अमर सिंह के निधन की जब खबर पढ़ी तो अचानक मेरे मन में ‘न भूतो न भविष्यति’ उक्ति कौंध गई। मुझे लगा कि न तो उनके जैसा कोई व्यक्ति भारत तथा पूरी दुनिया ही नहीं इस पृथ्वी गृह पर पैदा हुआ और न ही भविष्य में पैदा होगा। उनके बारे में लिखते समय उनके लिए किस संबोधन का इस्तेमाल किया जाए, इसे लेकर मैं दुविधा में पड़ गया।
अमरसिंह अपने आप में योग्यताओं और विरोधाभाषों का ऐसा कॉकटेल थे जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है। मैं उन्हें नेता कहने व मानने से हिचकिचाता हूं क्योंकि वे तो देश भर में दल्ले के संबोधन से जाने जाते थे। और अक्सर वे खुद अपने साक्षात्कारों में इस सत्य को स्वीकृत करते हुए कहते थे कि वे तो दलाल है। एक बार तब हद हो गई जबकि संसद में प्रवेश द्वार पर मेरे एक वरिष्ठ पत्रकार मित्र से उनका टकराव हो गया व वहां मौजूद तमाम नेताओं व सुरक्षाकर्मियों को मौजूदगी में मेरे मित्र ने उन्हें दल्ला कहकर कटाक्ष करते हुए कहा कि आपने राजनीति में दल्लागीरी के अलावा और किया ही क्या है। आप तो दो लोगों को मिलाने की दल्लागीरी भी कर दे। दोनों और से गरमा गरमी होने के बाद मामला जैसे तैसे शांत हुआ।
अमरसिंह बेहद अनोखे व्यक्तित्व वाले थे। दोस्ती व दुश्मनी निभाने में इंतिहा कर देते थे। उन्होंने देश व राजनीति में जो कर दिखाया वैसा किसी और द्वारा करना तो दूर रहा, उसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। उनमें ठाकुरवाद कूट कूट कर भरा हुआ था। उन्होंने उत्तरप्रदेश में भी इसी आधार पर राजनीति चमकाने की कोशिश की। अततः असफल रहे। नेताओं से लेकर फिल्मी सितारों व उद्योगपतियों को प्रभावित करने में वे माहिर थे। हालांकि इसके लिए वे क्या तरीके इस्तेमाल करते थे इसे लेकर तमाम किवंदतियां हैं।
वे फिल्मी सितारों से लेकर उद्योगपतियों तक को राजनीति में लेकर आए। उनका जीवन उपलब्धियों और विवादों से सराबोर था। कांग्रेस से उनका करियर शुरू हुआ। कोलकत्ता के युवा कांग्रेसी नेताओं के बाद डीपी त्रिपाठी, वीरबहादुर सिंह, माधवराव सिंधियां, माधवसिंह सोलंकी आदि के साथ वे कांग्रेस में लंबे सफर के बाद वे समाजवादी पार्टी में गए। वे उसके नेता मुलायम सिंह यादव की आंख नाक कान बन गए। जब अमेरिका के साथ परमाणु करार हुआ तो उन्होंने कांग्रेस की मदद करने के लिए वामपंथी दलों द्वारा सरकार को दिया जा रहा समर्थन वापस लेने पर मनमोहनसिंह सरकार को बचाने के लिए उन्हें समाजवादी पार्टी द्वारा समर्थन दिए जाने के लिए मना लिया।
उन्होंने तो अमेरिकी राष्ट्रपति बाराक ओबामा के एनजीओ को करोड़ों रुपए दान में दिए व अहमद पटेल से लेकर भाजपा नेता अरुण जेटली तक से उनके मधुर संबंध थे। उन पर 2008 में तीन भाजपा सांसदों को खरीदने के लिए पैसे देने का आरोप लगा। उन्हें जेल भेजा गया व बाद में वे छूट गए। उन्होंने बिल क्लिंटन को मुलायम सिंह से मिलाने के लिए लखनऊ तक का दौरा करवाकर उन्हें प्रभावित किया।
उन्होंने मुलायम यादव को इस कदर प्रभावित कर रखा था कि उन्होंने अपने छोटे भाई रामगोपाल व बेटे अखिलेश यादव तक से कह रखा था कि वे अपने काम करवाने के लिए चाचा अमरसिंह से बात किया करे। वे अमिताभ बच्चन व उनके परिवार के काफी करीब हो गए। उनकी पत्नी जया भादुड़ी को पहली बार राज्यसभा पहुंचाने में अमर सिंह की बहुत बड़ी भूमिका थी। जब अमिताभ बच्चन की कंपनी ‘एबीसीएल’ पर आर्थिक संकट के बादल मंडराए तो अमरसिंह ने उन्हें उबारने में अहम भूमिका अदा की।
