जिसको आधार बनाकर कर सात दशकों से राजनीतिज्ञ वोट की राजनीति करते रहे, जो सबको तकलीफ दे रहा था, जिसनेे सबको रुलाया-अब सारे कटू-कड़वे घटनाक्रमों का पटापेक्ष जिस शालीन, संयम एवं सौहार्दपूर्ण स्थितियों में हुआ है, यह एक सुखद बदलाव है, एक नई भोर का अहसास है। शांति एवं सौहार्द की इन स्थितियों को सुदीर्घता प्रदान करने के लिये हमें सावधान रहना होगा, संयम का परिचय देना होगा। लेकिन यहां इससे भी महत्वपूर्ण वह नजरिया है, जो मन्दिर निर्माण की शुरुआत को लेकर पूरे समाज में अपनी जगह बनाता दिख रहा है, उसका स्वागत कर रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का अनुशासन एवं संयम यह एहसास कराता रहा कि यह साम्प्रदायिक कट्टरता नहीं, साम्प्रदायिक सौहार्द का मसला है और इसी से भारत की संस्कृति को नया परिवेश मिल सकेगा। उनकी राजनीतिक सोच ने धर्म को एक व्यापक एवं नया परिवेश दिया है, उनके अनुसार देश को आध्यात्मिक और भावनात्मक एकता की जरूरत इसलिए है ताकि धर्म का सकारात्मक इस्तेमाल किया जा सके।
5 अगस्त 2020 की भोर निश्चित ही श्रीराम मंदिर शिलान्यास के साथ देश को एक पैगाम देगा-आदर्शों का पैगाम, चरित्र और व्यवहार का पैगाम, शांति और सद्भाव का पैगाम, आपसी सौहार्द एवं सद्भावना का पैगाम। श्रीराम मंदिर विश्व शांति एवं सौहार्द स्थल के रूप में उभरेगा क्योंकि श्रीराम का चरित्र ही ऐसा है जिससे न केवल भारत बल्कि दुनिया में शांति, अहिंसा, अयुद्ध, साम्प्रदायिक सौहार्द एवं अमन का साम्राज्य स्थापित होगा। मन्दिर निर्मित होने के बाद राष्ट्रीय जीवन के हर क्षेत्र में जो उजाला उतर आयेगा वह इतिहास के पृष्ठों को तो स्वर्णिम करेगा ही, भारत के भविष्य को भी लम्बे समय से चले आ रहे विवाद के धुंधलकों से मुक्ति देगा। धर्म और धर्म-निरपेक्षता इन शब्दों को हम क्या-क्या अर्थ देते रहे हैं? जबकि धर्म तो निर्मल तत्व है। लेकिन जब से धर्मनिरपेक्षता शब्द की परिभाषा हमारे तथाकथित कर्णधारों ने की है, तब से हर कोई कट्टर हो गया था। सभी कुछ जैसे बंट रहा था, टूट रहा था। बंटने और टूटने की जो प्रतिक्रिया हो रही थी, उसने राष्ट्र को हिला कर रख दिया था, उससे मुक्त होने का अवसर उपस्थित हो रहा है, ऐसा लग रहा है एक नया सूरज उदित होगा, जिससे भारतीयता एवं भारत की संस्कृति को नया जीवन मिलेगा।
मेरी दृष्टि में दुनिया में भारत जिस धर्म एवं धार्मिक सौहार्द के लिये पहचाना जाता है, आज उसी धर्म एवं सौहार्द को जीवंतता प्रदान करने एवं प्रतिष्ठित करने का अवसर हमारे सामने है। क्योंकि धर्म जीवन है, धर्म स्वभाव है, धर्म सम्बल है, करुणा है, दया है, शांति है, अहिंसा है। पर धर्म को हमने कर्म-काण्ड बना दिया, धर्म को राजनीति बना दिया। यह धर्म का कलयुगी रूपान्तरण न केवल घातक बल्कि हिंसक होता रहा है। आत्मार्थी तत्व को भौतिक, राजनैतिक, साम्प्रदायिक लाभ के लिए उपयोग कर रहे हैं। धर्म हिन्दू या मुसलमान नहीं। धर्म कौम नहीं। धर्म सहनशील है, आक्रामक नहीं है। वह तलवार नहीं, ढाल है। वहां सभी कुछ अहिंसा से सह लिया जाता है, श्री राम मन्दिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त होने से धर्म की विराटता दिखाने का सार्थक उपक्रम होगा। यह दुर्लभ अवसर है कि हम आपस में जुड़े, सौहार्द का वातावरण निर्मित करें। घृणा और खून की विरासत कभी किसी को कुछ नहीं देती। श्रीराम की भक्ति और आस्था का निर्विघ्न जीवन जीते हुए राष्ट्रीयता को बल दे, राष्ट्र होगा, तभी हमें अपनी आस्थाओं को जीने का धरातल मिल सकेगा। प्रेषकः
(ललित गर्ग)
ई-253, सरस्वती कंुज अपार्टमेंट
25 आई. पी. एक्सटेंशन, पटपड़गंज, दिल्ली-92