नई शिक्षा नीति और भारतीय भाषाओँ को लेकर वैश्विक हिंदी सम्मेलन द्वारा आयोजित वेब चर्चा-संगोष्ठी में कई प्रमुख वक्ताओं ने अपने गंभीर विचार रखे। प्रस्तुत है कुछ विद्वानों द्वारा प्रस्तुत विचार।
जी, मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि शिक्षा का निजीकरण और मातृभाषा माध्यम का संगम कैसे होगा। शिक्षा का निजीकरण पूरी तरह अंग्रेजी की बैसाखी पर खड़ा है। राशिनी में भी मातृभाषा माध्यम के गले में “जहां संभव हो” का फन्दा डाल दिया गया है। आज प्रधानमंत्री जी ने भी अपने भाषण में “जहां संभव हो” को पक्का कर दिया है। मुझे नहीं लगता कि जन-दबाव के बिना मातृभाषाओं के लिए कुछ होगा। राशिनी के अनुसार अंग्रेजी बच्चे के पाठशाला (बल्कि आंगनबाड़ी) जाने के पहले दिन से ही शुरू हो जाएगी और छठी कक्षा से विज्ञान अंग्रेजी में भी पढ़ाना आवश्यक कर दिया गया है। मंडी और सभ्रांत वर्ग की पूरी ताकत अंग्रेज़ी के साथ है। मेरी राय है कि यह राशिनी मातृभाषाओं के गले में पड़े अंग्रेजी फंदे को और कस देगी।
मुझे “जहां संभव हो” से बहुत डर लग रहा है जी। मैं गलत साबित हो जाऊं तो मुझे प्रसन्नता होगी।सरकार तभी कुछ करेगी जब उसे लगेगा कि इससे मतों का लाभ होगा। चारों और अंग्रेज़ी का साम्राज्य रहते जन-साधारण अंग्रेज़ी की और ही भागेगा। इस लिए भारत के चप्पे-चप्पे पर जमे अंग्रेजी साम्राज्य के सरकारी आधारों को ध्वस्त किये बिना जन-साधारण को मातृभाषाओं के पक्ष में लाना बहुत बड़ी जागृति के रास्ते ही संभव है। इस लिए सब भारतीय भाषा प्रेमी अपने प्रयत्नों को और तीव्र करें। “जहां संभव हो” कह कर हम अपना अपमान स्वयं कर रहे हैं कि अपने आप को वैश्विक शक्ति समझते हुए भी हम अपने बच्चों को कक्षा पांच तक भी अपनी भाषा में पढ़ाने में असमर्थ हैं।
जोगा सिंह विर्क, पटियाला
ਜੋਗਾ ਸਿੰਘ, ਐਮ.ਏ., ਐਮ.ਫਿਲ., ਪੀ-ਐਚ.ਡੀ. (ਯੌਰਕ, ਯੂ.ਕੇ.)
सभी प्रकार की ज्ञान-विज्ञान को समझने सरल भाषा मातृभाषा ही हो सकता है। आप अंग्रेजी के बल पर लाख बाबू बना सकते हैं, लेकिन जब मौलिक कार्य करना है, तो आपको मातृभाषा की ही शरण में आना पड़ेगा। नई शिक्षा नीति मव अंग्रेजी को एक भाषा/विषय के रूप पढ़ाया जाएगा। न कि माध्यम के रूप में। इससे ज्ञान, विज्ञान, तकनीक और प्रौद्योगिकी की समझ को विकसित करने में सहायता मिलेगी। इसके दूरगामी सकारात्मक परिणाम भविष्य की कोख से जन्म लेंगे।
राहुल खटे, नाशिक
आज भी नई शिक्षा नीति के आने से पहले प्रकाश जावेड़कर ने कहीं बयान दे दिया था,” नई शिक्षा नीति में हिन्दी को अनिवार्य करने की बात नहीं होगी ” मेरे स्कूल के अन्ग्रेजीयत मानसिकता वाले प्रिंसिपल ने तुरंत मीटिंग बुलाकर कहा,” क्यों न 6 to 8 में भी हिन्दी optional कर दी जाए ।” नई शिक्षा नीति के आने तक इन्तजार कर लीजिए ऐसा कहकर मैंने जान छुड़ाई।
प्रकाश जावेड़कर जी के ऐसे गैरजिम्मेदाराना बयान पर आपत्ति जताते हुए मैंने सभी हिंदी समितियों और निदेशालय को लिखा– कहीं से कोई भी जवाब नहीं आया । नई शिक्षा नीति में जो स्थिति में कुछ सुधार आया है। माननीय प्रधानमंत्री और गृहमंत्री को इसका श्रेय जाता है क्योंकि गृहमंत्री जी ने 14-9-19 को ही कह दिया था,” राष्ट्र की एक राष्ट्र भाषा होनी चाहिये ।”
हिंदी के संरक्षण-संवर्धन में लगे विभाग जो 1967 में हिंदी के खिलाफ संविधान संशोधन — जावड़ेकर जी के बयान पर भी खामोश थे , नई शिक्षा नीति की क्रेडिट लेने के लिये या अंग्रेजी गद्दारों के साथ मिलकर उसे डुबोने के लिएअचानक वाट्स अप समूहों पर सक्रिय हो गये ?
“भारतीय भाषाओं के पक्ष में ” समूह में एक अंग्रेजी पक्षधर ने सबको इस बात पर सहमत कर लिया कि हिंदी को राष्ट्र भाषा बनाने की बात जैसे विवादास्पद मुद्दों को छोड़कर केवल मातृभाषाओं की बात की जाए ( ये समझाने पर भी कि इसी गलती के कारण वाजपेई जी जैसे हिन्दी के पक्षधर ने भी मातृभाषा- भारतीय भाषा अभियान वालों को भगा दिया था फिर भी नहीं मानें।) इस तरह अन्ग्रेजीयत वाले रंगे सियार के रूप में हर जगह बैठे हैं जो हिंदी विकास के नाम पर पिछ्ले सत्तर सालों में करोड़ों रुपये डकार कर सभी नौकरियों और प्रतियोगी परीक्षाओं में अंग्रेजी को अनिवार्य बना दिए आज फिर राजनीति करने आ गये हैं। ऐसे आस्तीन के सांपों से सावधान हिंदी प्रेमियों —
डॉ अशोक कुमार तिवारी
वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुंबई
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