उस समय संयोग से ठाकुर प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की सरकार थी जिसने करो के मामले में उन्हें काफी राहत दी। वे अनिल अंबानी, अमिताभ बच्चन,सहारा श्री, सुब्रत राय सरीखी हस्तियों के काफी अंतरंग थे। उनके बारे में कहा जाता था कि वे डिस्कवरी चैनल बहुत पसंद करते थे व अफ्रीका के जंगलों में शेर द्वारा भैंसो का शिकार किए जाने के कार्यक्रम देखा करते थे। उन्होंने उनसे यह सीखा था कि किसी भैंसे का शिकार करने के लिए पहले कैसे शेर एक भैसे को अपने झुंड से अलग थलग करता है। उन्होंने उससे सीखते हुए ही शायद पहले अंबानी बंधुओं को दूर-दूर किया व अपनी ही समाजवादी पार्टी में इसे लागू करते हुए मुलायम सिंह के बहुत करीबी नेता आजम खान से लेकर भाई, बेटे को दूर किया। उत्तरप्रदेश सरकार को उत्तम सरकार बनाने वाला विकास कर वे जयाप्रदा के भी काफी करीबी थे। उन्होने आजम
खान का रामपुर से टिकट कटवाकर उन्हें लोकसभा का चुनाव लड़वाया। इस बीच एक विवादास्पद टेप आया जिसमें उनकी कुछ नेताओं व अभिनेत्रियों को लेकर कथित बातचीत थी। उन्होंने इसे रुकवाने में पूरा दम लगा दिया। कुछ पत्रकारों पर उनका बहुत प्रभाव था। जब एक बार पोटा कानून के सिलसिले में संसद का संयुक्त सत्र बुलाया गया तो कई तथाकथित वरिष्ठ पत्रकारों ने उस दिन संसद न जाकर उनके जन्मदिन पर सपरिवार जाना ज्यादा पसंद किया। वे लोग बड़े गर्व से बताते थे कि अमरसिंह ने उन्हे बुलाया।
उनके बारे में जानकार कहते थे कि कब वे किसी के गले में हाथ डालकर चलते हुए कब उसे तमाचा मार दे इसकी कल्पना नहीं की जा सकती। एक वरिष्ठ समाजवादी नेता के मुताबिक वे बेहद हाजिरजवाब थे व उनके मुंह में संग्रहणी थी। वे जब तब नाराज होने पर उनके विरोधियों के खिलाफ वमन करते रहते थे। उन्हें बाद में किडनी की समस्या हो गई व उनकी दोनों किडनियां बदली गई। महज 64 वर्ष की आयु में बाल गंगाधर की पुण्यतिथि याकि 1 अगस्त को उनका निधन हुआ। जब कुछ समय पहले उनके निधन की अफवाह उड़ी थी तो उन्होंने एक वीडियो जारी किया, इसमें उन्हें यह कहते दिखाया था कि ‘टाइगर अभी जिंदा है’।
जब मैं जनसत्ता में था तब राजनीति में भाजपा व समाजवादी नेताओं के काफी करीब मेरे तत्कालीन संपादक (हरिशकर व्यास नहीं) ने मुझसे उनकी तारीफ करते हुए उनका साक्षात्कार करने को कहा। मैंने वह लिखकर उनके पास भेज दिया। मैंने लिखा था कि वैसे तो वे ठाकुर है मगर अपनी डीलडौल के कारण व्यापारी ज्यादा लगते है। उन्होंने व्यापारी शब्द काटकर उद्योगपति कर दिया व इंटरव्यू में कई जगह अपनी और से अमरसिंह की प्रशस्ति में कुछ शब्द जोड़ दिए। इंटरव्यू छपने पर अमरसिंह ने मुझे ग्रेटर कैलाश स्थित अपने घर पर आमंत्रित किया व खाना खिलाने के बाद चलते समय मुझसे कहा था कि मैं आपके इस अहसान को कभी नहीं भुलूंगा। पहले तो मुलायम सिंह के परिवार में मेरी स्थिति रखैल जैसी थी मगर आपने तो यह इंटरव्यू करके मेरी मांग में सिंदूर भर दिया।
विवेक सक्सेना राजनीतिक विश्लेषक हैं व नया इंडिया से जुड़े हैं
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